सारा जंगल दहल उठा है,
हाथी की चिंघाड़ से,
अब डरने की बात नहीं है,
शेरों की हुंकार से।
किसकी हिम्मत जो टकराए,
आज तेज तर्रार से,
एक सूंड़ में जा उलझेगा,
कांटों वाली तार से।
कबतक डरते रहें बताओ,
उस शेरू सरदार से,
ताकत की बू में ना करता,
बात कभी जो प्यार से।
ऐसा चांटा आज पड़ेगा,
मुंह पर उस मक्कार के,
दिन में तारे दिख जाएंगे,
हाथी के प्रहार से।
चलो साथियों आज शेर को,
लाते बांध निबाड़ से,
लाकर दूर उसे बांधेंगे,
हाथी के दरबार से।
हाथी राजा का जयकारा,
बोलो मिलकर प्यार से,
रहे सुरक्षित अपना राजा,
जंगल के गद्दार से।
आता नाहर पड़ा दिखाई,
मस्त - मस्त रफ्तार से,
भूल गए सारा जयकारा,
डरने लगे दहाड़ से।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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