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शनिवार, 26 नवंबर 2022

बर्लिन और बर्लिन की दीवार : शरद कुमार श्रीवास्तव

 





बर्लिन जर्मनी की राज धानी है दिनांक   10.11.2022 को इस राष्ट्र की इसे पश्चिमी जर्मनी और जर्मनी गणराज्य को विभाजित करने वाली दीवार को ढहाने की कहानी की 31 वीं वर्षगांठ थी  

दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति एक सैनिक सन्धि से हुई जिसमे जर्मनी 1949 मे दो भागो मे बंट गया।   जिसमे पश्चिम जर्मिनी अमेरिका द्वारा समर्थित राष्ट्र बना तथा पूर्वी जर्मिनी एक सोवियत संघ द्वारा समर्थित राज्य था ।  दोनो राष्ट्रों मे पूर्वी  जर्मनी से बेहतर काम के अवसरो की तलाश मे भारी पालायन प्रारम्भ हुआ ।  पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ  समर्थित गणतन्त्र मे पश्चिमी जर्मनी के लोग आकर पूर्वी जर्मनी के खर्चे पर फ्री मे उच्च शिक्षा लेकर पश्चिमी जर्मनी भाग जाते थे।  दूसरी समस्या गुप्तचरी जोरो पर थी और उसपर कोई अंकुश नही लग पा रहा था।  इस पर वर्ष 1962 मे रातोरात पहले कंटीले तार लगाए गये फिर 45 किलोमीटर लम्बी दीवार खड़ी की गई।  इसके लिये तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति निकिता खुर्शचेव की स्वीकृति थी ।  इस दीवार के बनने से पालायन काफी कम हो गया लेकिन इस दीवार के दोनो पार जर्मनी निवासियों के अपने ही लोग थे वे रातों रात अलग हो गये थे।  अतः इस दीवार के बनने का खूब विरोध हुआ।  लोग चोरीछुपे दीवार पार करने की कोशिश करते और  पकड़े जाते थे । कुछ मामलों मे लोगों ने जाने भी गंवाईं ।  कभी दीवार से छलांग लगाकर कभी गुब्बारे मे तो कभी सुरगं बनाकर दीवार पार करने की कोशिश होती थी।   परन्तु सुरक्षा व्यवस्था बहुत सुदृढ़ थी।   पैंतालीस किलोमीटर पर सेना की लगभग 90 चौकियाँ थी।  1989 मे सोवियत राष्ट्र की पकड़ ढीली पड़ी और दीवार के दोनो ओर के राष्ट्रों ने बर्लिन की दीवार उसके बनने के  लगभग 28 वर्षों बाद गिरा दी और वर्ष 1990  मे फिर दो महान जर्मन राष्ट्रों का आपस मे विलय हुआ ।    क्या हम अपने दिलों की दीवारे नहीं हटा सकते ?


शरद कुमार श्रीवास्तव 

रानी लक्ष्मी बाई के जन्म दिवस पर विशेष भेंट : शरद कुमार श्रीवास्तव




 वाराणसी मे 19 नवम्बर 1835 को जन्मी झांसी की रानी का नाम बहुत श्रद्धा से स्वतंत्रता सेनानियों मे लिया जाता है।   भारत के बहुत स्थानों मे अपनी कन्याओं का नाम करण लोग इसी वीरांगना झासी रानी के नाम पर करते है. झासी की रानी का बचपन मे नाम मणिकर्णिका और प्यार का नाम मनु था।  ये पिता मोरोपन्त और माता भागीरथी देवी की सन्तान थीं इनकी माता भागरथी देवी का देहान्त मनु जब मात्र चार वर्ष की थी तभी हो गया था।  पिता, पेशवा बाजीराव के यहाँ कार्यरत थे।  मनु की घर मे देख भाल सुचारु रूप से नही हो सकने की वजह से इनके पिता इन्हे भी पेशवा के दरबार मे ले गये।   पेशवा के बच्चो के साथ मनु की शिक्षा हुई।  मनु ने बचपन मे ही पढाई लिखाई के साथ अस्त्र शस्त्रो मे निपुणता प्राप्त की।   स्वभाव से चंचल होने की वजह से मनु को लोग प्यार से छबीली भी कहते थे।   बाजीराव पेशवा के पुत्र नानाराव के साथ इनका बचपन बीता।   वो नाना के साथ ही पढ़ती और खेलती थी।   एक बार नाना हाथी पर सवारी कर रहे थे तो मनु ने भी हाथी पर बैठने को कहा तो किसी ने ध्यान नही दिया।  मनु नाराज हो गई और बोली कि मेरे भाग्य मे एक नहीं सौ हाथी का सुख लिखा है।   
कालान्तर मे मनु का विवाह बड़ी धूमधाम से झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ. मनु का नाम राजा ने लक्ष्मीबाई रखा।  रानी को घर मे बंधकर रहना पसन्द नहीं था।  उन्होंने राजा से कहकर  महल मे ही स्त्रियो के लिये व्यायाम शाला बनवाई और एक स्त्री सेना भी गठित की।   राजा गंगाधर राव रानी दक्षता से बहुत प्रभावित थे रानी को अच्छे घोडो की भी खूब पहचान थी।   एक बार घोडों का एक व्यापारी दो घोड़े लाया।  रानी ने एक घोड़े का दाम 1000 रुपये तो दूसरे का दाम पचास रुपये लगाए।   पूछने पर रानी ने बताया एक घोड़ा उम्दा किस्म का है जबकि दूसरे घोड़े की छाती पर चोट है।   रानी दया वान भी बहुत थी एक बार एक गाँव से गुजरते समय उस गाँव के कुछ निवासियों को सर्दी मे ठिटुरते हुऐ देखा।   उनका मन द्रवित हो गया और शीघ्र ही उन्होने उन लोगो के लिये गरम वस्त्रों की व्यवस़्था की।
कुछ समय बाद रानी के एक पुत्र हुआ. झाँसी मे आनन्दोत्सव मनाया गया। परन्तु यह आनन्द क्षणिक था बालक कुछ महीनो बाद बीमार पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।   शोकाकुल राजा गंभीर रूप से बीमार पड़ गये।   लोगो की सलाह पर राजा ने अपने परिवार के पाचवर्षीय बालक को गोद ले लिया।  अगले ही दिन राजा परलोक सिधार गये। रानी पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। अंग्रेजो ने सोचा यह अच्छा मौका है झाँसी को हासिल करने का.. रानी ने राजा के दत्तक पुत्र के अभिभावक के रूप मे सत्ता की बागडोर अपने हाथ मे ली थी।इस अंग्रेजो ने रानी को पत्र भेजा कि राजा के कोई पुत्र नहीं है इसलिये झाँसी पर अब उनका अधिकार होगा।  पत्र पाकर रानी ने उसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मै अपनी झाँसी नहीं दूंगी।   झाँसी की स्वामी भक्त जनता रानी के साथ एक स्वर हुई. रानी नेे कुशल किले बन्दी की. गौस खाँ और खुदाबक्श तोपची वफादार सरदारों और सैनिको के बुलन्द हौसलो ने अंग्रेजो की तोपों बन्दूको से लैस सेना के दाँत खट्टे कर दिये।  आठ दिनो के निरन्तर युद्ध किया। अंग्रेजों ने जब देखा कि ऐसे विजय हासिल होने वाली नहीं है तो छल से एक सरदार दूल्हा सिंह को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया।  रात मे उस गद्दार सरदार ने किले के दरवाजे खोल दिये।  बस फिर क्या था फिरंगियों की सेना महल मे प्रवेश कर गई उसने खूब लूटपाट मचाई बच्चो और स्त्रियों को काट ने लगे।   रानी लक्ष्मी बाई के कुशल नेतृत्व मे सैनिको ने बहुत बहादुरी से फिरंगियों की विशाल सेना का सामना किया।
रानी के विश्वस्त लोगो ने अपनी रणनीति की तहत कालपी की तरफ कूच करने की सलाह दी।  रानी कालपी की तरफ बढ़ रही थी। घोड़ों पर सवार बन्दूक धारी सैनिक रानी पर आक्रमण कर रहे थे कि एक गोली रानी की जाँघ पर लगी रानी की गति मे अवरोध हुआ कि घुड़सवार पास आ गये. थकी रानी के साहस मे कोई कमी नहीं थी एक घुड़ सवार पास आकर हमला कर रहा था कि रानी की तलवार ने बिजली की गति से उस पर प्रहार कर उसेे परलोक पहुँचा दिया।  इसी बीच लक्ष्मी बाई की प्रिय सखी की चित्कार सुनकर उसका संहार करने वाले अंग्रेज घुड़सवार को यमलोक पहुँचा दिया था।   रानी ने पुनः घोड़ा दौडाया परन्तु घोड़ा प्रयास के बावजूद एक नाला पार नहीं कर पाया कि एक अंग्रेज सैनिक ने रानी के सिर पर तलवार से वार किया और सीने मे संगीन भोंक दी परन्तु वीरान्गना रानी ने उस हालत मे भी अपने मारने वाले को मार दिया। रानी के स्वामीभक्त सिपहसालार गुलाम मोह्म्मद ने वीरता से अंग्रेजो को खदेड़ दिया और रामाराव देशमुख रक्त रंजित रानी को पास ही गंगादास की कुटिया मे लाये जहाँ मृत्युआसन्न रानी ने गंगाजल पी कर 22 वर्ष की अल्पायु मे 18 जून 1858 को देश मे क्रान्ति की एक अमर ज्योति जलाने वाली वीरांगना ने अपने शरीर का त्याग किया
इस संदर्भ मे कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ इस वीरांगना की श्रद्धा मे समर्पित हैं
बुन्देले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झासी वाली रानी थी।।



