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रविवार, 6 मई 2018

सुशील शर्मा की लघुकथा : बिस्कुट और दूध




"जल्दी जल्दी हाथ चलाओ फिरी के पैसे नही आते न मेरे घर में रुपयों का पेड़ है जो तोड़ कर तुम्हे दे दूंगा" रामपुकार ने भरी दोपहर में अपने मकान में काम कर रहे मजदूर सेकहा।

"जी कर तो रहे है बहुत तेज धूप है दो मिनिट सुस्ता तो लें"

धूप में हांफता हुआ रामधन बोला

"अजी का सुस्ता लें ? सुबह से कितना काम किया है। अभी शाम को पैसे गिनाने में धूप नही लगेगी तुम्हें"

रामपुकार ने जोर से मजदूर को डांटा।

पास में ही मजदूर का 4 साल का बालक धूप में खेल रहा था दौड़ कर आया बोला "बाबा मुझे भूख लगी है"

रामधन ने रामपुकार सेठ की ओर देखा लेकिन उसके भाव देखकर उसकी हिम्मत नही हुई कि वह अपने बच्चे के लिए रोटी मांग ले

ऊपर से रामपुकार सेठ की पत्नी की आवाज़ आई 

"सुनो अपने डॉगी के बिस्कुट खत्म हो गए है जाओ ले आओ"

रामपुकार  अपनी पत्नी की आज्ञा मानकर बाजार से बिस्कुट लेने चले गए ।

कुछ देर बाद रामपुकार सेठ की पत्नी कुत्ते को दूध और बिस्कुट खिला रही थी।

मजदूर का भूखा बेटा कातर निगाहों से उन बिस्कुट और दूध को देख रहा था।


सुशील  शर्मा 

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