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- गौरैया : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी
- बढ़ती ठंड प्रिया देवांगन "प्रियू"
- जंगल में शिक्षा प्रिया देवांगन प्रियू
- / दैवीय जीवंत प्रतिमा का रूप - माँ //एक विचार :...
- शेर और यूनीकार्न की कहानी : नन्हा कहानीकार पा...
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दिसंबर
(10)
मंगलवार, 26 दिसंबर 2023
शनिवार, 16 दिसंबर 2023
चूहा और बिल्ली
चूहा बिल से बाहर आया
देखा बिल्ली को घबराया
बिल्ली बोली खाऊंगी मैं
अपनी भूख मिटाउंगी मैं
चूहा बोला मैं बच्चा हूं
अभी अकल का मैं कच्चा हूं
मेरा पीछा छोड़ो तुम अब
अपना रास्ता मोड़ो तुम अब
बिल्ली बोली ना जाऊंगी
अभी मार कर तुझे खाऊंगी
चूहा बोला दिल्ली जाओ
मन भर दूध मलाई खाओ
बिल्ली बोली बहकाते हो
क्यूं मुझको मूर्ख बनाते हो
चूहा बोला अच्छी हो तुम
प्यारी मेरी मौसी हो तुम
संकट बहुत बड़ा है देखो
पीछे कौन खड़ा है देखो
बिल्ली मुड़कर पीछे आई
तो चूहे ने दौड़ लगाई
बच्चो तुम भी मत घबराना
मिटेगा संकट जुगत लगाना
डॉक्टर राम गोपाल भारतीय
वरिष्ठ साहित्यकार
शीलकुंज, मोदीपुरम, मेरठ
जाड़े की धूप : शरद कुमार श्रीवास्तव
गौरैया : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी
गौरैयों के दो झुंडों में,
छिड़ी बहस यह भारी,
बड़े सब्र से खाना होगा,
दाना बारी बारी।
दाना चुगने में चालाकी,
जो भी दिखलाएगी ,
ज्वार- बाजरा गेंहूँ वह ,
भरपेट न खा पाएगी ।
पहले सब स्नान करेंगी,
फिर मिलकर बैठेंगी,
थोड़ा-थोड़ा खाना लेकर,
ख़ुशी - ख़ुशी चहकेंगी।
मिट्टी के कूण्डों में दाना,
पानी भरा हुआ है,
ज्वार बाजरे का चूरा भी,
छत पर धरा हुआ है।
भूखे बच्चे स्वयं हमारी,
राह देखते होंगे,
कब तक आएगी अम्मा,
बस यही सोचते होंगे।
सारी गौरैयों ने अपने,
सुंदर पँख हिलाए,
दाना खाने सारे बच्चे,
अपने पास बुलाए।
गौरैया पर बच्चों अपना,
प्यार लुटाते रहना,
खाने को दाना पीने को,
पानी लाते रहना।
चीं-चीं करके ढेर दुआएं,
तुमको दे जाएंगी,
उठो सवेरा हुआ बताने,
रोज़ - रोज़ आएंगी।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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बुधवार, 6 दिसंबर 2023
बढ़ती ठंड प्रिया देवांगन "प्रियू"
जंगल में शिक्षा प्रिया देवांगन प्रियू
बने हेड मास्टर भालू जी, हिंदी अध्यापक हाथी।
बड़े प्रेम से पढ़ते सारे, बन कर रहते सब साथी।।
एक तरफ बैठे हैं पक्षी, एक तरफ चूहा बिल्ली।
जब–जब पुस्तक कुतरे चूहा, उड़ जाती उसकी खिल्ली।।
भीई
देखो उल्लू चश्मा पहने,अनुशासन समझाता है।
नियम तोड़ते गर पशु–पक्षी, उनको सजा सुनाता है।।
शांत बैठते गिल्लू चींटी, प्यार सभी से करते हैं।
शेर दहाड़े जब जोरो से, जंगल वासी डरते हैं।।
नीलगाय अरु बंदर कछुआ, इनकी रहती है टोली।
मैना तोता कोयल बुलबुल, मीठी सी इनकी बोली।।
खेल खेलते हैं आपस में, मिलकर धूम मचाते हैं।
छोटे–छोटे कीट पतंगे, उड़ कर नाच दिखाते हैं।।
मानव जैसा भेद न करते, बनकर रहते हैं सच्चे।
सीखो अच्छी बातें इनसे, बन जाओ अच्छे बच्चे।।
//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
/ दैवीय जीवंत प्रतिमा का रूप - माँ //एक विचार : लेखिका प्रिया देवांगन "प्रियू"
नवरात्री लगते ही भक्तगण माँ अम्बे, भवानी , दुर्गा जैसे विभिन्न रूपों की प्रतिमा का अलग–अलग दिन विधि–विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। सामर्थ्य अनुसार माँ को श्रृंगार सामग्री, मिठाई व फल-फूल चढ़ाते हैं। पर उस प्रतिमा का क्या ? जो आज अपने ही घर में बेबस और लाचार पड़ी है। मेरा मतलब, अपनी ही जननी से; जिसने हमें जाया है। यह सच है, आज भी कई माएँ वृद्धाश्रम में हैं, जो अपने बहू-बेटे व पोते-पोती की राह ताक रही हैं; और इस आस में बैठी हुई हैं कि उनके बेटे उन्हें लेने जरूर आयेंगे। नवरात्री में लोग जितनी सेवा व पूजा माँ की प्रतिमा का करते हैं, अगर उनकी आधी सेवा भी अपनी माँ के लिये करते , तो आज हर घर एक मंदिर बन जाता।
