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शनिवार, 26 मई 2018

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : चमत्कार





शामू अपनी बैलगाड़ी मे अनाज की बोरियां लादकर बाजार मे बेचने ले जा रहा था |
वह बहुत खुश था कि आज अनाज बेचकर बहुत से पैसे मिलेंगे | उन पैसों से बच्चों व पत्नी के लिये नये कपड़े खरीदूंगा और मिठाई भी लेता जाउँगा |
वह अभी कुछ ही दूर गया होगा कि हल्की हल्की बारिश होने लगी | लेकिन वह अपनी धुन मे चला जा रहा था | अब बारिश तेज होने लगी थी | कच्चा रास्ता था | जगह जगह गड्ढे हो गये थे | आगे एक बड़ा गड्ढा आया | उसमे पानी भरा था| शामू की बैल गाड़ी का पहिया उसमे फंस गया | बहुत कोशिश करने के बाद भी गाड़ी नहीं निकल पाई  |

    क्रोधित होकर वह लगा बैलों को मारने  और जब मारते मारते थक गया तो वह हारकर जमीन पर बैठ गया | हे ईश्वर अब  तू ही बेड़ा पार लगा |    
कुछ देर मे उसे एक आवाज सुनाई  दी | आवाज ने कहा, अरे बुद्धू तू बैलों को क्यूँ मार रहा है | पहले गड्ढे मे   ईंटों के टुकड़े भरो| जमीन बराबर होगी तब आसानी से तुम्हारी गाड़ी गड्ढे से बाहर आ जायगी | और दो चार बोरी हटा दो तो गाड़ी हल्की हो जायगी |

शामू ने वैसा ही किया | गड्ढे मे  ईंटों के टुकड़े भरे|  और गाड़ी पर से बोरी हटाई | 
दोनो बैलों ने जोर मारा और गाड़ी बाहर आ गई |

शामू ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और बोला वाह! चमत्कार हो गया |
आवाज़ ने फिर कहा ये चमत्कार नहीं |  ये तुम्हारा ही किया चमत्कार है |
किसी भी काम को करने मे बुद्धि भी लगानी पड़ती है |

ईश्वर उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं |


                             मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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