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सोमवार, 28 जून 2021

"बादल" : प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 



काले बादल छा गये, नभ में चारों ओर।
घूम रहे पक्षी सभी, बच्चे करते शोर।।

शीतल चलती है हवा, तन मन भी मुस्काय।
बूँद बूँद बरसे जमी, मन हर्षित हो जाय।।

सुंदर दिखते बाग है, लहराते हैं फूल।
बारिश बूंदे देख कर, पत्ते जाते झूल।।

छायी सावन की घटा, आयी है बरसात।
सोचे मानव देख कर, कैसे बीते रात।।

सूखे सूखे वृक्ष के, मन में खुशियाँ छाय।
बारिश की फ़ूहार से, हरी भरी हो जाय।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


"संभल कर चलना" : महेंद्र देवांगन "माटी" की रचना



काँटो से भरा है राह राही, संभल संभल कर चलना।
पग पग में है सतरँगी जाल, बिछाये बैठी छलना।।

अगर पाना है लक्ष्य तो, आगे ही बढ़ते जाना।
राह कठिन जरूर है, इससे ना  घबराना।।

चाल तेरी मंद ना हो, काली रात से ना डरना।
प्रभात जरूर होगा राही, अँधियारो से लड़ते रहना।।

उदास होकर के तू अपना, गाण्डीव ना रख देना।
कौरव के छल में आकर, समझौता ना कर लेना।।

आलस अत्याचार अहं के, जाल में ना फँस जाना।
कर्मठता उत्साह शांति से, ज्ञान की ज्योति जलाना।।

प्यास बुझा दो जन जन की, बनकर निर्झर झरना।
रहम करो सभी पर राही, दुखियों का घाव भरना।।


महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

वीरेन्द्र सिंह बृजवासी का बाल गीत/भूख लगी है तगड़ी! ------------------

 


रामू  ने  मम्मी  से   बोला,

मैं      खाऊँगा    खिचड़ी,

मम्मी  बोली   देर  लगेगी,

गीली   हैं   सब    लकड़ी।


बोला  रामू  खीर बना  दो,

छोड़ो   खिचड़ी -  विचड़ी

बहुत देरसे  मम्मी मुझको,

भूख     लगी   है   तगड़ी।


कैसे   खीर  बनेगी   बच्चे,

पड़ी     दूध    में   मकड़ी

गोला,काजू खत्म करदिए,

बना   -  बनाकर    रबड़ी।


छोड़ो मम्मी  मैं  खा  लूंगा,

नमक   लगी  यह  ककड़ी,

तभी बनाना कुछ खाने को,

सूख   जाएं  जब   लकड़ी।


ठहर अभी लाती हूँ दुहकर,

छोड़   गाय    की   बछड़ी,

पीकर ताजा दूध  मिटा  ले,

भूख    लगी   जो    तगड़ी।

      


             वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

                 9719275453

                       *****

शनिवार, 26 जून 2021

प्रभुदयाल श्रीवास्तव का बालगीत चिड़िया घर

  



                              
                        चिड़िया घर में नहीं बची है,
                        चिड़िया कोई बाकी |
                        कक्का चौकीदार बचे हैं ,
                        बच गईं  मालिन काकी |

                          हाथी भागे, भागे भालू ,
                          हिरन हो गए ओझल |
                          एक मात्र जो शेर बचा था ,
                          भाग गया वह भी कल|
                          लगता है कुछ हुई शरारत ,
                          या हुई कुछ चालाकी |

                          मोर बहुत थे सोन चिरैया ,
                          मिट्ठू कोयल सारे |
                          गौरैयों को हाँक ले गए ,
                          अनजाने हरकारे }
                          चिड़िया घर मैदान बन गया ,
                          लोग खेलते हॉकी |

                            वन पशुओं की कई जातियां ,
                            नहीं बचीं अब शायद |
                            आसमान के पंछी  भी,
                             होते जाते नादारद |
                             इनके संग में रोज क्रूरता ,      
                             क्यों ये  नाइंसाफी |






                          प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

                                    छिंदवाड़ा


 

पापा :अंजू जैन गुप्ता जी की पिता दिवस पर विशेष रचना

 


पापा आप एक आस हो,श्वास हो।

हर पल, हर लम्हा लगे कुछ खास हो।

जन्म से मिला जो ,वो अनमोल एहसास हो।

            आप ही जीवन का आधार     

             हो। अस्तित्व की पहचान हो

               पापा आप एक आस हो,

                 श्वास हो, हर पल,हर   

                 लम्हा लगे कुछ खास हो

आप ही आदर्श हो,सखा हो;