माँ अम्बे की प्रतिमा में माँ अम्बे विराजती है, लेकिन एक साक्षात प्रतिमा, जिसे दुनिया माँ के नाम से जानती है; में पूरा ब्रम्हाण्ड विराजमान होता है। सिर्फ मंदिर जाकर दान-दक्षिणा देने से ही माँ अम्बे खुश नहीं होती। अगर कोई मातारानी को खुश रखना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी माँ को खुश रखना सीखें। अगर आप घर की माँ को खुश रखेंगे, तभी मंदिर की माँ खुश होगी।
माँ अम्बे यह नहीं चाहती कि भक्त नौ दिन तक उनके द्वार ही आये, उनकी पूजा-अर्चना करे। नारियल, फल-फूल और मेवा चढ़ाये। माँ फल और मेवा की भूखी नहीं होती है। माँ तो केवल सच्ची सेवा, निश्छल भक्ति चाहती है। अगर सब मिलकर अपनी माँ को खुश करते, माँ की सेवा करते तो आज शायद पृथ्वी पर यह संकट नहीं आता।
विचार करें कि आज इस दुनिया में कितनी सारी माँ वृद्धाश्रम में रहती हैं। रोते-बिलखते अपने बच्चों को याद करती हैं।
उस माँ को कभी न तड़पाएँ, जिसने आपका पालन पोषण किया है। अमृत रूपी दुग्ध पान कराया है। आपको अपने हाथों से भोजन कराया है । माँ को भी अपने बच्चों से यही आशा रहती है कि जब वे बूढ़े हो जाएँगे तो ऐसे ही उनके बच्चे उनकी भी सेवा करेंगे। माँ तो माँ होती है न। अपने बच्चों के बारे में कभी गलत नहीं सोच सकतीं। लेकिन माँ को क्या पता कि वे बूढ़े होते ही बोझ बन जाएँगे।
उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आएँगे।
हर इंसान को यह समझना बहुत जरूरी है, जिस माँ ने हमें ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया, उसे कतई बेसहारा न छोड़ें। वे बहुत खुशनसीब होते हैं, जिनके माँ-बाप उनके साथ हमेशा रहते हैं। अनाथ आश्रम के बच्चे अपने माता-पिता को देखने के लिए तरसते हैं। माता-पिता की कीमत उस गरीब अनाथ बच्चों से पूछें कि माता-पिता क्या होते हैं। बड़ा घर ,बड़ी गाड़ी , बंगला और पैसे रखने वाले ही अमीर नहीं होते। जिस घर में बूढ़े माँ-बाप की सेवा होती है, वह घर एक मंदिर होता है। आज अगर संसार मे माता-पिता को बोझ नहीं समझते , माँ अम्बे की तरह उनकी पूजा-सेवा करते, तो कहीं भी वृद्धाश्रमों की जरूरत नहीं पड़ती।
आज आप ऐसा करेंगे तो कल आपके बच्चे भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे। यूँ कहें , जैसे करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल। एज़ यू सो, सो यू रीप। बोये पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय। है ना...? जय माता दी।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
शेर और यूनीकार्न की कहानी : नन्हा कहानीकार पार्थ गुप्ता
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, भारत के प्रथम राष्ट्रपति
प्रारंभिक जीवन
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मतिथि 3 दिसंबर 1884 थी।
राजेंद्र प्रसाद का जन्मस्थान जीरादेई, सीवान जिला, बिहार, भारत था।
उनके पिता महादेव सहाय श्रीवास्तव थे जो संस्कृत और फ़ारसी भाषा के विद्वान थे।
उनकी माँ कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं जो अपने बेटे को रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थीं।
राजेंद्र प्रसाद के चार भाई-बहन थे, एक बड़ा भाई महेंद्र प्रसाद और तीन बड़ी बहनें और वह अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे।
जब वह बच्चे थे तभी उनकी माँ की मृत्यु हो गई और उनका पालन-पोषण उनकी बड़ी बहन भगवती देवी ने किया।
राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम डॉ. राजेंद्र प्रसाद है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा
जब राजेंद्र प्रसाद पांच साल के थे, तब उनके माता-पिता ने उन्हें एक कुशल मुस्लिम विद्वान मौलवी की फ़ारसी भाषा, हिंदी और अंकगणित की कक्षाओं में दाखिला दिलाया।
अपनी मानक प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें छपरा जिला स्कूल में भेज दिया गया।
उसके बाद, वह और उनके बड़े भाई, महेंद्र प्रसाद, दो साल तक अध्ययन करने के लिए पटना में टीके घोष की अकादमी में चले गए।
वह कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम आये और उन्हें रुपये की छात्रवृत्ति दी गई। 30 प्रति माह.
