जानबूझ कर पैर कुल्हाड़ी खुद मारी है हमने।
छेड़ छाड़ की खूब प्रकृति से देखे सुन्दर सपने।
पेड़ काट कर धरा प्रकृति को है विकृत कर डाला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला ।।
सुख साधन के चक्कर में पड़ कृतिम रूप अपनाया ।
प्रकृति सम्पदा को हमने ही दूषित कर ठुकराया ।
अमृत घट का किया अनादर भाया विष का प्याला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला ।।
पेड़ काट सौन्दर्य धरा का बिल्कुल किया सफाया ।
जल की की बर्बादी हमने जम कर खूब बहाया ।
सूखा और अकाल, पड़ेगा भूख प्यास से पाला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर, तज कर सुखद उजाला ।।
साँस-साँस को तड़प रहे हैं ऑक्सीजन को तरसे ।
हरे भरे तरु स्वंय हमीं ने तब तो काटे जड़ से ।
जीवन खतरे में स्थिति को यदि अब नहीं सम्हाला ।
अंधकार में धँसे निरन्तर तज कर सुखद उजाला ।।
👉 श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
व्याख्याता-हिन्दी
अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार
भिण्ड, म०प्र०
मो०- 8839010923
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