पहन पीले अमलताश की माला
गुलमोहर का लाल तिलक
माथे पर लगा
वस्त्र गेंदों का पहने
रंग था जिसका पीला
दोनों हाथ फैलाये
प्रकृति से कह रहा बसंत
आयो पास मेरे
ले लो पहला चुम्बन
शरमाती लजाती
सरसों की पीली चुनरी ओढ़े
पलाश की बिंदिया,
मांग सजी टेशू से,
कानों पर कमल के कु़ंडल,
प्रकृति चली आई पास
चुम्बन का जैसे ही हुआ एहसास
खिल उठी धरती रंगो से
सूखे पत्तों से झांकने लगी
नव कोपलें
भौरों के गुंजन से
गुनगुना उठा पवन
गाने लगी कोयल
तबले की थाप दे रहा कटफोड़वा
ओस की बूंदे
लजाती शरमाती सी
छुप रही बादलों में
मुस्का उठा अनल।
बसंत को निहारता अब भी
मुस्का रहा अनल।
रचना
सुधा वर्मा
गीतांजली नगर रायपुर
छत्तीसगढ़
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