शरद कुमार श्रीवास्तव 


सर्दी की धूप बन गई सहेली : बालगीत: रचना डॉक्टर राम गोपाल भारतीय







नन्हीं सी मुनिया बुझा रही पहेली
सर्दी की धूप बन गई है सहेली

मुनिया की आंखों में विस्मय निराला
कौन है जो दुनिया को बांटता उजाला
सूरज की किरणें लगी नई सी नवेली
सर्दी की धूप बन गई है सहेली

किरणों को नन्हें हाथ से पकड़ना चाहे
धूप के रथ पर बैठ नभ में उड़ना चाहे
झुरमुट से झांक रही धूप संग खेली
सर्दी की धूप बन गई है सहेली

पेड़ नाचने लगे हैं फूल मुस्कुराये
हवा को भी पंख लगे पंछी चहचहाये
आंगन में जब से हंसी मुनिया की फैली
सर्दी की धूप बन गई है यह सहेली





डॉ  रामगोपाल  भारतीय

कवि और ग़ज़लकार  

128 शीलकुंज, मोदीपुरम

मेरठ 

उत्तर प्रदेश 

मजबूत इरादों की महिला इन्दिरागाँधी

 



हमारे देश की प्रथम महिला प्रधान  मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवंबर, सन् 1917 को हुआ  था ।  वे पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकमात्र संतान थीं। बचपन मे उनकी परवरिश अपनी माँ की देखरेख में हुआ।   माँ की बीमारी  के कारण माँ  उनकी सुश्रुषा और  देखरेख मे व्यस्त रहने के कारण वे गृह सम्बन्धी कार्यों से अलग रहीं ।  इन्ही परिस्थितियों मे इंदिरा गाँधी मे स्वतंत्र विचारों वाली एक निर्भीक व्यक्तित्व वाली महिला का रूप विकसित हुआ। 

इन्दिरा गाँधी की स्वतन्त्रता आंदोलन मे पदार्पण मात्र 12-13 वर्ष  की आयु मे  बच्चों की वानर सेना बना कर हुआ।    इस वानर  सेना का काम सरकार का विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस के साथ साथ कांगेस के नेताओं की मदद करना था ।  एक बार उन्होंने पुलिस की नजरों से बचाकर अपने पिता के घर से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमे 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम  से बाहर पहुंचाया था।

 स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में1934–35 में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं ।  लंदन मे उनकी मुलाकात  इलाहाबाद  के फिरोज से हुई जो आगे चलकर विवाह  मे बदली 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी  समारोह में इनका विवाह फिरोज़ बृह्म वैदिक रीति   से हुआ। 

फिरोज गाँधी और इन्दिरा जी के राजीव और संजय दो पुत्र  हुए ।   वर्ष1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।[4]

लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। वे एक जनप्रिय  नेता के रूप मे उभरीं और कृषि तथा व्यापार संबंधी अनेक प्रकार के  सुधार किए।  वे 1971 के   पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता के युद्ध के समर्थन में पाकिस्तान के साथ युद्ध में चली गईं, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय की जीत और बांग्लादेश का निर्माण हुआ, साथ ही साथ इस जीत से भारत का प्रभाव विश्व मे उस बिंदु तक बढ़ गया जहां भारत दक्षिण की एकमात्र क्षेत्रीय शक्ति बन गया।  ।   देश को अपने नेतृत्व मे आगे ले जाने के लिए उन्हे कठोर निर्णय  लेने पड़े फलस्वरूप बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिति में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया ।  तदुपरांत  उन्हे एवं काँग्रेस पार्टी को वर्ष 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में पुनः सत्ता में लौटने के बाद उनके पंजाब के अलगाववादियों के प्रति कड़े रुख के कारण  जिसमे  सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई।

विश्व  श्रीमती इंदिरा गाँधी को भारत  की आइरन लेडी के रूप मे जानता है।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

बुधवार, 16 नवंबर 2022

पापा एक कहानी लिख दो, एक था राजा-रानी लिख दो। वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बल कविता

 बाल कविता /कहानी लिख दो!

