हमारे देश की प्रथम महिला प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवंबर, सन् 1917 को हुआ था । वे पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकमात्र संतान थीं। बचपन मे उनकी परवरिश अपनी माँ की देखरेख में हुआ। माँ की बीमारी के कारण माँ उनकी सुश्रुषा और देखरेख मे व्यस्त रहने के कारण वे गृह सम्बन्धी कार्यों से अलग रहीं । इन्ही परिस्थितियों मे इंदिरा गाँधी मे स्वतंत्र विचारों वाली एक निर्भीक व्यक्तित्व वाली महिला का रूप विकसित हुआ।
इन्दिरा गाँधी की स्वतन्त्रता आंदोलन मे पदार्पण मात्र 12-13 वर्ष की आयु मे बच्चों की वानर सेना बना कर हुआ। इस वानर सेना का काम सरकार का विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस के साथ साथ कांगेस के नेताओं की मदद करना था । एक बार उन्होंने पुलिस की नजरों से बचाकर अपने पिता के घर से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमे 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम से बाहर पहुंचाया था।
स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में1934–35 में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं । लंदन मे उनकी मुलाकात इलाहाबाद के फिरोज से हुई जो आगे चलकर विवाह मे बदली 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी समारोह में इनका विवाह फिरोज़ बृह्म वैदिक रीति से हुआ।
फिरोज गाँधी और इन्दिरा जी के राजीव और संजय दो पुत्र हुए । वर्ष1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।[4]
लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। वे एक जनप्रिय नेता के रूप मे उभरीं और कृषि तथा व्यापार संबंधी अनेक प्रकार के सुधार किए। वे 1971 के पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता के युद्ध के समर्थन में पाकिस्तान के साथ युद्ध में चली गईं, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय की जीत और बांग्लादेश का निर्माण हुआ, साथ ही साथ इस जीत से भारत का प्रभाव विश्व मे उस बिंदु तक बढ़ गया जहां भारत दक्षिण की एकमात्र क्षेत्रीय शक्ति बन गया। । देश को अपने नेतृत्व मे आगे ले जाने के लिए उन्हे कठोर निर्णय लेने पड़े फलस्वरूप बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिति में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया । तदुपरांत उन्हे एवं काँग्रेस पार्टी को वर्ष 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में पुनः सत्ता में लौटने के बाद उनके पंजाब के अलगाववादियों के प्रति कड़े रुख के कारण जिसमे सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई।
विश्व श्रीमती इंदिरा गाँधी को भारत की आइरन लेडी के रूप मे जानता है।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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