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सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

डॉक्टर प्रभास्क पाठक की सरस्वती वंदना


2217 नमन विदा वेला में भारती विद्यादायिनी करूँ आरती, मेरे देश के हर बच्चे के व्यथा सद्य सँवारती ! सुबह-सुबह बच्चों के कर में देखा करती पन्नी क्यों, पोथी और खिलौने से वंचित देश काटता कन्नी क्यों?
भारत का हर एक बच्चा घनश्याम राम से आगे है बेटियाँ हमारी सीता सम मीरा ऋतंभरा से जागे हैं । कल पता किसे इनमें से ही बुद्ध ,क्राइस्ट जग जाएगा, सीता, राधा, तुलसी, कमला से इक आयाम नया गढ़ जाएगा । इस माटी में विखरे फूल मत इसे कभी मुरझाने दो, अपनी थाली के कौर बचा भूखे की भूख मिटाने दो । नित प्लेटफार्म पर बचपन को मत हाथ कभी फैलाने दो, ममता पलती जिस गुड़िया में मत पोंछे में बह जाने दो । होटल,ढाबा,उद्योगों से बचपन को मुक्त कराना है, फुटपाथों में,बाजारों में एक मंदिर नया बनाना है । अपने घर में जो पुस्तक हैं उनके कर में खिल जाने दो, कपड़े ,पैसे, रोटी के हित मत अस्मत कभी बिछाने दो । लाला मिस्टर धनपति कुबेर , यह सम्पूर्ण राष्ट्र की पूजा है, बेबश की जो आँसू पोंछे भगवान् न उससे दूजा है । बीणा से निकली यही राग हंसिनी कहे अक्षर को सुन, है मूर्तिमंत वागीश वहीं जहाँ खिलते मुरझाये प्रसून ।। डाॅ प्रभास्क/राँची/9430365767।

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