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पापा एक कहानी लिख दो,

एक था राजा-रानी लिख दो।


राजा   बड़ा    विनम्र   बेचारा,

था  सबकी  आंखों  का  तारा,

सबको  हँसकर  गले  लगाता,

पीड़ाओं  को   तुरत   मिटाता,

लेकिन   रानी  सूरत   से   ही,

लगती बड़ी  सयानी लिख दो।


भूखों   की   बस्ती   में  जाता,

खाने   की    चीजें    बंटवाता,

प्यासे  जन-मानस को  अपने,

हाथों   से   पानी    पिलवाता,

कर्कश  रानी  धन-दौलत  की,

रहती सदा  दिवानी  लिख दो।


राजा   जब   दरबार   लगाता,

सच्चा - सच्चा  न्याय  सुनाता,

अपराधी के  साथ  कभी  भी,

दया  भावना   नहीं   दिखाता,

इसके  उलट  स्वयं  रानी  की,

लालच भरी कहानी लिख  दो।


बच्चों   को   उपहार   बांटता,

नहीं किसी को कभी  डाँटता,

गोदी   लेकर   बड़े   प्यार  से,

घोड़ा - गाड़ी   स्वयं   हाँकता,

भीतर   ही   भीतर  रानी   के,

उठती हूक  सुहानी  लिख दो।


मचल गया  रानी का मन भी,

छूने  को बच्चों  का  तन  भी,

हाथ  पकड़  सारे  बच्चों  का,

चली  घूमने  वह   उपवन भी,

पूछा  राजा   ने,   बच्चों    से,

कैसी  है  महारानी  लिख  दो।

     


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

           9719275453

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जनजातीय गौरव दिवस पर छत्तीसगढी भाषा मे प्रिया देवांगन प्रियू की बालकहानी // प्रभा के बालदिवस //

 




     

 







         प्रभा अउ शालू  दूनोंझन सहेली रिहिसे। सँघरा खेलय-कूदय। पर दूनोंझन स्कूल नइ जावत रहैं। सबले बड़का समस्या की वो मन देवार जाति मा पैदा होय रिहिसे। तेखर कारण पढ़ई-लिखई ले बनेच दुरिहा रहैं। प्रभा ला पढ़े-लिखे के अब्बड़ सउँख रहै। दूसर लइका मन ला स्कूल जावत देखय बेग, कॉपी-किताब,रंगीन ड्रेस त "अगास म उड़े अस लागय। काश ! महूँ स्कूल जातेंव। ओखर जाति मा शिक्षा ला जादा महत्व नइ देवत रिहिसे।

प्रभा ह अपन माँ ल अब्बड़ जिद्द करे - "माँ महूँ स्कूल जाहूँ न वो... । दूसर ल देखथों त मोरो मन करथे। प्रभा के माँ प्रभा ला चुप करा दे - "काय करबे स्कूल जा के ?" हमर जाति मा पढ़ई-लिखई नइ करे; अउ टूरी मन तो अउ कुछू नइ कर सकँय। चुपचाप बोरी धर अउ जा कबाड़ी; कचरा ला बिन के लाबे, बेचबो तभे तो खाबो का ? कोन सा अफसर बनबे पढ़-लिख के ?"

          प्रभा चुपकन भीतरी मा चल दिस।

प्रभा - शालू ला अब्बड़ बोलय कि शालू चल न हमन घलो स्कूल जाबो। बढ़िया खेल-कूद अउ गाना सिखबो। शालू मना कर दे- "मोला सुउंँख नइ हे । तहू झन जा।"

          प्रभा ला थोर-बहुत हिंदी बोले ला आ जावत रिहिसे। स्कूल के लइका मन ल बोलत देखे त वहू कोशिश करे। अचानक एक दिन बिहनिया ले प्रभा स्कूल जाय के ठान लिस। आज मैं दाखिला करवा के रहूँ। वोहा हिम्मत कर के "अंधियार म तीर चलाये" के सोचिस।

गुरुजी- "मोला पढ़ने का अब्बड़ सउँख है। लेकिन माँ-बाबू मन झन पढ़ कहते हैं। उहाँ के लइका मन ओखर हिंदी ला सुन के अब्बड़ मजाक उड़ावय। गुरुजी ह कुछ सोच-विचार कर के बोलिस कि ठीक हे कल ले आ जाबे। 

प्रभा के खुशी के ठिकाना नइ रहै । प्रभा दउड़त शालू  करा गिस अउ बताइस गुरुजी ह कल ले स्कूल बुलाये हे शालू। तहू जाबे का? शालू मुँह बनात बोलिस - "नहीं मोला नइ जाना हे। प्रभा ठीक हे ! तोर मन!" काहत घर चल दिस।

          दूसर दिन प्रभा बोरी ल धरिस अउ चुपचाप घर ले निकल गे। घर वाले मन सोचिस के काम म जावत हे। शालू ल घर वाले मन ल बताये बर मना कर दे राहै। 

          प्रभा मन लगा के पढ़ाई-लिखाई करय। गुरुजी घलो खुश रहै ।ओखर देवार जाति के कारण ओला बहुत सारा परेशानी के भी सामना करना पड़ै। तभो ले प्रभा हार नइ मानय।

          कुछ दिन बाद स्कूल मा बाल दिवस मनाये बर सूचना दे गिस। प्रभा ये सब नइ जानत रिहिसे की ये होथे का ? ओहर गुरु जी ले पूछिस- "गुरुजी बाल दिवस का होथे। ये दिन लइका मन बाल कटवाथे का ?" गुरुजी हाँस दिस। अउ बताइस- "हमर स्वतंत्र भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के जन्मदिन आय; अउ नेहरू जी ह लइका मन ला अब्बड़ मया-दुलार करै, तेखर सेती ये दिन स्कूल मन म बाल दिवस मनाथे अउ लइका मन ला चॉकलेट बाँटथे। हमर स्कूल म ये दिन जेन लइका पहला आय हे तेन ला इनाम घलो देबो। गीत, कविता, भाषण अउ सांस्कृतिक कार्यक्रम घलो होही।

