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मंगलवार, 6 जून 2017

प्रभु दयाल श्रीवास्तव की रचना लपक लिये आम



लपकी ने लपक लिए,

थैले से आम।


अम्मा से बोली है,

आठ आम लूँगी मैं।

भैया को दीदी को,

एक नहीं दूँगी मैं।

जो भी हो फिर चाहे,

इसका अंजाम।


न जाने किसने कल

,बीस आम खाये थे।

अम्मा ने दिन में जो,

फ्रिज में रखवाए थे।

शक के घेरे में था,

मेरा भी नाम।

नाना के आमों के,

बागों में जाउंगी।

आमों संग नाचूंगी,

आमों संग गाऊँगी।

गर्मी की छुट्टी बस,

आमों के नाम।


                        प्रभु दयाल श्रीवास्तव 
                         छिंदवाड़ा 

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