आकर बैठ गई खिड़की पर,
झबरी बिल्ली रानी,
सूंघ रही थी कहाँ रखी है,
चिकिन, मटन, बिरियानी।
सारे घर में दौड़ दौड़कर,
हारी बिल्ली रानी,
हाथ न आया कुछ भी उसके,
मुख में आया पानी।
लेकिन झबरी बिल्ली ने भी,
दिल से हार न मानी,
फ्रिज से आती हुई महक को,
वह झट से पहचानी।
लगी खोलने डोर फ्रिज का,
पंजों से अभिमानी,
फूलदान गिर गया ज़मी पर,
जागी बिटिया रानी।
पूंछ दबाकर भागी बिल्ली,
भूल गई बिरियानी,
कूद गई खिड़की से नीचे,
पकड़ न पाई नानी।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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