पड़ा स्वयं सेही के पीछे,
था शावक नादन,
इसे मारकर ही मानूंगा,
बनता चतुर सुजान ।
बढ़कर राह रोकता उसकी,
शावक का अभिमान,
लेकिन सेही नहीं दे रही,
उसपर कोई ध्यान।
तभीअचानक शावक झपटा,
सेही पर शैतान,
कर डाला सेही ने उसको,
पूरा लहू - लुहान।
आंख,नाक,मुख,कान सभीमें,
कांटे चुभे समान,
लगा चीखने शावक उसकी,
संकट में थी जान।
भूल गया सारी चतुराई,
निकली झूठी शान,
जान बचाकर भागा शावक,
बिगड़ा सब अनुमान।
कभी किसीको कम ना समझो,
रहे सदा यह ज्ञान,
खिली रहे सबके होंठों पर,
प्यारी सी मुस्कान।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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