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शनिवार, 5 दिसंबर 2020

लघु कथा/ लालच बुरी बला

 






      



तांगे वाला अपने तांगे में सवारी दर सवारी बैठाले जा रहा था।यहां तक कि अपने बैठने की जगह भी सवारियों से भर ली।दुबले-पतले घोड़े के लिए भी इतनी सवारियां लेकर चल पाना उसके बूते से बाहर था।परंतु बेचारा क्या करे ।मुंह में कंटीली लगाम ऊपर से मालिक का तड़ातड़ पड़ता हंटर उसको चलने के लिए विवश कर रहा था।

      जैसे-तैसे घोड़े ने ताकत बटोरकर चलना प्रारम्भ किया तो उसके पैर कांपने लगे परंतु सर नीचे करके और कुछ कदम ही चल पाया होगा कि सवारियों के अथाह बोझ से तांगा इतना नींचे झुक गया कि बेचारा घोड़ा भी ऊपर टंग गया।इधर ज्यादा झुकने के कारण तांगे में बैठी सवारियां भी धड़ाधड़ जमीन पर गिरने लगीं।कई सवारियों को गंभीर चोटें भी आ गईं।

      सवारियों के गिरते ही घोड़ा भी जोर से नींचे गिरा और गर्दन टूटने के कारण भगवान को प्यारा हो गया।यह देख कर तांगे वाला दहाड़ें मार कर रोने लगा।उसका रोना सुनकर बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए और तांगे वाले को ताने मरते हुए बोले,क्या भैया एक बार में ही मालदार होना चाह रहा था।जिन सवारियों के चोट लगी उनका क्या कसूर था अब भुगत,,,,

     घोड़ा कोई हवा खाकर थोड़े ही चलेगा उसे भी तो अच्छा दाना-पानी चाहिए,ज्यादती की भी एक सीमा होती है।तभी कुछ पुलिस वाले आए और घायलों को अस्पताल भिजवाने के पश्चात तांगेवाले को अपने साथ थाने ले गए।

      तभी तो बुद्धिमान लोगों ने कहा है "लालच बुरी बला"

            


             वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

      मो0-    9719275453

      दि0-     02/12/2020

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