प्रभा के मन मा चले लगिस कि मैं भी कुछ बोलहूँ। 

          शालू ला बाल दिवस के बारे म बताइस त शालू के कान म जूँ तको नइ रेंगिस।

बालदिवस म खेल-कूद, भाषण के सूचना गाँव भर फइलगे। जम्मो लइका के दाई-ददा मन स्कूल जाय बर तइयार होगे। दूसर दिन बालदिवस के आयोजन होइस त प्रभा के दाई-ददा घलो गे राहय अउ ओखर समाज वाले मन तको गेय राहैं। प्रभा के दाई के नजर प्रभा ऊपर परिस त ओखर बाबू ला कहिथे देखव तो वो हमर प्रभा हरै लगत हे ड्रेस पहिरे हे त चिन्हात घलो नइ हे। प्रभा के ददा के घुस्सा तरवा मा चढ़ गे। ये टूरी के अतेक हिम्मत के बिन बताये स्कूल आवत हे, आज तो घर म घुसे ल नइ दों। ओखर दाई घलो घुस्सा करे लगिस। 

          स्कूल म खेल-कूद अउ भाषण  प्रतियोगिता होइसे। सब मा प्रभा भाग ले राहे। अउ जीतत भी रिहिसे। प्रभा अपन कक्षा मा पहिला आये रिहिसे, तेकर ईनाम के घोषणा उहाँ के बड़े गुरुजी करिस । जब नाम बताइसे त लोगन के पाँव तरी के जमीन खिसक गे। काबर की प्रभा पहला आये रिहिसे। जोरदार ताली बजाइस। सब के सब ।गुरुजी बताइस कि आज दुनिया म कोनों ल अशिक्षित नहीं रहना चाहिए। निरंतर प्रयास करना चाहिए। प्रभा के पढ़ई म लगन अउ मेहनत ल देख के मँय आगे पढ़ाये के सोचे हँव। येखर माँ-बाबू जी अउ पूरा देवार समाज ले निवेदन हे कि आप अपन समाज ल शिक्षित करव अउ एक दिन प्रभा ये काम ल पूरा करही। भाषण ल सुन के प्रभा के दाई-ददा अउ पूरा देवार समाज के आँखी म आँसू आगे। समझ म आइस की हमन गलत रेहेन। हमर लइका तो हीरा निकलगे। अउ बहुत खुश हो के ओला गला लगा लिस।           सबझन ताली बजाइन। ये सब ल देख के शालू ला अब्बड़ पछतावा होवत रिहिसे कि काश ! महूँ प्रभा के बात मान लेतेव त आज ओखर संग मा खड़े रहितेंव।

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रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

गुलाबी ठंड" (हाइकु) रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"






गुलाबी ठंड
चलती पुरवाई
गुदगुदाती।।

ओस की बूंँदें
धरती पर आती
मन लुभाती।।

वातावरण
दिखते उपवन
आनंद आये।।

कोहरा छाये
धुँधला चहुँओर
धुआँ ही धुआँ।।

सूर्य निकला
पंछी चहचहाये
उड़े गगन।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

 

भ्रष्टाचार"



रोये जनता रोज जी, कौन लगाये पार।
जिसको जितना मानते, निकले भ्रष्टाचार।।
निकले भ्रष्टाचार, दिखे वो सीधा सादा।
फैलाते हैं हाथ, यहाँ भी कर के वादा।।
माथा पकड़े आज, मुनाफा कैसे होये।।
नेता का है राज, देश में जनता रोये।।

बैठे दफ्तर में यहाँ, कुर्सी का है खेल।
रौब दिखाते घूमते, अंदर झेल झमेल।।
अंदर झेल झमेल, दिखावा करते सारे।
लूटे जनता रोज, तनिक ये होय किनारे।।
गिन गिन हर दिन नोट, देख कर ऐसे ऐंठे।
जीवन का आधार, सदा दफ्तर में बैठे।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


बालपन : अर्चना सिंह जया की रचना

  



याद आते वो कल वो गुज़रे ज़माने, बचपन के वो दिन सुहाने,


कितना भोला, कितना सच्चा तितली-सा कितना चंचल था मन।


कभी इधर तो कभी उधर, पल-पल लेते थे काया बदल।


बंदर जैसे उछल कूद कर, मगर से झूठे आंसू बहाकर,


बेतुकी हरकतों से तंग कर,बिन बात हंसते-हंसाते जोकर बन।


कागज़ की कश्ती संग, बारिश में भी खोज लेते आनंद। 


कंचे, पतंग, गिल्ली डंडे के संग, माटी के खिलौने से घिरा था बचपन।


इंद्रधनुषी रंग थे जिसमें, मासूमियत सुनहरे अवसर से भरा था बचपन।


चेहरे पर थी मधुर मुस्कान संजोए,मां के आंचल में जा कर छुपना,


पिताजी के कांधे पर चढ़ जाना,आंगन में छज्जे से छनती धूप पकड़ना। 


दादी जी की ऐनक छिपाना , दादाजी की लाठी से अमिया तोड़ना। 


बचपन की यादें बहुत सुहाने, आधी उम्र के पड़ाव पर याद आते वो जमाने।


बालपन होता सदा अनोखा, चिंता-फिक्र को पल में हरते


हरपल जीते खुलकर बच्चे, कल की फिक्र को हँसकर छलते।




अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद

मंजू श्रीवास्तव की बाल कविता ;बाल दिवस

नाना की पिटारी मे पूर्व प्रकाशित दिवंगत  मंजू श्रीवास्तव की एक रचना



                          बच्चों  के  चाचा  नेहरू


चाचा नेहरू का जन्म दिन
बाल दिवस के रूप मे आया,
भारत मां के लाल को देखो,
बच्चों के संग मुस्काया।
अचकन, चूड़ीदार पैजामा,
यही उनका पहनावा था,
अचकन पे लाल गुलाब सुशोभित,
जो उनको जान से प्यारा था।
सब सुख त्यागा देश की खातिर,
अमन शांति का संदेश फैलाया।
बच्चों को भी आपस में मिलकर,
रहने का सुन्दर पाठ पढ़ाया।
क्यूं न हम आपस मे मिलकर,
रचाएँ एक ऐसा संसार,
जहाँ न द्वेष हो, जहाँ न क्लेश हो,
बस आपस मे हो प्यार ही प्यार।
बाल दिवस का जश्न मनायें,
नाचें गायें धूम मचायें।



