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सोमवार, 15 मार्च 2021

औघड़ दानी" महेन्द्र सिंह देवांगन की रचना

 


भोले बाबा औघड़ दानी।
जटा विराजे गंगा रानी।।
नाग गले में डाले घूमे।
मस्ती से वह दिनभर झूमे।।


कानों में हैं बिच्छी बाला।
हाथ गले में पहने माला।।
भूत प्रेत सँग नाचे गाये।

नेत्र बंद कर धुनी रमाये।।

द्वार तुम्हारे जो भी आते।
खाली हाथ न वापस जाते।।
माँगो जो भी वर वह देते।
नहीं किसी से कुछ भी लेते।।




महेंद्र देवांगन "माटी" (बृह्मलीन) 
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Mahendradewanganmati@gmail.com

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