1902 में, राजेंद्र प्रसाद ने विज्ञान स्नातक के रूप में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया।
मार्च 1904 में, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफए पास किया और मार्च 1905 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
बाद में, उन्होंने कला के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया और दिसंबर 1907 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी एमए की उपाधि प्राप्त की। ईडन हिंदू हॉस्टल में, उन्होंने अपने भाई के साथ एक कमरा साझा किया।
वह द डॉन सोसाइटी के एक सक्रिय सदस्य और एक समर्पित छात्र होने के साथ-साथ एक नागरिक कार्यकर्ता भी थे।
1906 में पटना कॉलेज के हॉल में, प्रसाद ने बिहारी छात्र सम्मेलन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह भारत का अपनी तरह का पहला संगठन था।
राजेंद्र प्रसाद ने 1915 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कानून विभाग में मास्टर ऑफ लॉ की परीक्षा दी, उसे पास किया और उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। 1937 में, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
राजेंद्र प्रसाद परिवार
राजेंद्र प्रसाद का विवाह जून 1896 में 12 वर्ष की कम उम्र में राजवंशी देवी से हुआ था।
उनका एक बेटा मृत्युंजय प्रसाद था जो एक राजनीतिज्ञ था।
एक शिक्षक के रूप में राजेंद्र प्रसाद का करियर
एक शिक्षक के रूप में, राजेंद्र प्रसाद ने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में काम किया।
अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद वह अंग्रेजी के प्रोफेसर और फिर मुजफ्फरपुर, बिहार में लंगट सिंह कॉलेज के प्रिंसिपल बने। हालाँकि, बाद में उन्होंने कलकत्ता के रिपन कॉलेज में कानूनी पढ़ाई करने के लिए कॉलेज छोड़ दिया।
उन्होंने कोलकाता में कानून की पढ़ाई के दौरान 1909 में कलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।
एक वकील के रूप में राजेंद्र प्रसाद का करियर
राजेंद्र प्रसाद को 1916 में बिहार और ओडिशा के उच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया था।
1917 में, उन्हें पटना विश्वविद्यालय सीनेट और सिंडिकेट के पहले सदस्यों में से एक के रूप में चुना गया था।
उन्होंने बिहार की प्रसिद्ध रेशम नगरी भागलपुर में वकालत भी की।
अब तक हमने जाना कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद कौन हैं, उनकी प्रारंभिक शिक्षा, उनका परिवार और उनका करियर क्या है। आइए अब हम राजेंद्र प्रसाद के जीवन के प्रमुख अंश पर चर्चा करते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में राजेंद्र प्रसाद की भागीदारी
कलकत्ता में अध्ययन के दौरान, राजेंद्र प्रसाद पहली बार 1906 के वार्षिक सत्र के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े, जिसमें उन्होंने एक स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया। वह 1911 में आधिकारिक तौर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, जब वार्षिक सत्र एक बार फिर कलकत्ता में आयोजित किया गया।
1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। महात्मा गांधी ने उन्हें चंपारण में अपने एक तथ्य-खोज मिशन पर अपने साथ जाने के लिए आमंत्रित किया।
वह महात्मा गांधी के दृढ़ संकल्प, बहादुरी और दृढ़ विश्वास से इतने प्रेरित थे कि जैसे ही 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने असहयोग प्रस्ताव पारित किया, उन्होंने आंदोलन का समर्थन करने के लिए अपने आकर्षक कानूनी पेशे के साथ-साथ विश्वविद्यालय में अपने कर्तव्यों को भी छोड़ दिया।
पश्चिमी शैक्षणिक संस्थानों के बहिष्कार के गांधी के आह्वान के जवाब में, उन्होंने अपने बेटे मृत्युंजय प्रसाद को स्कूल छोड़ने और बिहार विद्यापीठ में दाखिला लेने के लिए कहा, एक संस्था जिसे उन्होंने और उनके सहयोगियों ने पारंपरिक भारतीय मॉडल पर विकसित किया था।
अक्टूबर 1934 में, बॉम्बे सत्र के दौरान उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
1939 में जब सुभाष चंद्र बोस ने इस्तीफा दिया तो वे दोबारा राष्ट्रपति चुने गये।