दार्शनिक हो व जीवन की रफ्तार हो।

सवालों से भरे इस जग में हर सवाल का जवाब हो।

        पापा आप एक आस हो,श्वास  

         हो।हर पल हर लम्हा लगे कुछ 

          खास हो।

          पापा आप हो तो बचपन से ले

          बुढापे तक शरारतो व मस्ती 

           की भरमार हो।

           हमारी हर चाह व डिमांड को

         पूरा करने वाला क्रेडिट कार्ड हो

पापा आप एक आस हो,श्वास हो।

हर पल हर लम्हा लगे कुछ खास हो।

आप ही हौसला हो ,विश्वास हो;

जिंदगी के इस सफर में सबसे

खूबसूरत एहसास हो।



अंजू जैन  गुप्ता

पुरानी ऐनक [ 👓 ] कृष्ण कुमार वर्मा की रचना

 


अनुभवों की खदान होती है ।
ना जाने कितने ही तजुर्बा की साझेदार  होती है ।
खामोशी से ही मगर , गुजरे वक्त की 
पहचान होती है ।
पुरानी ऐनक !
जिंदगी में हासिल किये पड़ावों
की सुखद एहसास होती है ....





✍  कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर 

बुधवार, 16 जून 2021

गंगा दशहरा

 






इस वर्ष 20 जून  2021 को गंगा  दशहरा का पर्व  है। पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव आजकल युवा पीढ़ी पर इतना   अधिक है  कि वह वैलेंटाइन डे के साथ  कोई न कोई डे हर  सप्ताह  खोज खोज कर मनाते है।   यह अपनी जगह एक अच्छी बात है लेकिन भारत के तीज त्योहार और उनकी महत्ता को हम भुलाते जा रहे हैं । इसी संदर्भ में  हम  भारत से लुप्त हो रहे त्योहारों के बारे में जानकारी देने के लिये  गंगा दशहरा के बारे में यहां जानकारी दे रहे हैं । जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हम गंगा-दशहरा पर्व के रूप मे मनाते हैं । पावन गंगा का अवतरण इसी दिन धरती पर हुआ था । आज के दिन भारतवासी गंगा में डुबकी लगाकर स्नान करते हैं। उसके उपरांत वे भगवान् का ध्यान और दान करते हैं । इससे उन्हें उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है । अगर गंगा जी पास मे नहीं है तब किसी भी नदी में स्नान करने अथवा कोरोनाकाल जैसी विषम  परिस्थिति मे नहाने के जल मे थोड़ा-बहुत  गंगाजल मिलाकर स्नान कर  ईश्वर का ध्यानकरते हुए दान करने से पाप दूर हो जाते है ।

स्कन्द पुराण में गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरित होने की कथा है, वह इस प्रकार है ।
एक बार अयोध्या के नरेश राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने के लिये एक घोड़ा छोड़ा । स्वर्ग के राजा इन्द्र को ईर्षावश राजा सगर का यह यज्ञ अच्छा नहीं लगा । उन्होंने अश्वमेध के लिए छोड़े हुए घोड़े को पकड़ कर पाताल लोक ले गये और कपिल मुनि के पास बांध दिया । इधर राजा सगर के अश्वमेध के घोड़े के गायब होने की खबर से चारों ओर खलबली मच गई । राजा सगर के सैनिक चारों तरफ दौड़े । राजा के साठ हजार सैनिक पाताल लोक में भी गये । वहाँ उन्हें अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कपिल मुनि के समीप बंधा हुआ मिला । वे लोग यह देखकर चोर चोर कर चिल्लाने लगे । कपिल मुनि ने जब यह देखा तब उनके क्रोध से सारे साठ हजार सैनिक जलकर समाप्त हो गये । इन साठ हजार लोगों के उद्धार के लिए राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने घनघोर तपस्या की । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा जी को धरती पर भेजने का निर्णय लिया । इसके पहले ब्रह्मा जी सुनिश्चित होना चाहते थे कि गंगा जी के वेग को धरती संभाल सकेंगी। ब्रह्मा जी ने भागीरथ जी से कहा कि वह भगवान् शिव को प्रसन्न करें ताकि वे गंगा जी को धरती पर अवतरित होने से पहले अपनी जटाओं में संभाल लें। धरती की भी स्वीकृति आवश्यक है । भागीरथ ने खूब तपस्या की और भगवान् शिव को खुश किया । भागीरथ ने अपने अथक प्रयास से गंगा जी को धरती पर लाकर अपने पुरखों का उद्धार किया । इसीलिए गंगा जी को भागीरथी भी कहा जाता है और पूरी चेष्टा से किये गये प्रयास को भागीरथी प्रयास भी कहा जाता है ।

