आॅंचल बहुत समझदार बालिका थी। वह सबका कहना मानती थी। सबके काम करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। उसका विद्यालय घर से थोड़ी दूर था। वह सुबह अकेली, पैदल विद्यालय जाती थी। आॅंचल को रास्ते में रोज़ एक बालक मिलता। उसके कंधे पर भी छोटा सा बस्ता होता और छोटी सी पानी की बोतल भी होती। उसके हाथ में डंडा होता और वह डंडे को ज़मीन पर रगड़-रगड़कर चलता। अगर डंडा किसी चीज़ से टकरा जाता तो वह अपना रास्ता बदल लेता। आॅंचल ने उस बालक को कई बार गिरते हुए भी देखा था। वह गिरता तो उसका बोतल ंऔर बस्ता भी गिर जाता। कई बार सड़क पर चलने वाले लोगों से वह टकरा जाता और लोग पलटकर उसे ही डाॅंटते। आॅंचल उसकी मदद करना चाहती थी। एक दिन विद्यालय जाते समय, जब वह बालक दिखाई दिया तो आॅंचल उसके पास पहॅुची और उसका नाम पूछा। उसका नाम रोहित था, रोहित ने आॅंचल को बताया कि एक सड़क दुर्घटना में उसकी एक आॅंख की रोशनी बिलकुल समाप्त हो गई थी और दूसरी आॅंख से भी उसे थोड़ा ना के बराबर दिखाई देता था। कोई दुर्घटना ना हो जाए इसलिए रोहित डंडा लेकर चलता था। आॅंचल उसकी मदद करना चाहती थी पर उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
एक दिन आॅंचल अपनी माॅं के साथ बाज़ार गई, वहाॅं दुकान पर उसने घुॅंघरू देखे।
घुंघरूओं का आवाज़ सभी ग्राहकों को आकर्षित कर रही थी। आॅंचल ने बहुत सारे र्घुॅंघरू खरीदे और अगले दिन उसने वे सब घुॅंघरू रोहित के डंडे पर बाॅंध दिए। रोहित ने जब चलना शुरू किया तो आगे जाने वाले और पीछे चलने वाले सभी राहगीर उसे देखने लगे। रोहित के डंडे में लगे घ्ंाुॅंघरू तेज़ आवाज़ कर रहे थे। आॅंचल ने देखा उन घुॅंघरूओं की आवाज़ सुनकर, सभी राहगीर रोहित के आगे से हटकर, उसे रास्ता दे रहे थे। यह सब देखकर आॅंचल बहुत प्रसन्न हुई, रोहित ने आॅंचल को धन्यवाद दिया। रोहित यह सोचकर संतुष्ट था कि कम से कम अब वह सड़क पर चलने वाले लोगों से नहीं टकराएगा।
मधु त्यागी
ओ- 458 , जलवायु विहारसैक्टर- 30 गुरूग्राम हरियाणा ।
Very nice ...Ball kahani...
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