8 अगस्त, 1942 को कांग्रेस ने बम्बई में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया, जिसके परिणामस्वरूप कई भारतीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
राजेंद्र प्रसाद को पकड़कर पटना के सदाकत आश्रम स्थित बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। लगभग तीन साल जेल में रहने के बाद अंततः उन्हें 15 जून, 1945 को रिहा कर दिया गया।
2 सितंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 12 नामांकित मंत्रियों की अंतरिम सरकार की स्थापना के बाद उन्हें खाद्य और कृषि विभाग सौंपा गया था।
11 दिसम्बर, 1946 को वे संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गये।
जेबी कृपलानी के इस्तीफा देने के बाद 17 नवंबर 1947 को वह तीसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने।
राजेंद्र प्रसाद की मानवीय सेवाएँ
1914 में बंगाल और बिहार की भीषण बाढ़ के दौरान, उन्होंने राहत प्रयासों में मदद के लिए स्वेच्छा से अपनी सेवाएँ दीं। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पीड़ितों को भोजन और कपड़े उपलब्ध कराए।
15 जनवरी, 1934 को जब बिहार में भूकंप आया, तब राजेंद्र प्रसाद जेल में थे। 17 जनवरी को, उन्होंने बिहार केंद्रीय राहत समिति का गठन करके धन जुटाने का कार्य स्वयं निर्धारित किया। वह राहत कोष संग्रह के प्रभारी थे, जिसकी कुल राशि 38 लाख रुपये से अधिक थी।
1935 में क्वेटा भूकंप के दौरान, ब्रिटिशों द्वारा उन्हें क्षेत्र छोड़ने से रोकने के प्रयासों के बावजूद, उन्होंने पंजाब में क्वेटा सेंट्रल रिलीफ कमेटी की स्थापना की।
राजेंद्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति
भारत की आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के संविधान को मंजूरी दी गई और राजेंद्र प्रसाद को देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया।
उन्होंने संविधान के अनुसार भारत के राष्ट्रपति के रूप में किसी भी राजनीतिक दल से स्वतंत्र रूप से कार्य किया।
भारत के राजदूत के रूप में, उन्होंने दुनिया भर में व्यापक रूप से यात्रा की और विदेशी देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये।
1952 और 1957 में, उन्हें लगातार दो बार फिर से चुना गया, जिससे वे भारत के पहले दो-कार्यकाल वाले राष्ट्रपति बने।
उनके शासनकाल के दौरान, राष्ट्रपति भवन में मुगल गार्डन को पहली बार लगभग एक महीने के लिए जनता के लिए खोला गया था, और तब से यह दिल्ली और दुनिया के अन्य हिस्सों में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण बन गया है।
राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति के संवैधानिक रूप से अनिवार्य पद को पूरा करते हुए, राजनीति से स्वतंत्र रूप से काम किया।
हिंदू कोड बिल के अधिनियमन पर विवाद के बाद, वह राज्य के मामलों में अधिक शामिल हो गए।
राष्ट्रपति के रूप में बारह वर्षों के बाद, उन्होंने 1962 में राष्ट्रपति पद से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की।
भारत के राष्ट्रपति का पद त्यागने के बाद वह 14 मई 1962 को बिहार विद्यापीठ परिसर में रहना पसंद करते हुए पटना लौट आये।
राजेंद्र प्रसाद का 28 फरवरी 1963 को 78 वर्ष की आयु में पटना में निधन हो गया।
राजेंद्र प्रसाद की पत्नी की मृत्यु उनसे 4 महीने पहले 9 सितंबर 1962 को हो गई थी।
उन्हें महाप्रयाण घाट, पटना, बिहार, भारत में दफनाया गया था।
उन्हें पटना के राजेंद्र स्मृति संग्रहालय में सम्मानित किया गया है।
पुरस्कार और विद्वत्तापूर्ण विवरण
राजेंद्र प्रसाद को 1962 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
राजेंद्र प्रसाद एक विद्वान थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में 8 पुस्तकें लिखीं।
1922 में चंपारण में सत्याग्रह।
भारत का विभाजन 1946.
आत्मकथा बांकीपुर जेल में तीन साल की जेल अवधि के दौरान लिखी गई डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा थी।
महात्मा गांधी और बिहार, 1949 की कुछ यादें।
1954 में 'बापू के कदमों में'.
1960 में आज़ादी के बाद से.
भारतीय शिक्षा.