दो गदहों की कथा (बाल कथा : एक लोककथा पर आधारित



एक धोबी के पास दो गदहे थे। एक गदहे का रंग गोरा था और दूसरे गदहे का रंग काला था। गोरा गदहा घमंड मे चूर रहता था और काला गदहा अपना काम चुपचाप करता रहता था। धोबी के लिये दोनो गदहे एक जैसे थे । दोनों गदहों को भरपूर बोझा ढोने का काम करना पड़ता था ।
एक बार धोबी ने अपने घर में इस्तेमाल करने घाट से काफी मिट्टी काले रंग के गधे की पीठ पर लाद दिया और सफेद बालो वाले गधे पर सूखे कपडों का बड़ा गट्ठर लाद दिया । रास्ते में एक नाले के ऊपर काले गधे का पैर फिसल गया और वह नाले में जा गिरा । जब तक धोबी गधे को निकालता तब तक आधी मिट्टी पानी मे चली गई थीं और गधे की पीठ का बोझ कम हो गया । वह प्रसन्न होकर सफेद रंग के बालों वाले गधे को देखने लगा । दूसरे गदहे ने जब देखा तो उसने भी नाले में छलांग लगा दी । दूसरे गदहे की पीठ पर लदे सूखे कपडे गीले हो गये और भारी हो गये। अब उसे अधिक बोझ उठाना पड़ा । धोबी से उसे मार भी अलग पड़ी । अतः हमे बिना सोचे समझे नकल भी नहीं करनी चाहिए वर्ना बिना सोचे समझे नकल करने से सफेद बालो वाले गधे की तरह परिणाम भुगतना पड़ सकता है ।

शरद कुमार श्रीवास्तव

चींटी रानी वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल रचना

 




चींटा  बोला  बड़े  प्यार  से,

सुन    लो     चींटी     रानी,

हम  बबलू  के  घर  खाएंगे,

घी,     शक्कर     मनमानी।


आने  वाला  है  बारिश  का,

मौसम    तनिक     विचारो,

करें   इकट्ठा   खाना - दाना,

भरकर    रख    लें    पानी।


मरे हुए  कीटों  को भी  हम,

अपने    बिल    में      लाएं,

कल के  लिए इकट्ठा  करके,

रख    लें    दिलवर   जानी।


चूक  गए  अवसर तो  बच्चे,

भूखे          मर        जाएंगे,

आलस कभी न अच्छाहोता,

कहते      ज्ञानी   -    ध्यानी।


मैं  भी   कैसे   कर   पाऊंगा,

सारा        काम       बताओ,

तुम   अंडों   पर    बैठी-बैठी,

बनती        रहो       सयानी।


चीटीं     बोली    चींटे   राजा,

मुझे       यही      चिंता     है,

लक्ष्मण  रेखा पार   करी  तो,

होगी         जान       गवानी।


लालच   बुरी  बला  है  बच्चो,

इसमें     कभी     न     आना,

लालच  के   फंदे   में   पड़ना,

होती           है         नादानी।

          



            वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                मुरादाबाद/उ,प्र,

                9719275453

                 

                     ------------

पुरुष स्व महेन्द्र सिंह देवांगन की रचना

 


घर की जिम्मेदारी उस पर, हर फर्ज वह निभाता है।
जब भी कोई संकट आये, तुरंत ही अड़ जाता है।।

भार उसी के कंधे पर है, सबको वह सह जाता है।
सब्जी भाजी चांँवल राशन, लेकर के वह आता है।।

करो नहीं बदनाम पुरुष को, सबकी रक्षा करता है।
अगर कहीं अन्याय हुआ तो, आगे आकर लड़ता है।।

होते हैं पुरुष साथ में तब, महिला आगे आती है।
घर परिवार और दुनिया में, इज्जत खूब कमाती है।।

रचनाकार
महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

शामू 5 धारावाहिक सीरीज शरद कुमार श्रीवास्तव

 



अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत मियाँ  ने शामू से पूछा कि काम करोगे।   शामू ने तुरंत हाँ कर दी  और इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । अपने एक साथी की मदद से खाने के समय या खाली समय थोड़ी पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई थी ।  कुछ  ही दिनो  मे गैरेज के  टूल्स  औज़ार  आदि  के  नाम  का  पता  हो गया था।   इस नये काम से उसपिता बिहारी  और  उसकी दादी  भी खुश  थी ।    इशरत भाई  को उसने कई बार ग्राहक के छूटे रुपए पैसे जो गाडी में मिलते थे वह ला कर दिए थे ।   इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे।


आगे पढिये :-



इशरत मियाँ  के पिता के भाई लोग  भारत  पाकिस्तान  के  बटवारे  के  समय पाकिस्तान  चले गये  थे ।  लेकिन  इशरत  मियाँ  के  पिता  जी   अपने  परिवार  के  साथ  भारत  छोड़कर  नहीं  गये ।  इशरत  मियाँ  अपने  माता पिता की इकलौती  संतान  थे  और उनका  भी एक ही बेटा था ।  इन्टरमीडियेट मे पढ़ रहा था नाम था नुसरत सिद्दीकी ।  वह लिखने पढने मे तेज था।  इशरत  भाई  उसकी मेहनत  लगन  को अहमियत  देते  थे  ।  नुसरत  की  पढ़ाई  लिखाई  की ओर विशेष  ध्यान  दिया  करते थे ।  नुसरत पढाई में से कुछ समय निकाल कर अपने पिता के गैरेज जाता था अपने पिता को खाना खाने के लिये घर भेजने के लिए । उस समय वह कालेज से आ चुका होता था । शामू के पढने के शौक को देखकर वह समय समय पर उसकी सहायता भी कर दिया करता था । दरअसल कालेज में नुसरत के एक लेक्चरार ने गरीब बच्चों की पढ़ाई की समस्या का जिक्र किया था । संवेदनशील नुसरत भी सोचता था कि वह इस दिशा में काम करे तो उसको आसानी से इस बात का मौका भी मिल गया अतः शामू को अपनी खुशी से पढ़ा रहा था और वह इसके लिए भगवान का शुक्रगुजार था ।
शामू का पिता , बिहारी, हमेशा इतवार को आता था । अपने माँ को और अपने बेटे के पास , उन्हें देखने के लिए । वह शामू से खुश रहता था। उसकी हमेशा इच्छा रहती थी कि शामू पढ लिख कर बड़ा आदमी बन जाय। लेकिन स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाने से वह असहाय महसूस करता था। भीख से पाये पैसे वह अपनी माँ के हाथों में सौंप जाता था। शामू की दादी उन पैसों को बहुत जतन से रखती थी। शामू को भी वह पता नहीं था कि दादी के पास पैसा है।
एक दिन शामू घर गया तो उसने देखा कि उसकी दादी रो रही है । शामू ने जब दादी से पूछा तब दादी ने उसे कुछ रुपयों की गड्डी दिखाई जिसे कीड़े खा गये थे । शामू दूसरे दिन गैरेज गया तब दादी से पूछकर अपने साथ उन रुपयों को भी ले गया ।
इशरत मियाँ को उसने नोट दिखाए । कुछ नोट काम के थे । कुछ नोट बाजार में चल नहीं सकते थे उन रुपयों को लेकर इशरत भाई शामू के साथ नोट बदलने वाले की दुकान में ले गये जहाँ कमीशन पर नोट बदले जाते थे । वहां भी शामू को कुछ रुपये मिल गये । इशरत मियाँ ने शामू से कहा अब तो तुम कुछ पढ़ लिख सकते हो अपना नाम लिख सकते हो और बारह साल के हो गये हो । अतः पैसों को बैंक के खाते में रखो । उन्होंने शामू को बैंक के खाते के बारे मे समझाया । शामू को इशरत मियाँ एक दिन अपने साथ बैंक लेकर गये और उसका खाता खुलवा दिया । अब उसने हर माह अपनी तनख्वाह के रुपये और दादी के दिये रुपये बैंक की पासबुक में जमा करना शुरू कर दिये थे ।


आगे अंक 6 मे



शरद कुमार श्रीवास्तव 


 