मंजू श्रीवास्तव  जी
हरिद्वार 

                        मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

जनजातीयगौरव दिवस पर विशेष: बिरसा मुंडा झारखंड के जुझारू नेता की कहानी

  



वर्ष 1875 के अंत मे झारखंड  के खूंटी के एक  गाँव  मे आदिवासी समुदाय  मे उनके जुझारू नेता बिरसा मुंडा का जन्म  हुआ  था।  वर्ष 1894-95 मे भारत मे भीषण  अकाल पड़ा था ।  आदिवासियों ने उस समय की अंग्रेज सरकार से अकाल को देखते हुए लगानमाफी की मांग की थी ।   

इनकी जायज समस्या जल जमींन और जंगल से जुडी हुई है। अंग्रेजों के समय से ही ये प्रताडि़त रहे हैं । जंगल की संपत्ति सरकारी घोषित की गयी थी और जंगल के लोगों को जो वहां जंगल के उत्पादों का व्यवसाय करते थे जंगल की लकड़ियाँ काटते थे या जंगल की जमींन पर खेती करते थे उन्हें अपराधी घोषित कर दिया गया था  व्यापारी वर्ग भी इन पर हावी था। जंगल का सामान सस्ते मूल्यों पर खरीद कर बहुत अधिक मूल्यों में बेचता था। इनके घरेलू उत्पाद भी इन्ही को शहरों से बढे दामो में मिलते थे। उस समय बिरसा मुंडा  नामक क्रांतिकारी आदिवासी ने अंग्रेजो के इस कानून के विरोध में सशक्त आवाज़ उठाई थी तब इस कानून में ढिलाई हुई थी। इसी कारण  झारखंड  प्रदेश  और  उसके आसपास  के लोग  उन्हे आज भी देवतातुल्य समझते है


शरद कुमार श्रीवास्तव 

रविवार, 6 नवंबर 2022

मन पर विजय पाने की विनती


 हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें
दूसरों की जय के पहले खुद की जय करें

मजेदार चुटकुले

 


राजू — नमन मै कभी झूट नही बोलता हूँ.

नमन — अभी तुम कल ही रामू के आने पर कह रहे थे

कि उससे कह दो कि तुम कहीं बाहर गये हो

राजू — मै झूट नहीं बोलता हूँ लेकिन तुम्हे बोलने की

मनाही नहीं है.


2 लड़का दुकानदार से- यें बन्दर की फोटो कितने की है?

दुकानदार चुप

लड़का फिर से- ये बन्दर की फोटो कितने की है?

दुकानदार फिर चुप

लड़का- अरे सुन नही रहे हो , बताओ ना यह बन्दर वाली फोटो कितने की है?

दुकानदार-ये फोटो नहीं आईना है.


3 रमेश अपने दार्शनिक मित्र से अरे इस फटी मच्छरदानी मे पाइप क्यो लगा रहे हो.

मित्र ताकि एक सिरे से मच्छर आयें तो दूसरी तरफ निकल जाएं

4 रामू — हेे भगवान मेरे देश की राजधानी लखनऊ कर दो.

मोहन — अरे अपने देश की राजधानी अच्छी खासी दिल्ली है उसे लखनऊ क्यो करना चाहते हो?

रामू — परीक्षा मे वहीं लिख आया हूँ.


5 अध्यापक नये छात्र से-तुम लगातार मुस्कुरा क्यों रहे हो ?

नया छात्र- जी मेरा नाम खुशी राम है।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

तुलसी विवाह पर्व विशेष आलेख निवेदिता प्रिया देवांगन "प्रियू"


    // नारी की महत्ता व अस्तित्व को अवगत कराता पर्व : एकादशी देवउठनी//

      




    हमारे छत्तीसगढ़ में तीज-त्यौहारों का बहुत महत्व है। यहाँ अनेक प्रकार के तीज-त्यौहार मनाये जाते हैं। कार्तिक मास में दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है, जिसे 'छोटी दीपावली' भी कहते हैं। इस दिन माता तुलसी और श्रीहरि विष्णु जी का विवाह शुभ माना जाता है।                  कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के एकादश को देवउठनी एकादशी मनायी जाती है। पौराणिक कथानुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष चार माह तक भगवान श्रीहरि विष्णु जी क्षीरसागर में शयन करते हैं।  भगवान विष्णु के शयनकाल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के दिन चार माह की निद्रा से जागृत होने के बाद देवउठनी एकादशी मनायी जाती है। भगवान विष्णु जी के साथ-साथ सभी देवताओं की भी पूजा की जाती है। इसी दिन से शुभ एवं मांगलिक कार्यों का प्रारंभ होता है। कहा जाता है कि वृंदा राक्षस कुल में जन्मी एक कन्या थी। राक्षस कुल में जन्म लेने की बाद भी वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी। जब वह विवाह योग्य हुई तब उसका विवाह जालंधर नाम के राक्षस के साथ हुआ। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी। सदैव अपने पति की सेवा में लगी रहती थी। अपने पति जालंधर को हर समस्या से बचाती थी। वह भगवान की भक्ति कर के उनकी रक्षा करती थी।
          एक बार भीषण देवासूर संग्राम हुआ। जालंधर एक बहुत बलशाली दानव था। जब देवताओं से युद्ध करने जालंधर जा रहा था, तभी वृंदा ने कहा - "हे स्वामी मैं आपकी विजयी होने के लिए घोर तपस्या करूँगी। भगवान से प्रार्थना करूँगी कि जब तक आप विजय लौटकर नहीं आयेंगे, तब तक मैं तप में लीन रहूँगी। जालंधर युद्ध में चला गया। वृंदा अपने तप में लीन हो गयी। वृंदा के तप का प्रभाव देवताओं को दिखने लगा। युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। तभी देवताओं ने श्री हरि विष्णु जी के पास जाकर प्रार्थना करने लगे- " त्राहि माम...! त्राहि माम...! हे प्रभु ! हमारी रक्षा कीजिए। युद्ध में हम देवतागण हारने लगे हैं। यह वृंदा के तप का प्रभाव है। पर अब जैसे भी हो, वृंदा का तप भंग होना ही चाहिए। हमारी मदद कीजिए स्वामी। भगवान विष्णु बोले- "वृंदा मेरी परम भक्त है। मैं उनके साथ छल नहीं कर सकता। देवतागण विनती करने लगे, तब विष्णु जी देवहित को ध्यान रख जालंधर का वेष धारण कर के वृंदा के द्वार पर पहुँचे। उन्हें देखकर वृंदा खुश हो गयी; और पूजा छोड़ दी। उसकी ईश्वर के प्रति एकाग्रता ध्वंस हुई। उसी समय वृंदा का संकल्प टूट गया; और जालंधर मारा गया। जालंधर का कटा हुआ सिर महल में गिरा। तभी वृंदा की दृष्टि जालंधर का वेश धारण किये श्रीहरि विष्णु जी पर पड़ी। उसने श्री हरि विष्णु जी को पहचान लिया। श्रीहरि का छल वृंदा समझ गयी। उसने श्री विष्णु जी को श्राप दे डाला। श्रीहरि विष्णु जी एक पत्थर बन गये। वृंदा अपने पति का सिर लेकर सती हो गयी। उसके राख से पौधा निकला। श्री विष्णु जी उस पौधे का नाम तुलसी रखा; और कहा कि मैं हमेशा तुलसी के साथ पत्थर रूप में रहूँगा। शालिग्राम के नाम से मुझे जाना जाएगा। तब से इन दोनों की एक साथ पूजा होती है।
         कार्तिक माह में उनका विवाह हुआ था,तब से आज तक लोग इस दिन को तुलसी विवाहोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं।