महात्मा गांधी के चरणों में।
राजेंद्र प्रसाद के बारे में इस जीवनी में, हमने राजेंद्र प्रसाद कौन हैं, राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम, उनका प्रारंभिक जीवन और शिक्षा, उनका परिवार, उनका राजनीतिक करियर, राजेंद्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति थे, उनके पुरस्कार और विद्वतापूर्ण विवरण, और उनकी मृत्यु।
निष्कर्ष
स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। देश के लिए उनका योगदान और भी व्यापक है. जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री के साथ, वह भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। वह उन समर्पित लोगों में से एक थे जिन्होंने मातृभूमि के लिए अधिक लक्ष्य-प्राप्ति की स्वतंत्रता के लिए काम करने के लिए एक आकर्षक करियर छोड़ दिया। स्वतंत्रता के बाद, वह संविधान सभा के अध्यक्ष बने, जिसे देश के संविधान का मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया था। दूसरे शब्दों में कहें तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के निर्माण में एक प्रमुख व्यक्ति थे।
इसलिए छात्रों को उनकी देशभक्ति और देश के लिए किए गए बलिदान को समझने के लिए राजेंद्र प्रसाद की जीवनी का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।
शरद कुमार श्रीवास्तव द्वारा
अंतर्जाल से संकलित
सोमवार, 16 अक्टूबर 2023
/माँ काली//प्रिया देवांगन "प्रियू"
अजब रूप माँ कालिका, दिखती है विकराल।
टूट पड़े गर दैत्य पर, बन जाती है काल।।
एक हाथ खप्पर धरे, दूजे में तलवार।
क्रोध सहे ना कालिका, माने कभी न हार।।
ज्वाला सी क्रोधित सदा, बिखरे लंबे बाल।
लाल–लाल जिभिया रहे, मइया रूप विशाल।।
सच्चे मन से प्रार्थना, माता कर स्वीकार।
भक्त खड़े हैं द्वार पर, करते जय -जयकार।।
मुख निकले आवाज जी, गूँज उठे संसार।
असुरों का वो रक्त पी, करती है हुंकार।।
मिलकर देवी देवता, जोड़े दोनों हाथ।
रौद्र रूप अब शांत हो, आये भोलेनाथ।।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
बाल रचना /ऐनक! | वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
कभी बड़ों की ऐनक छोटे,
बच्चे नहीं लगाते ,
इसे लगाने से आँखों को,
कई रोग हो जाते।
कई छात्र तो, दादीअम्मा,
ऐनक रोज़ लगाते,
इसके बिना एकअक्षरभी,
मुश्किल से पढ़ पाते।
उनके ही ऐनक लगतीजो,
खाने से कतराते,
दूध,दही,फल,मेवाओं को,
देख - देख घवराते ।
हरी सब्जियां,अंडे,मछली,
ऑंखें स्वस्थ्य बनाते,
सदा इन्हें सुंदर रखने की,
शर्ते सभी निभाते।
आँखों केप्रति लापरवाही,
कभी न अच्छी होती,
इन्हेंसाफ-सुथरा रखने से,
नहीं ज्योति कम होती।
पूरी नींद कभी आँखों में,
चुभन न होने देती,
कभी किसीके सर में कोई,
दुखन न होने देती।
तुम्हें तुम्हारे पूज्य गुरूजी,
इतना नहीं सिखाते,
कभी भूल से भीऔरों की,
ऐनक नहीं लगाते।
भूल हो गई दादीअम्मा,
कान पकड़ बतलाते,
नहीं छुएंगे हम यह ऐनक,
कसम आपकी खाते।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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गुरुवार, 28 सितंबर 2023
अमर शहीद भगत सिंह का 116 जन्मोत्सव
विगत कल अमर शहीद भगत् सिंह का 116 वां जन्म दिन था । उनको अपनी श्रद्धांजलि मैने निम्नलिखित पंक्तियों मे दी थी । वह आप सब के साथ बाँट रहा हूँ ।
अमर शहीद भगत् सिंह
वर्ष 1907 सितंबर 27 को भारत का ऐसा लाल हुआ
शीश चढाने भारत माँ को अपने आप मिसाल हुआ
सरदार किशन सिंह ,माँ विद्यावती का प्यारा ला ल हुआ
लायलपुर के बंगा गांव का बेटा इस धरती पर कमाल हुआ
नाम भगत सिंह सपूत देश का अंग्रेजो का काल हुआ
लाला जी पर नृशंसता का बदला उसने खूब कमाल लिया
राजगुरू संग सन 28 मे सैन्डर्स का काम तमाम किया
वीर सिंह था भारत माँ की खातिर फाँसी को लगा लिया गला
22 वर्ष की उम्र में फांसी को गले लगा लिया
हंस के चढा सूली पर इक पल भी उफ न किया
श्रद्धानत्
शरद कुमार श्रीवास्तव
इशिका का होमवर्क शरद कुमार श्रीवास्तव