सपेरा वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल रचना



एक  सपेरा   साँप   पकड़ने,

अपने    घर    पर      आया,

सब बच्चों को हाथ जोड़कर,

उसने        यह     समझाया,


बोला   जहरीली  नागिन  में,

गुस्सा      बहुत    भरा     है,

मेरा  दिल भी  इसके   आगे,

सच    में     डरा-डरा      है।


बीन बजाकर  हाथ  नचाकर,

घंटों         उसे        रिझाया,

कैसे  पकडूं  इस  नागिन को,

समझ    न    उसके    आया।


स्वयं   सपेरे   ने   बच्चों   को,

आकर        यह      बतलाया,

पास  न   जाना, मैं  तुरंत   ही,

अंकुश       लेकर        आया।


तभी   सपेरे   ने  अंकुश    में,

उसका        गला      फसाया,

डिब्बे  में कर  बंद  उसे   सब,

बच्चों        को     दिखलाया।


बच्चों  ने  अंकल  को  सबसे,

बलशाली              बतलाया,

कोई   छोटा  भीम, किसी  ने,

साबू          उसे       बताया।


बच्चों   की   सुंदर   बातों  ने,

सबका       मन      बहलाया,




हाव-भाव को देख  सभी  को,

मज़ा     बहुत    ही     आया।

      

              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   

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रविवार, 6 जून 2021

*वैज्ञानिकों ने बताया कितना दिलचस्प है, हमारा शरीर* 🕴🏻इन्टरनेट से साभार

 


1. *जबरदस्त फेफड़े* 🫁

हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे.


2. *ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं* 🧰

हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं.


3. *लाखों किलोमीटर की यात्रा* 🩸

इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है.


4. *धड़कन* 🫀

एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है.


5. *सारे कैमरे और दूरबीनें फेल* 👁️

इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके.


6. *नाक में एंयर कंडीशनर* 👃🏻

हमारी नाक में प्राकृतिक एयर कंडीशनर होता है. यह गर्म हवा को ठंडा और ठंडी हवा को गर्म कर फेफड़ों तक पहुंचाता है.


7. *400 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार* 🧠

तंत्रिका तंत्र 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से शरीर के बाकी हिस्सों तक जरूरी निर्देश पहुंचाता है. इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब से ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं.


8. *जबरदस्त मिश्रण* 🍯

शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा बड़ी मात्रा में कार्बन, जिंक, कोबाल्ट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, निकिल और सिलिकॉन होता है.


9. *बेजोड़ छींक* 😤

छींकते  समय बाहर निकलने वाली हवा की रफ्तार 166 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है. आंखें खोलकर छींक मारना नामुमकिन है.


10. *बैक्टीरिया का गोदाम* 👤

इंसान के वजन का 10 फीसदी हिस्सा, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होता है. एक वर्ग इंच त्वचा में 3.2 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं.


11. *ईएनटी की विचित्र दुनिया* 🦻

आंखें बचपन में ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं. बाद में उनमें कोई विकास नहीं होता. वहीं नाक और कान पूरी जिंदगी विकसित होते रहते हैं. कान लाखों आवाजों में अंतर पहचान सकते हैं. कान 1,000 से 50,000 हर्ट्ज के बीच की ध्वनि तरंगे सुनते हैं.


12. *दांत संभाल के* 🦷

इंसान के दांत चट्टान की तरह मजबूत होते हैं. लेकिन शरीर के दूसरे हिस्से अपनी मरम्मत खुद कर लेते हैं, वहीं दांत बीमार होने पर खुद को दुरुस्त नहीं कर पाते.


13. *मुंह में नमी* 👅

इंसान के मुंह में हर दिन 1.7 लीटर लार बनती है. लार खाने को पचाने के साथ ही जीभ में मौजूद 10,000 से ज्यादा स्वाद ग्रंथियों को नम बनाए रखती है.


14. *झपकती पलकें* 🥺

वैज्ञानिकों को लगता है कि पलकें आंखों से पसीना बाहर निकालने और उनमें नमी बनाए रखने के लिए झपकती है. महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी बार पलके झपकती हैं.


15. *नाखून भी कमाल के* 👆

अंगूठे का नाखून सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ता है. वहीं मध्यमा या मिडिल फिंगर का नाखून सबसे तेजी से बढ़ता है.


16. *तेज रफ्तार दाढ़ी* 🧔🏻

पुरुषों में दाढ़ी के बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं. अगर कोई शख्स पूरी जिंदगी शेविंग न करे तो दाढ़ी 30 फुट लंबी हो सकती है.


17. *खाने का अंबार* 😋

एक इंसान आम तौर पर जिंदगी के पांच साल खाना खाने में गुजार देता है. हम ताउम्र अपने वजन से 7,000 गुना ज्यादा भोजन खा चुके होते हैं.