//छत्तीसगढ़  रीति रिवाज//

           हमारे छत्तीसगढ़ में विभिन्न रीति -रिवाज हैं । इस पर्व को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। इस दिन गन्ना-पूजा का विशेष महत्व होता है। लोग अपने-अपने घरों में गन्ना की पूजा करते हैं। इसी दिन से गन्ना की पहली कटाई की जाती है। इसलिए इसकी पूजा होती है।

            तुलसी विवाह के दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं। सुबह से शाम तक पूजा-पाठ में लीन रहती हैं।


//पूजा सामग्री//


          चावल आटे का दीया, गन्ना, कलश, आम्रपत्र, घी, चंदन, गुलाल, कुमकुम, पीला अक्षत,पीला वस्त्र,अगरबत्ती, हल्दी, कपूर,धूप,सुपारी, दूबी, फूल-माला व श्रृंगार समान-साड़ी, लाल चुनरी, चूड़ी, बिंदी; साथ ही नारियल,लाल कांदा, कोचई, चना भाजी, बेर इत्यादि चढ़ाते हैं।


//पूजा की विधि//

          

           इस दिन पुरुष व महिलाएँ दोनों व्रत रखते हैं। इसे एकादशीव्रत के नाम से जाना जाता है। अपने व्रत को पूर्ण करने के लिए सबसे पहले तुलसी माँ को लाल चुनरी और साड़ी से सजाते हैं। चौकी में पीला वस्त्र बिछाते हैं। उस पर कान्हा जी को बिठाते हैं। उसके सामने कलश में चावल भर कर आम की पत्तियों से सजाते हैं। उसके ऊपर चावल आटे के घी का दीया रखते हैं। गोबर से गौरी-गणेश बनाते हैं। आजकल गोबर नहीं मिलने के कारण दो सुपारी में रुई को भिगाकर गौरी-गणेश बनाते हैं। गन्ने को मण्डप जैसा सजाकर उसकी पूजा करते हैं। साथ में क्षेत्रानुसार फल-फूल, कांदा, कोचई, नारियल फल आदि तथा भाजी,बेर अन्य सामग्री चढ़ाते हैं। घर-घर रंगोली बनायी जाती है। तुलसी में नारी-श्रृंगार का सामान रखते हैं। महिलाएँ सदा सुहागन रहने की मन्नतें माँगती हैं। घर के सभी सदस्य बारी-बारी से पूजा-अर्चना करते हैं। आरती गाते हैं। गन्ना की पूजा करते हैं। इन सब रस्मों के साथ तुलसी और विष्णु जी का विवाह सम्पन्न हुआ; माना जाता है। घर के सदस्य खुशी-खुशी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। बच्चे आतिशबाजी करते हैं। सब प्रसाद ग्रहण करते हैं।

          हमारे छत्तीसगढ़ में एक रिवाज है कि पूजा सम्पन्न होने के बाद एक-दूसरे के घर प्रसाद पहुँचाते हैं। इस तरह छोटी दीपावली पर्व की शुभकामनाएँ देते हैं। इससे लोगों में प्रेम, भ्रातृत्व, एकता जैसे मानवीय भावनाएँ पनपती हैं। कई क्षेत्रों में आज के दिन भी राऊत भाई गायों को सोहई बाँधते हैं। दोहा पारते हैं। फिर उन राऊत भाइयों को विदा करते हुए उन्हें सुपा भर धान व राशि भेंट करते हैं, जिसे "सुखधना" कहा जाता है।


//आग तापने की रस्म//


          हमारे गाँव-देहात के लोग भोजन ग्रहण करने के बाद एक जगह इकट्ठे होते हैं। घरों में पुरानी टुकनी या लकड़ी को जलाकर आग सेंकते हैं। उसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं। प्रार्थना करते हैं कि हमारे शरीर में किसी भी तरह की बीमारी प्रवेश न हो। हे अग्नि देव ! हमारी रक्षा करना। माना जाता है कि इसी दिन से ठंड की शुरूआत होती है। ठंड से बचने के लिए भी अग्निदेव से प्रार्थना करते हैं।


//सामाजिक सन्देश//


            यह एक श्रद्धा-भक्ति का त्यौहार है। पर आधुनिकता के चलते धीरे-धीरे ये रीति-रिवाज खत्म होती जा रही है। आजकल शहरों में तुलसीविवाह की रस्म गन्नापूजा तक ही सिमट कर रह गयी है। एक-दूसरे से मेल-मिलाप व प्रसाद-वितरण की रस्में खत्म होती जा रही है। हमें इन रस्म-रिवाजों को जीवित रखनी है; जिससे भावी पीढ़ी देवउठनी पर्व के रीति-रिवाजों से अनभिज्ञ न हो।।

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रचनाकार

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com



खुशियों की दीवाली हो (दीपावली पर गीत ) डाक्टर सुशील शर्मा

 