इशिका अब आठ साल की हो गई है। वह अपनी मम्मी पापा के पास रहती है । मम्मी तो इशिका को बहुत प्यार करती हैं पापा की भी वह बहुत दुलारी है । अभी दो साल पहले तक स्कूल जाते समय मम्मी दूध का गिलास पकड़कर इशिका को पिलाती थी और उसके पापा तब उसका स्कूलबैग ठीक करते थे । इतनी मिन्नत इतने नखड़ों के बाद मे जब वह दूध नहीं पीती थी और स्कूलवैन आ जाती थी तो पापा उसे स्कूल वैन मे छोड़ आते थे।
इशी के स्कूलबैग मे मम्मी टिफिन बॉक्स रख देती थी लेकिन टिफिन बॉक्स ऐसे का ऐसे ही आ जाता था फिर दिन के खाने की टेबल पर वह टिफिन खाया जाता था । दरअसल उस के स्कूल से लौट कर आने के समय पापा मम्मी अपने आफिस मे रहते थे और बड़ा भाई अपनी पढ़ाई लिखाई मे व्यस्त रहता था । बाद मे बड़ा भाई जब पढ़ाई लिखाई से कुछ खाली हो जाता था तो ओवेन मे खाना गर्म कर अपना और इशिका का खाना टेबल पर लगाता था ।
मम्मी तबतक ऑफिस से आचुकी होती थीं और नहा धोकर आ जाती और तीनो लोग मिलकर खाना खाते थे। मम्मी को किसी प्रकार से पता नहीं चलता था कि इशी ने स्कूल मे टिफिन नहीं खाया है । परन्तु एक दिन सिंक मे पड़े टिफिन बॉक्स को देखकर मम्मी को पता चल ही गया और आया ने भी बताया कि अक्सर टिफिन बॉक्स मे बिनाखाया खाना फिकता है।
मम्मी ने जब इशिका से पूछा कि ऐसा क्यों होता है कि तुम टिफिन बिना खाए लौटकर ले आती हो तब उसने बड़ी मासूमियत से कहा कि टिफिन के समय वो होमवर्क कर लेती है ताकि खेलने के लिए कुछ समय मिल जाय । दरअसल घर मे लन्च के थोड़ी देर बाद ही ट्यूशन टीचर आ जाते है और उनके दिये होमवर्क के लिए घर मे समय नहीं मिलता है।
मम्मी समझ गई और वह स्वयं ही इशिता की पढ़ाई लिखाई देखने लगीं और इशिता भी अब खुश रहने लगी
शरद कुमार श्रीवास्तव
ओ कान्हा : रचना : प्रिया देवांगन "प्रियू"
ओ कान्हा!
हाथ थाम लो आकर मेरे,
कोई नहीं सहारा है।
मन कितना विचलित हो उठता,
ह्रदय सिसक कर रोता है,
जरा बता दे तू गिरधारी,
ऐसा ही क्यों होता है।
भीड़ भरी है इस दुनिया में,
लेकिन कौन हमारा है।।
जीवन इक अनमोल रतन है,
जैसे कोमल सी कलियांँ,
कदम बढ़ाऊंँ गर मैं आगे,
हर पथ पर रोके छलिया।
किस–किस को मैं व्यथा सुनाऊंँ
करते सभी किनारा हैं।।
बनकर दासी मैं चरणों में,
भक्ति भाव सम रम जाऊंँ।
शाम–सबेरे रज के कण–कण,
माथे मैं तिलक लगाऊंँ।
जगमग हो जायेगा जीवन,
बन के मेघ सितारा है।।
सब कुछ तो तेरे ही वश में,
तू ही है पालनहारी।
कैसी लीला रचते कान्हा,
हम पर पड़ जाता भारी,
ज्ञात तुम्हें है तेरे बिन अब,
होता कहांँ गुजारा है।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
मंगलवार, 26 सितंबर 2023
सोमवार, 25 सितंबर 2023
रविवार, 17 सितंबर 2023
जीवन बसंत का सुआगमन : श्रीमती वीणा श्रीवास्तव
"नाना की पिटारी" पत्रिका के प्रकाशन की प्रेरणास्रोत स्व. श्रीमती वीना श्रीवास्तव की 15वीं पुण्यतिथी 27/08 को थी इस अवसर पर उनकी एक अनमोल रचना हम पुन: प्रस्तुत कर रहे है॔
जीवन बसंत का सुआगमन
मन के छोटे से उपवन मे
फूल खिले हैं रंग बिरंगे
जिन्हें देखकर उठती रहती
मन में मेरे नई तरंगे
इन फूलों पर भँवरे मंडराकर
गुनगुनाकरगीत सुना कर
इनका मीठा रस पी जाकर
इठ्लायेंगे मस्ती में
तितलियां झूमेंगीं मन की बस्ती में
स्वछन्द बिहंगजन फुदकफुदक कर
इस डाली से उस डाली पर जाकर
फूलों पे या पत्तों में छुप जाकर
मधुर-मदिर कल्लोल सुनाकर
चिड़ियाँ,भी मेरा मन हर्षाएँगी,
प्रेम सुधा बरसा जाएँगी
सुरभि प्रवाहित मस्त पवन
जीवन बसंत का सुआगमन
सिंचित करदेगा जीवन पौध को
भर देगा हर्षित अनमोल उमंग अनंत
वीना श्रीवास्तव
शनिवार, 16 सितंबर 2023
मेरी बहना : रक्षाबंधन की रचना : प्रिया देवांगन प्रियू
अपना पराया : एक लघुकथा : रचना प्रिया देवांगन प्रियू
"अभी तक खेत से माँ-बाबूजी दोनों नहीं आये हैं। कम से कम माँ को तो आ ही जाना चाहिए था। पता नहीं, इतनी बारिश में वे दोनों कहाँ होंगे।" घर से बार-बार निकल कर सुमन राधे और गौरी की राह ताक रही थी।
