मैं धरा के प्राण तुमको,
सौंपता हूँ यह बताकर,
कभी अनदेखी न करना,
जतन से रखना सजाकर।
सभी जीवों का जगत में,
इन्हीं से उद्धार होगा,
और फलने फूलने का,
बस यही आधार होगा।
सकल देवी देवताओं,
का इन्हीं में वास होगा,
प्राण वायु का सभी को ,
इन्हीं में विश्वास होगा।
धरा का श्रृंगार होगा,
सृस्टि का आधार होगा,
जो करेगा प्यार इनसे,
उसी पर उपकार होगा।
नहीं तो नुकसान होगा,
सकल जग वीरान होगा,
मौसमी बदलाव का तब,
आदमी को ज्ञान होगा।
भुखमरी का राज होगा
मौत का आगाज़ होगा
सड़ चुकी लाशोंसे उठती,
गंध का आभास होगा।
जब अहमका त्याग होगा,
सत्य से अनुराग होगा,
तब धरा की शान में भी,
जिंदगी का राग होगा।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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बहुत ही सुंदर रचना।
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