18. *बाल गिरने से परेशान* 👴🏻

एक स्वस्थ इंसान के सिर से हर दिन 80 बाल झड़ते हैं.


19. *सपनों की दुनिया* 🤔

इंसान दुनिया में आने से पहले ही यानी मां के गर्भ में ही सपने देखना शुरू कर देता है. बच्चे का विकास वसंत में तेजी से होता है.


20. *नींद का महत्व* 😴

नींद के दौरान इंसान की ऊर्जा जलती है. दिमाग अहम सूचनाओं को स्टोर करता है. शरीर को आराम मिलता है और रिपेयरिंग का काम भी होता है. नींद के ही दौरान शारीरिक विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स निकलते हैं.


⏳ *इस अनमोल विरासत का ध्यान रखें, अच्छा स्वास्थ्य ही परम धन है, जान है तो जहान है ।*

😷  दूरी बनाए रखें, मास्क का प्रयोग करें। 🙏

*ईश्वर का दिया हुआ यह शरीर हमारी अमूल्य धरोहर है इसका विशेष ख्याल रखे उचित खान पान नियमित प्राणायाम करे, व्यसन से दूर रहे निरोगी जीवन जिये* 

*Health is wealth.

वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की लघु कथा- सच्चा ज्ञान

 


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नदी के किनारे एक साधू महात्मा तपस्यारत  थे।  तभी   उन्हें   यह आभास  हुआ  कि  कोई   उनको नाम  लेकर  पुकार  रहा  है। परंतु उन्होंने  बिना  नेत्र  खोले  तपस्या जारी रखी।

           कुछ समय के पश्चात पुनः वही   आवाज़  उनके   कानों   में पड़ी, तो उन्होंने अपने  नेत्र  खोले और देखा कि  एक   जीर्ण - क्षीर्ण दरिद्र    व्यक्ति     उनके    सम्मुख खड़ा-खड़ा   मुस्कुरा  रहा  है।यह

देख कर साधू महात्मा ने क्रोध  में

भरकर उस दरिद्र व्यक्ति  से  कहा 

तेरा  इतना  साहस,  कि   तू  मेरा नाम लेकर पुकारे और मेरे तपको

भंग करने का घोर  अपराध  करे।

      जब कि मैं  तुझे  जानता भी नहीं।

यह सुनकर उस दरिद्र  व्यक्ति  ने

बड़ी विनम्रता से  कहा महात्मन आप मेरा  परिचय  प्राप्त  करके 

भी क्या  करेंगें।मैं तो ऐसे ही घूम

घूमकर  यह  जानने  का  प्रयास 

करता रहता हूँ कि  इस धरा पर असली साधू कौन है।

        असली साधू,,,यह सुनकर 

साधू  महात्मा  चौंके  और  बोले 

यह जानकारी लेने वाला तू कौन

है।तू क्या कोई भगवान है।  चल-

चल अपना काम देख आया बड़ा।

    तब दरिद्र व्यक्ति ने स्पष्ट  कहा 

 कि मैं देवलोक से आया हूँ बाकी 

तुम अपने तपोबल से मुझे जानने

का  प्रयत्न  कर  सकते  हो।परंतु तुम  मेरी   परीक्षा  में   पूरी  तरह

असफल रहे हो।उसका कारण भी तुम्हें बता देता हूँ।

    हे वत्स असली साधु वही होता

है,जो  बहुत विनम्र, संतोषी, शांत

स्वभाव,परोपकारी एवं काम,क्रोध

लोभ,मोह से कोसों दूर  हो। परंतु

मुझे  तुम में  ऐसा  कुछ भी  नहीं दिखा।

          तुम  अपनी  योगमाया  से मुझे पहचानने में भी असफल रहे

हो।अतः मैं अब जाता हूँ।उपरोक्त

गुणों पर ध्यान दोगे तभी तुम्हारा कल्याण होगा।

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              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   

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(05 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष) प्रकृति से छेड़ छाड़ अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला : रचनाश्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

 







जानबूझ कर पैर कुल्हाड़ी खुद मारी है हमने।
छेड़ छाड़ की खूब प्रकृति से देखे सुन्दर सपने।
पेड़ काट कर धरा प्रकृति को है विकृत कर डाला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला ।।