शाम का समय था। घड़ी की सुइयाँ पाँच बजने का इशारा कर रही थी। चूँकि बारिश का मौसम था; सो घटाटोप अंधेरा छाने लगा था। तरह–तरह के कीट–पतंगे व झींगुर की आवाज सुमन के कानों को छू रही थी। सुमन बहुत डरी हुई थी आज। कई तरह की शंकाएँ सुमन को घेरती जा रही थी- "पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था; पता नहीं आज अचानक क्या हो गया। वे दोनों खेत से जल्दी आ जाया करते थे।"
सुमन के दिलो-दिमाग में बड़ा विचलन था। उसका किसी कार्य में मन ही नहीं लग रहा था। देखते ही देखते गरजना शुरू हो गया। बिजली भी चमकने लगी। तभी उसे कुछ दिन पहले गाँव में हुई एक घटना याद आने लगी। वह सहम गयी। खेतों में काम कर रही महिलाओं के ऊपर गाज जो गिर गयी थी। सब ने दम तोड़ दिया था। बार–बार वह दृश्य आँखों के सामने झूल रहा था रहा था। अब तो सुमन की मन ही मन बात हो रही थी कि माँ–बाबू जी दोनों से मैंने कहा था कि जल्दी आना। फिर भी वे मेरी बातें नहीं सुनते।
जैसे ही सुमन घर अंदर आयी, बिजली चली गयी। जैसे–तैसे उसने मोमबत्ती जलाया। घर में रोशनी हुई। मन थोड़ा शांत लगा। सुमन घबराने लगी थी- "हे प्रभु ! मेरे माँ–बाबू जी जल्दी घर आ जाए। मुझे बहुत घबराहट हो रही है। कहीं... कुछ...!"
थोड़ी देर बाद सुमन को राधे की आवाज सुनाई दी- "सुमन ....! अरी ओ सुमन बिटिया ! जरा मोमबत्ती बाहर लाना तो; बहुत अँधेरा है।" सुमन के जान में जान आई। "जी बाबू जी...." कहते हुए बाहर निकली। सुमन की आँखें माँ को ढूँढ रही थी- "बाबू जी, माँ कहाँ है ? आप लोगों ने इतनी देर क्यों लगा दी आने में ? देखो न, बस बारिश होने ही वाली है; जल्दी आना चाहिए था ना। क्या कर रहे थे आप लोग अभी तक ?"
सुमन का तो आज सवाल पे सवाल हो रहा था। तभी पीछे से माँ की परछाई नजर आयी। सुमन मुँह बनाते हुए बोली- "आप दोनों को तो मेरी बिल्कुल चिंता ही नहीं है।" तभी अचानक अपनी माँ गौरी को देखते ही सुमन की आँखें फटी की फटी रह गयी। उनकी गोद में एक छोटा सा घायल बछड़ा था।
सुमन चुपचाप घर के अंदर चली गयी। सुमन का गुस्सा और भी तेज हो गया था। बोलने लगी कि इतनी रात हो गयी; और आप लोग इस बछड़े को लाये। इसकी क्या जरूरत थी। मैं यहाँ परेशान हूँ। तरह–तरह के मन में ख्याल आ रहे हैं और आप लोग, बस !"
राधे और गौरी ने सुमन को शांत करते हुए पूरी घटना की जानकारी दी- "यह बछड़ा कुछ देर पहले ही जन्म लिया था और इसकी माँ उसे छोड़ कर कहीं चली गयी थी। बछड़ा हम्मा...हम्मा... कर रहा था। इसकी मदद करने वाला कोई नहीं दिखा। तेज बारिश भी हो रही थी। बेचारा भीग रहा था। हमें लगा कि बछड़ा बेसहारा है। आधी रात को भला कहाँ जायेगा ? यदि कभी कोई तुम्हें मदद माँगे तो क्या तुम छोड़ कर आ जाओगी सुमन ? मदद नहीं करोगी ? अरे ये तो बेचारा बोल नहीं सकता , तो क्या हम इनकी भाषा भी ना समझें। हमें सब की मदद करनी चाहिए सुमन।" गौरी बोलती ही रही- "सुमन, तुम ही बताओ। अभी थोड़ी देर पहले तुम हम दोनों के बगैर कैसे तड़प रही थी ? जबकि तुम्हें तो पता ही है कि हम आयेंगे ही; फिर भी?" अपने माँ और बाबू जी की बातें सुन सुमन ने अपनी ओर देखते उस मासूम बछड़े को गले से लगा लिया। राधे और गौरी सुमन व बछड़े दोनों को सहला रहे थे
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
मम्मी जल्दी आना : रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"
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बुधवार, 16 अगस्त 2023
पहियों के अविष्कार की कहानी रचना शरद कुमार श्रीवास्तव
नाना जी के साथ गुड्डू पार्क से लौट रहा था । वह एक नर्सरी की पोयम गुनगुना रहा था ।
सूरज गोल चन्दा गोल, मम्मी जी की रोटी गोल, पापा जी का पैसा गोल
फिर वह कुछ सोचने लगा और अपने भोले पन के साथ उसने नानाजी से पूछा "अच्छा नाना जी,पापा की कार के पहिये भी तो गोल होते हैं ?" नाना जी बोले हाँ बेटा वे भी गोल होते हैंं लेकिन ये मशीन का हिस्सा होते हैं। तुम्हारे पापा का पैसा, तुम्हारी मम्मीजी की रोटी सुरज चन्द्रमा भी गोल होते हैं, परन्तु यह मशीन नहीं होते हैं। पहिये एक तरह की मशीन होती हैं। एक धुरी पर लगे पहिये घूमते हैं तभी तो तुम्हारी कार चलती है.
