हमारे छत्तीसगढ़ में विभिन्न रीति -रिवाज हैं । इस पर्व को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। इस दिन गन्ना-पूजा का विशेष महत्व होता है। लोग अपने-अपने घरों में गन्ना की पूजा करते हैं। इसी दिन से गन्ना की पहली कटाई की जाती है। इसलिए इसकी पूजा होती है।
तुलसी विवाह के दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं। सुबह से शाम तक पूजा-पाठ में लीन रहती हैं।
//पूजा सामग्री//
चावल आटे का दीया, गन्ना, कलश, आम्रपत्र, घी, चंदन, गुलाल, कुमकुम, पीला अक्षत,पीला वस्त्र,अगरबत्ती, हल्दी, कपूर,धूप,सुपारी, दूबी, फूल-माला व श्रृंगार समान-साड़ी, लाल चुनरी, चूड़ी, बिंदी; साथ ही नारियल,लाल कांदा, कोचई, चना भाजी, बेर इत्यादि चढ़ाते हैं।
//पूजा की विधि//
इस दिन पुरुष व महिलाएँ दोनों व्रत रखते हैं। इसे एकादशीव्रत के नाम से जाना जाता है। अपने व्रत को पूर्ण करने के लिए सबसे पहले तुलसी माँ को लाल चुनरी और साड़ी से सजाते हैं। चौकी में पीला वस्त्र बिछाते हैं। उस पर कान्हा जी को बिठाते हैं। उसके सामने कलश में चावल भर कर आम की पत्तियों से सजाते हैं। उसके ऊपर चावल आटे के घी का दीया रखते हैं। गोबर से गौरी-गणेश बनाते हैं। आजकल गोबर नहीं मिलने के कारण दो सुपारी में रुई को भिगाकर गौरी-गणेश बनाते हैं। गन्ने को मण्डप जैसा सजाकर उसकी पूजा करते हैं। साथ में क्षेत्रानुसार फल-फूल, कांदा, कोचई, नारियल फल आदि तथा भाजी,बेर अन्य सामग्री चढ़ाते हैं। घर-घर रंगोली बनायी जाती है। तुलसी में नारी-श्रृंगार का सामान रखते हैं। महिलाएँ सदा सुहागन रहने की मन्नतें माँगती हैं। घर के सभी सदस्य बारी-बारी से पूजा-अर्चना करते हैं। आरती गाते हैं। गन्ना की पूजा करते हैं। इन सब रस्मों के साथ तुलसी और विष्णु जी का विवाह सम्पन्न हुआ; माना जाता है। घर के सदस्य खुशी-खुशी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। बच्चे आतिशबाजी करते हैं। सब प्रसाद ग्रहण करते हैं।
हमारे छत्तीसगढ़ में एक रिवाज है कि पूजा सम्पन्न होने के बाद एक-दूसरे के घर प्रसाद पहुँचाते हैं। इस तरह छोटी दीपावली पर्व की शुभकामनाएँ देते हैं। इससे लोगों में प्रेम, भ्रातृत्व, एकता जैसे मानवीय भावनाएँ पनपती हैं। कई क्षेत्रों में आज के दिन भी राऊत भाई गायों को सोहई बाँधते हैं। दोहा पारते हैं। फिर उन राऊत भाइयों को विदा करते हुए उन्हें सुपा भर धान व राशि भेंट करते हैं, जिसे "सुखधना" कहा जाता है।
//आग तापने की रस्म//
हमारे गाँव-देहात के लोग भोजन ग्रहण करने के बाद एक जगह इकट्ठे होते हैं। घरों में पुरानी टुकनी या लकड़ी को जलाकर आग सेंकते हैं। उसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं। प्रार्थना करते हैं कि हमारे शरीर में किसी भी तरह की बीमारी प्रवेश न हो। हे अग्नि देव ! हमारी रक्षा करना। माना जाता है कि इसी दिन से ठंड की शुरूआत होती है। ठंड से बचने के लिए भी अग्निदेव से प्रार्थना करते हैं।
//सामाजिक सन्देश//
यह एक श्रद्धा-भक्ति का त्यौहार है। पर आधुनिकता के चलते धीरे-धीरे ये रीति-रिवाज खत्म होती जा रही है। आजकल शहरों में तुलसीविवाह की रस्म गन्नापूजा तक ही सिमट कर रह गयी है। एक-दूसरे से मेल-मिलाप व प्रसाद-वितरण की रस्में खत्म होती जा रही है। हमें इन रस्म-रिवाजों को जीवित रखनी है; जिससे भावी पीढ़ी देवउठनी पर्व के रीति-रिवाजों से अनभिज्ञ न हो।।
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प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
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