सुख साधन के चक्कर में पड़ कृतिम रूप अपनाया ।
प्रकृति सम्पदा को हमने ही दूषित कर ठुकराया ।
अमृत घट का किया अनादर भाया विष का प्याला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला ।।

पेड़ काट सौन्दर्य धरा का बिल्कुल किया सफाया ।
जल की की बर्बादी हमने जम कर खूब बहाया ।
सूखा और अकाल, पड़ेगा भूख प्यास से पाला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर, तज कर सुखद उजाला ।।

साँस-साँस को तड़प रहे हैं ऑक्सीजन को तरसे ।
हरे भरे तरु स्वंय हमीं ने तब तो काटे जड़ से ।
जीवन खतरे में स्थिति को यदि अब नहीं सम्हाला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला ।।

   👉 श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
                            व्याख्याता-हिन्दी
        अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार
                     भिण्ड, म०प्र०
             मो०- 8839010923

वृक्ष धरा के प्राण! वीरेन्द्र सिंह बृजवासी का बालगीत

 


मैं  धरा  के  प्राण  तुमको,

सौंपता  हूँ   यह  बताकर,

कभी अनदेखी न  करना,

जतन से रखना सजाकर।


सभी जीवों का  जगत में,

इन्हीं   से   उद्धार    होगा,

और  फलने   फूलने  का,

बस  यही  आधार   होगा।


सकल    देवी    देवताओं,

का  इन्हीं   में  वास होगा,

प्राण  वायु  का  सभी को ,

इन्हीं  में   विश्वास   होगा।


धरा   का   श्रृंगार    होगा,

सृस्टि  का  आधार  होगा,

जो   करेगा  प्यार   इनसे,

उसी  पर  उपकार  होगा।


नहीं   तो  नुकसान  होगा,

सकल जग  वीरान  होगा,

मौसमी  बदलाव का  तब,

आदमी  को   ज्ञान  होगा। 


भुखमरी  का  राज  होगा

मौत  का  आगाज़   होगा

सड़ चुकी लाशोंसे उठती,

गंध   का  आभास होगा।


जब अहमका त्याग होगा,

सत्य   से  अनुराग  होगा,

तब धरा की  शान  में भी,

जिंदगी  का  राग   होगा।


         



         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

              मुरादाबाद/उ,प्र,

              9719275453

               

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चंकु - मंकु और जंगल :रचना अंजू जैन गुप्ता

 




एक दिन रिया और टिया की मम्मी ने रिया से कहा,"  बच्चो देखो लगता है कि आज जोर से बारिश होने वाली है  चारों ओर घनघोर बादल भी छाए हुए है" ।मैं जल्दी से बाज़ार जाकर शाम के लिए कुछ सब्जियाँ व फल ले आती हूँ। तब तक तुम्हारे पापा भी दफ़्तर से आ जाएँगे परन्तु जब तक मैं बाज़ार से लौट कर नहीं आती तुम दोनों अंदर ही रहना। चलो, अब सारे दरवाज़े व खिड़कियाँ बंद कर लो।

रिया कहती है," ठीक है मम्मा आप जाओ और जल्दी लौट आना ",तभी रिया कहती है कि मम्मा- मम्मा,सुनो आप आते हुए हमारे लिए आइसक्रीम भी ले आना ।मम्मा कहती है ठीक है बच्चो अब अंदर से घर बंद लो और जब तक मैं नहीं आती तुम दोनों लड़ना नहीं यह कहकर मम्मा चली जाती है। 

अब रिया और टिया दोनों ही अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर टीवी  देखने लगती हैं। परन्तु कहीं से एक खिड़की खुली रह जाती है और उनके घर में दो बन्दर घुस आते हैं। टिया जैसे ही बन्दर को देखती है वह ज़ोर से रिया दीदी बन्दर - बन्दर चिल्लाते हुए सोफे के ऊपर चढ़ जाती है । बन्दरो को देख कर दोनों ही बहने डर जाती है। तभी बन्दर उन  बच्चियों को अकेले देखकर तुरंत ही खिड़की के बाहर लौट जाते हैं और बाहर से ही कहते हैं ," बच्चो बच्चो please हमसे डरो नहीं"। 

मैं हूँ 'चंकु 'और यह है  मेरा मित्र' मंकु'। 

हम तुम दोनों को काटने या तंग करने नहीं आए हैं। हमें तो ज़ोरों  से भूख लगी थी। हमने दो दिनों से कुछ खाया भी नही इसलिए हम तो यहाँ कुछ खाने के लिए ढूँढने आए थे।

तभी टिया बोल पड़ती है  खाना,  खाना है तो अपने घर जंगल में जाकर खाओ। यहाँ हमारे घर क्यों आए हो?