दूर करो मन के अँधियारे

खुशियों की दीवाली हो।


मंगल कलश सजे हर द्वारे

घर-घर में उजियाला हो।

हर मुखड़ा खुशियों से दमके

जगमग जगमग आला हो।

रात अमावस की है लेकिन

पूनम सी आभासी हो।

ज्योतिर्मय जीवन हों सबके

सबकी दूर उदासी हो।


कुंठा द्वेष कलुष सब हारें  

मन पीड़ा से खाली हो।


मन अंतस के अँधियारों में

संवेदन के दीप जलें।

भग्न-हृदय के रिसे घाव में

अपनेपन की दवा मलें।

तिमिरपंथ जीवन की जड़ता

मिटे हटे सब सूनापन

अमा घनी मंडित अंधियारे

हो जाएँ सब ज्योतिर्मन।


असतोमा सत हृदय गमय हों

दीप भरी हर थाली हो।


आशा का दीपक हर मन हो

सब हाथों को काम मिले।

अपनापन हो हर आँगन में

नवचिराग हर हृदय जले।

हर घर में हों हँसी ठिठोली

नई विभा सतरंगी हो।





दीवाली हो खुशियों वाली

आभा रंगबिरंगी हो।

हर घर लक्ष्मी का निवास हो

दीवाली मतवाली हो।


सुशील शर्मा

मेरा मध्यप्रदेश (मध्यप्रदेश स्थापना दिवस पर गीत) : डाक्टर सुशील शर्मा

 मध्य प्रदेश  का स्थापना दिवस पहली नवम्बर  है इसी उपलक्ष्य  मे समर्पित  है यह गीत



सदा वत्सले रत्न सुगर्भा

मेरा मध्यप्रदेश।


मातु नर्मदा इसकी रक्षक

यह है रम्य निकुंज।

भारत का यह हृदय सुकोमल

स्वर्णपुष्प रवि पुंज।

भाषा बोली भिन्न सभी हैं

पर सब मिल कर एक।

श्रम सिंचित भूमि यह पावन

फूलें सुमन अनेक।


खनिज संपदा उर्वर धरती

भारत का हृदयेश।


चित्रकूट खजुराहो मांडू

विंध्य सतपुड़ा मेख।

रामलला का नगर ओरछा

महाकाल आरेख।

भीमबेठका विश्वधरोहर

अद्भुत भेड़ाघाट।

पंचमढ़ी की छटा निराली

उन्नत सदा ललाट।


ज्ञान भक्ति वैराग्य सत्य का

संगम शुद्ध सुवेश।


छत्रसाल बुंदेला गौरव

है प्रदेश अभिमान।

दुर्गावती अहिल्याबाई

हम सब की हैं शान।

तात्या लक्ष्मी झलकारी सब

आज़ादी के वीर।

काँप रहे थे गोरे जिनसे

थे आज़ाद अधीर।


भारत के गौरव गानों में

अब्बल यही प्रदेश।


माखन और सुभद्रा गाते

आज़ादी के गीत।

लता किशोर रत्न भारत के

इस माटी के मीत

विश्व पटल पर हुआ तरंगित

ओशो का संदेश।

आशुतोष का अद्भुत अभिनय

जैसे शिव आदेश।


है महान यह हृदय हमारा

संकल्पित परिवेश।


उन्नत खेती खनिज संपदा

उर्वर मस्तक मान।

आदिवासियों की धरती यह

जीवन गीता ज्ञान।

फुल्ल कुसुममय अमिय सुधा सम।

सदा सुवासित गीत।

कण कण में संस्कृति समाहित।

संस्कार मय रीत।


नव विकासपथ चला हमारा

प्यारा मध्यप्रदेश।


सुशील शर्मामेरा मध्यप्रदेश

(मध्यप्रदेश स्थापना दिवस पर गीत)


सदा वत्सले रत्न सुगर्भा

मेरा मध्यप्रदेश।


मातु नर्मदा इसकी रक्षक

यह है रम्य निकुंज।

भारत का यह हृदय सुकोमल

स्वर्णपुष्प रवि पुंज।

भाषा बोली भिन्न सभी हैं

पर सब मिल कर एक।

श्रम सिंचित भूमि यह पावन

फूलें सुमन अनेक।


खनिज संपदा उर्वर धरती

भारत का हृदयेश।


चित्रकूट खजुराहो मांडू

विंध्य सतपुड़ा मेख।

रामलला का नगर ओरछा

महाकाल आरेख।

भीमबेठका विश्वधरोहर

अद्भुत भेड़ाघाट।

पंचमढ़ी की छटा निराली

उन्नत सदा ललाट।


ज्ञान भक्ति वैराग्य सत्य का

संगम शुद्ध सुवेश।


छत्रसाल बुंदेला गौरव

है प्रदेश अभिमान।

दुर्गावती अहिल्याबाई

हम सब की हैं शान।

तात्या लक्ष्मी झलकारी सब

आज़ादी के वीर।

काँप रहे थे गोरे जिनसे

थे आज़ाद अधीर।


भारत के गौरव गानों में

अब्बल यही प्रदेश।


माखन और सुभद्रा गाते

आज़ादी के गीत।

लता किशोर रत्न भारत के

इस माटी के मीत

विश्व पटल पर हुआ तरंगित

ओशो का संदेश।

आशुतोष का अद्भुत अभिनय

जैसे शिव आदेश।


है महान यह हृदय हमारा

संकल्पित परिवेश।


उन्नत खेती खनिज संपदा

उर्वर मस्तक मान।

आदिवासियों की धरती यह

जीवन गीता ज्ञान।

फुल्ल कुसुममय अमिय सुधा सम।

सदा सुवासित गीत।

कण कण में संस्कृति समाहित।

संस्कार मय रीत।


नव विकासपथ चला हमारा

प्यारा मध्यप्रदेश।






सुशील शर्मा

हम खाएंगे मछली! वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल रचना

 


बत्तख के बच्चों के मुख से

यही   बात   बस   निकली

कीट-पतंगे  तुम  ही खाओ

हम        खाएंगे     मछली।


बत्तख  बोली   प्यारे  बच्चों 

कैसे         तुम्हें       बताऊं

सूख चुके सब ताल -तलैया

मछली        कैसे      लाऊं।


बच्चे अपनी  जिद के पक्के

सौ  -  सौ      आँसू      रोए

किए     इकठे    कीट-पतंगे

व्यर्थ     ज़िद     में     खोए।


माँ ने आँख दिखा बच्चों को

जी     भर     डांट     लगाई

देखा  ज़िद   में  भूखे-प्यासे

सारी         रात        बिताई।


तुमको भूखा देख  मुझे  भी

खाना   तनिक    न    भाया

देख-देख मुँह खुला तुम्हारा 

दिल    मेरा    भर     आया।



तभी चौंचमें मछली भरकर

बगुला       राजा       आया

बोला बहना,  इन्हें  देख  मैं

आगे     उड़     ना     पाया।


बत्तख बोली बकुल तुम्हारा

बहुत   -   बहुत     उपकार

तुम जैसे  हो  जाएं सब तो

हो           जाए       उद्धार।

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      वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

