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बुधवार, 16 जून 2021

शामू 5 धारावाहिक सीरीज शरद कुमार श्रीवास्तव

 



अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत मियाँ  ने शामू से पूछा कि काम करोगे।   शामू ने तुरंत हाँ कर दी  और इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । अपने एक साथी की मदद से खाने के समय या खाली समय थोड़ी पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई थी ।  कुछ  ही दिनो  मे गैरेज के  टूल्स  औज़ार  आदि  के  नाम  का  पता  हो गया था।   इस नये काम से उसपिता बिहारी  और  उसकी दादी  भी खुश  थी ।    इशरत भाई  को उसने कई बार ग्राहक के छूटे रुपए पैसे जो गाडी में मिलते थे वह ला कर दिए थे ।   इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे।


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इशरत मियाँ  के पिता के भाई लोग  भारत  पाकिस्तान  के  बटवारे  के  समय पाकिस्तान  चले गये  थे ।  लेकिन  इशरत  मियाँ  के  पिता  जी   अपने  परिवार  के  साथ  भारत  छोड़कर  नहीं  गये ।  इशरत  मियाँ  अपने  माता पिता की इकलौती  संतान  थे  और उनका  भी एक ही बेटा था ।  इन्टरमीडियेट मे पढ़ रहा था नाम था नुसरत सिद्दीकी ।  वह लिखने पढने मे तेज था।  इशरत  भाई  उसकी मेहनत  लगन  को अहमियत  देते  थे  ।  नुसरत  की  पढ़ाई  लिखाई  की ओर विशेष  ध्यान  दिया  करते थे ।  नुसरत पढाई में से कुछ समय निकाल कर अपने पिता के गैरेज जाता था अपने पिता को खाना खाने के लिये घर भेजने के लिए । उस समय वह कालेज से आ चुका होता था । शामू के पढने के शौक को देखकर वह समय समय पर उसकी सहायता भी कर दिया करता था । दरअसल कालेज में नुसरत के एक लेक्चरार ने गरीब बच्चों की पढ़ाई की समस्या का जिक्र किया था । संवेदनशील नुसरत भी सोचता था कि वह इस दिशा में काम करे तो उसको आसानी से इस बात का मौका भी मिल गया अतः शामू को अपनी खुशी से पढ़ा रहा था और वह इसके लिए भगवान का शुक्रगुजार था ।
शामू का पिता , बिहारी, हमेशा इतवार को आता था । अपने माँ को और अपने बेटे के पास , उन्हें देखने के लिए । वह शामू से खुश रहता था। उसकी हमेशा इच्छा रहती थी कि शामू पढ लिख कर बड़ा आदमी बन जाय। लेकिन स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाने से वह असहाय महसूस करता था। भीख से पाये पैसे वह अपनी माँ के हाथों में सौंप जाता था। शामू की दादी उन पैसों को बहुत जतन से रखती थी। शामू को भी वह पता नहीं था कि दादी के पास पैसा है।
एक दिन शामू घर गया तो उसने देखा कि उसकी दादी रो रही है । शामू ने जब दादी से पूछा तब दादी ने उसे कुछ रुपयों की गड्डी दिखाई जिसे कीड़े खा गये थे । शामू दूसरे दिन गैरेज गया तब दादी से पूछकर अपने साथ उन रुपयों को भी ले गया ।
इशरत मियाँ को उसने नोट दिखाए । कुछ नोट काम के थे । कुछ नोट बाजार में चल नहीं सकते थे उन रुपयों को लेकर इशरत भाई शामू के साथ नोट बदलने वाले की दुकान में ले गये जहाँ कमीशन पर नोट बदले जाते थे । वहां भी शामू को कुछ रुपये मिल गये । इशरत मियाँ ने शामू से कहा अब तो तुम कुछ पढ़ लिख सकते हो अपना नाम लिख सकते हो और बारह साल के हो गये हो । अतः पैसों को बैंक के खाते में रखो । उन्होंने शामू को बैंक के खाते के बारे मे समझाया । शामू को इशरत मियाँ एक दिन अपने साथ बैंक लेकर गये और उसका खाता खुलवा दिया । अब उसने हर माह अपनी तनख्वाह के रुपये और दादी के दिये रुपये बैंक की पासबुक में जमा करना शुरू कर दिये थे ।


आगे अंक 6 मे



शरद कुमार श्रीवास्तव 


 

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