तभी चंकु कहता, टिया तुम सही कह रही हो पर क्या तुम्हें पता है कि आज कल सारे बड़े बिल्डरों





 ने  बड़े - बड़े माॅल, होटल, दफ्तर और कारखाने (factories) आदि  बनवाने के लिए हमारे घर जंगलो व पेड़  पौधों को कटवा दिया है। अब तुम ही बताओ कि हम कहाँ जाकर रहे ।यह सुनते ही टिया कहती है, "कि रहने दो चंकु -मंकु तुम हमें मूर्ख मत बनाओ"। तभी रिया बोल पड़ती है कि ,नहीं- नहीं बहन ये दोनों तो सही कह रहे हैं तुम अभी छोटी हो इसलिए तुम्हें पता नहीं है परन्तु फरीदाबाद, गुजरात, मुम्बई और Gurugram जैसी जगहों पर ऐसा ही हो रहा है।ऐसा सिर्फ़ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया के देशों में हो रहा है।  वहाँ पर जंगल व पेड़ पौधों को कटवा कर बड़े बड़े माॅ ल व होटल बनाए जा रहे है तो कहीं पर कारखाने (factories)खोले जा रहे है। तभी टिया कहती है पर दीदी ऐसा करना तो गलत है न,हमें किसी का घर नहीं तोड़ना चाहिए। 

फिर रिया उसे समझाती है और कहती है, कि हाँ- हाँ बहन तुम सही कह रही हो किसी का घर तोड़ना या रहने की जगह को नष्ट करना गलत है। जंगल और पेड़ पौधों को नष्ट करने से तो प्रदूषण होता है और  हमारे पर्यावरण का संतुलन भी  बिगड़ जाता है। तब टिया पूछती है पर दीदी वो कैसे? 

रिया समझाती है कि यदि हम पेड़ पौधों को काट देंगे तो वर्षा नहीं होगी और यदि वर्षा नहीं होगी तो धरती को पानी नहीं मिल पाएगा। जिससे कहीं सूखा पड़ जाएगा तो कहीं अनाज की कमी हो जाएगी।

दूसरा इससे पर्यावरण को भी नुकसान होगा हमें ताज़ी हवा और ऑक्सीजन भी भरपूर मात्रा में नहीं मिल पाएगी।तभी टिया बोल पड़ती है कि हाँ- हाँ दीदी मेरी मैम ने भी बताया था कि ,"अगर हमें ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो हम सब मर जाएँगे यह तो हमें जीवन देती है"।

हाँ- हाँ टिया तुम सही कह रही हो पेड़ पौधों व जंगलो के कट जाने से ऋतुओं (seasons)में भी परिवर्तन आया है अब धरती पर तापमान बढता जा रहा है अर्थात अब धरती और गर्म हो रही है। तभी चंकु और मंकु कहते है हाँ- हाँ रिया दीदी आप सही कह रहे हो।अब हम भी चलते हैं। तभी टिया कहती है अरे!नहीं- नहीं चंकु- मंकु ,रूको -रूको ;चंकु कहता है ,क्या हुआ टिया?टिया कहती हैकि,  रिया दीदी तुम दोनों के लिए कुछ खाने का लेने गई है ।ये लो दीदी आ भी गई ।तब रिया उन्हें केला,सेब व अगूंर खाने के लिए देती है ।वे दोनों खाकर बहुत खुश होते हैं और कहते है," कि रिया और टिया तुम दोनों बहुत अच्छी हो"।तभी रिया कहती है, कि चंकु -मंकु तुम चिंता मत करो हमारे पापा "जागरूक रहो "अखबार के संपादक (editor)है। हम अपने पापा से बात करेंगे और बोलेंगे कि इस समस्या के बारे में अपने अखबार में लिखें ताकि सभी को  जंगल न काटने व पेड़ पौधों को लगाने के लिए प्रेरित  किया जा सके और इस समस्या का भी कुछ समाधान निकल सके।चंकु और मंकु कहते है कि , धन्यवाद रिया और टिया। तभी रिया कहती है कि," चंकु मंकु तुम चिंता मत करो और जब कभी भी तुम दोनों को कुछ खाना हो तुम यहाँ आ सकते हो"। बाॅय बाॅय।



अंजू जैन गुप्ता