         9719275463

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भारतवासी जागो" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 


सुनो सुनो नित ध्यान लगाओ।मन्द बुद्धि को जल्द जगाओ।।
झूठ व फरेब का दिन आया।घना अँधेरा कलयुग छाया।।

रोज नया आडम्बर रचते। आम आदमी भी ना बचते।।
अजब रही पैसों की माया। अंगारों पर जलती काया।।

आमदनी कम खर्चा ज्यादा। भूल गये रहने को सादा।।
विज्ञापन में चले जमाना। बिन सोचे समझे अपनाना।।

दौर मशीनों का यह आया। तन मन में आलस्य समाया।।
बढ़ी देह में जब बीमारी। मुश्किल से कटती जिनगानी।।

बढ़े देश में अत्याचारी। छूटे नहीं नित भ्रष्टाचारी।।
बनी नीम सी मानव वाणी। मृत्यु लोक की यही कहानी।।

ध्यान केंद्र कर आगे आओ। शिक्षा का तुम अलख जगाओं।।
दोष स्वार्थ का तुम भी त्यागो। भारतवासी अब तुम जागो।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


छत्तीसगढ मे तुलसी विवाह पर्व : आलेख प्रिया देवांगन "प्रियू"

        



    हमारे छत्तीसगढ़ में विभिन्न रीति -रिवाज हैं । इस पर्व को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। इस दिन गन्ना-पूजा का विशेष महत्व होता है। लोग अपने-अपने घरों में गन्ना की पूजा करते हैं। इसी दिन से गन्ना की पहली कटाई की जाती है। इसलिए इसकी पूजा होती है।

            तुलसी विवाह के दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं। सुबह से शाम तक पूजा-पाठ में लीन रहती हैं।

//पूजा सामग्री//

          चावल आटे का दीया, गन्ना, कलश, आम्रपत्र, घी, चंदन, गुलाल, कुमकुम, पीला अक्षत,पीला वस्त्र,अगरबत्ती, हल्दी, कपूर,धूप,सुपारी, दूबी, फूल-माला व श्रृंगार समान-साड़ी, लाल चुनरी, चूड़ी, बिंदी; साथ ही नारियल,लाल कांदा, कोचई, चना भाजी, बेर इत्यादि चढ़ाते हैं।

//पूजा की विधि//
          
           इस दिन पुरुष व महिलाएँ दोनों व्रत रखते हैं। इसे एकादशीव्रत के नाम से जाना जाता है। अपने व्रत को पूर्ण करने के लिए सबसे पहले तुलसी माँ को लाल चुनरी और साड़ी से सजाते हैं। चौकी में पीला वस्त्र बिछाते हैं। उस पर कान्हा जी को बिठाते हैं। उसके सामने कलश में चावल भर कर आम की पत्तियों से सजाते हैं। उसके ऊपर चावल आटे के घी का दीया रखते हैं। गोबर से गौरी-गणेश बनाते हैं। आजकल गोबर नहीं मिलने के कारण दो सुपारी में रुई को भिगाकर गौरी-गणेश बनाते हैं। गन्ने को मण्डप जैसा सजाकर उसकी पूजा करते हैं। साथ में क्षेत्रानुसार फल-फूल, कांदा, कोचई, नारियल फल आदि तथा भाजी,बेर अन्य सामग्री चढ़ाते हैं। घर-घर रंगोली बनायी जाती है। तुलसी में नारी-श्रृंगार का सामान रखते हैं। महिलाएँ सदा सुहागन रहने की मन्नतें माँगती हैं। घर के सभी सदस्य बारी-बारी से पूजा-अर्चना करते हैं। आरती गाते हैं। गन्ना की पूजा करते हैं। इन सब रस्मों के साथ तुलसी और विष्णु जी का विवाह  सम्पन्न हुआ; माना जाता है। घर के सदस्य खुशी-खुशी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। बच्चे आतिशबाजी करते हैं। सब प्रसाद ग्रहण करते हैं।
          हमारे छत्तीसगढ़ में एक रिवाज है कि पूजा सम्पन्न होने के बाद एक-दूसरे के घर प्रसाद पहुँचाते हैं। इस तरह छोटी दीपावली पर्व की शुभकामनाएँ देते हैं। इससे लोगों में प्रेम, भ्रातृत्व, एकता जैसे मानवीय भावनाएँ पनपती हैं। कई क्षेत्रों में आज के दिन भी राऊत भाई गायों को सोहई बाँधते हैं। दोहा पारते हैं। फिर उन राऊत भाइयों को विदा करते हुए उन्हें सुपा भर धान व राशि भेंट करते हैं, जिसे "सुखधना" कहा जाता है।

//आग तापने की रस्म//

          हमारे गाँव-देहात के लोग भोजन ग्रहण करने के बाद एक जगह इकट्ठे होते हैं। घरों में पुरानी टुकनी या लकड़ी को जलाकर आग सेंकते हैं। उसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं। प्रार्थना करते हैं कि हमारे शरीर में किसी भी तरह की बीमारी प्रवेश न हो। हे अग्नि देव ! हमारी रक्षा करना। माना जाता है कि इसी दिन से ठंड की शुरूआत होती है। ठंड से बचने के लिए भी अग्निदेव से प्रार्थना करते हैं।

//सामाजिक सन्देश//

            यह एक श्रद्धा-भक्ति का त्यौहार है। पर आधुनिकता के चलते धीरे-धीरे ये रीति-रिवाज खत्म होती जा रही है। आजकल शहरों में तुलसीविवाह की रस्म गन्नापूजा तक ही सिमट कर रह गयी है। एक-दूसरे से मेल-मिलाप व प्रसाद-वितरण की रस्में खत्म होती जा रही है। हमें इन रस्म-रिवाजों को जीवित रखनी है; जिससे भावी पीढ़ी देवउठनी पर्व के रीति-रिवाजों से अनभिज्ञ न हो।।
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प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com