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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

हे राम "(लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




घना कोहरा, गज़ब की ठिठुरन कितने भी गर्म कपड़े पहन ने पर भी ठंड अपना असर कम करने को राजी नहीं।

   ऐसे में मामूली फटे-टूटे कंबल में लिपटी एक वृद्धा हाथ पैरों को सिकोड़े रात काटने को मजबूर सूर्य की पहली किरण से जीवन लौटाने की आस में निरजीव सी पड़ी है।

           सब उसके पास से होकर गुजरते रहे परंतु किसी ने यह नहीं सोचा कि उसके पास जाकर उसका हाल-चाल पूछें,उसके खाने-पीने की व्यवस्था करें।या और कुछ नहीं तो एक प्याला गर्म चाय ही पिलवा दें।या उसे सड़क से उठाकर कहीं किसी छत के नींचे ही लिटा दें।

  उस वृद्धा के बच्चे तो दुर्भाग्यशाली हैं ही।वह लोग भी कम दुर्भाग्यशाली नहीं हैं जो यह सब देख कर भी अनजान बने रहते हैं।

        हम यह सोच ही रहे थे तभी कुछ लोग आए और एक सादे कागज़ पर उसका अंगूठा लगाने का प्रयास करने लगे।हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि इस बुढ़िया की दो सौ बीघा जमीन है।यह उसे अपनी लड़की के नाम करने पर उतारू है।हम ऐसा होने नहीं देंगे।

    हम तो चाहते हैं कि यह मरने से पहले जमीन हमारे नाम कर दे।अगर राजी से नहीं तो ऐसे ही सही।वो अंगूठा निशानी ले कर चले गए। हम देखते ही रह गए।सिर्फ मुंह से यही निकला, 

                "हे राम"

          


           ह     वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

                   9719275453

                   09/12/2020

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