अच्छा नाना जी, मैने तो सुना है कि पेट्रोल से गाडी चलती है । गुड्डू की तीव्र बुद्धि के सामने एक बार नाना जी सकपका गये । वे बोले तुमने ठीक ही सुना है पेट्रोल से कार का इन्जन चलता है फिर यह इंजन ताकत लगा कर पहियों को तेजी से घुमाता है तो पहिया गोल घूमता हुआ गाड़ी को आगे बढाता है । अच्छा बताओ ऐसे कौन कौन से पहिये तुम जानते हो जो धुरी पर चलते हैं गुड्डू बोला कार ,साइकिल,मोटरसाइकिल के पहिये. नाना जी बोले पौटर्स व्हील, ड्राइवर की स्टेरिग और सभी मशीने आदि बहुत सी चीजो मे पहिये या पहिये जैसी चीजों का उपयोग होता है।
गुड्डू जानते हो कि इस प्रकार की वस्तुओ का इस्तमाल पहली बार लगभग ५५०० वर्ष पहले किया गया था । गुड्डू ने पूछा, वह कैसे ? तब नानाजी बोले, कहा जाता है कि सबसे पहले कुम्हार का चाक् बना जिस पर आदि काल मे बर्तनों को बनाया होगा । फिर बड़े- बड़े लकड़ी के लट्ठो को लकड़ी के पहिया नुमा दो चीजो को बीच मे एक डन्डे से जोड कर लुढ़काया जाता रहा होगा । यही आगे चलकर, जाने अनजाने ट्रान्सपोर्ट और आज की मशीनो के बनाने की पहल रही होगी
नि:शब्द : प्रिया देवांगन "प्रियू" की लघुकथा
मंगलवार, 8 अगस्त 2023
रविवार, 6 अगस्त 2023
बाल रचना /बादल से विनती ! वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी'
काले बादल आए आकर चले गए
कबतक लौटेंगेबतलाकर नहींगए।
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ताल, तलैया, नाले सारे सूखे हैं
दादुर, मोर,पपीहा भी तो भूखे हैं
ठहरी-ठहरी हैं कागज़ की नौकएं
बादल भैया क्यों बच्चों से रूठें हैं।
इंतज़ार में सारी छुट्टी बीत गईं
लगताहै इसबार गर्मियां जीत गईं
जीव-जंतु सब मारे-मारे फिरते हैं
पानीकी बोतल भी सारी रीत गईं।
छतरीभी कबसे खूंटी परलटकीहै
बरसातीभी अपना रस्ताभटकी है
लौंग बूट भी पड़े हुए हैं टांडी पर
धानलगाने मेंभी दुविधाअटकी है।
हम बच्चोंकीउतरी सूरत पढ़लेना
पानी बरसाने के बाद अकड़लेना
दयाकरोबादल अज्ञानी बच्चोंपर
घोरगर्जना करके खूब बरसलेना।
बारिश की बूदों में हमें नहाना है
नाच-नाच करकेआनंदउठाना है
बादलतुमसेइतनी विनतीकरतेहैं
वर्षाकरने तुमको वापसआना है।
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वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी'
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कागज की नाव शरद कुमार श्रीवास्तव
कागज की नाव
कागज की नाव चली
टिंकूजी के गांव चली
सड़क मोहल्ले गली
बहकर पानी मे चली
वो छुपती छुपाते चली
वो बचती बचाते चली
टिंकूजी की नाव चली
कागज की नाव चली
बरसाती पानी में चली
झूमती झामती चली
टिंकूजी की नाव चली
कागज की नाव चली
पिंटू की एक न चली
मन्टू की एक न चली
टिंकू ही की नाव चली
कागज की नाव चली
शरद कुमार श्रीवास्तव
राही बाल प्रेरक कविता रचना प्रिया देवांगन प्रियू
गुरुवार, 27 जुलाई 2023
सावन के मजा छत्तीसगढी रचना प्रिया देवांगन "प्रियू
बुधवार, 26 जुलाई 2023
चुटकुले संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव