तुगड़म तुगड़म तुगड़म करती
आई घोड़ा गाड़ी
हैट लगाकर हांक रहा था
बंदर उसे अनाड़ी।
कभी इधर से उधर भगाता
बनता बड़ा खिलाड़ी
मार - मार हंटर घोड़ों की
सारी चाल बिगाड़ी।
तेज हवा से बातें करती
दौड़ रही थी गाड़ी
तभी अचानक बीच राह में
पड़ी कटीली झाड़ी।
निकल गया गाड़ी का पहिया
बंदर गिरा पिछाड़ी
ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख कर
नोच रहा था दाढ़ी।
कभी-कभी अधिक होशियारी
बने मुसीबत भारी
सोच समझकर चलने में ही
निर्भय रहें सवारी।
हमको भी सबने सिखलाया
धीमी रखना गाड़ी
तभी कहेंगे राजा बेटा
वरना कहें कबाड़ी।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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