होली का ये रंग, सभी के मन को भाते।
राधा रानी संग, कृष्ण को रंग लगाते।।
गाते ब्रज में फाग, श्याम मारे पिचकारी।
गोपी ग्वाला रंग, लगाते बारी बारी।।
पकड़े दोनों हाथ, प्रेयसी यूँ शर्माती।
लाल गुलाबी गाल, गोपियाँ छुप मुस्काती।।
दौड़ दौड़ के आज, प्रेम की मारे गोली।।
राधा रानी संग, खेलते आँख मिचोली।।
मुरली की ये धून, दौड़ सुन राधा आती।
मीठी मीठी राग, प्रेम की गीत सुनाती।।
लिए प्रीत की रंग, करे मीठी सी बोली।
रहे मिलन की आस, खेलते मिलकर होली ।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
छत्तीसगढ़
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