अपने यादों के संग्रह से हम लाये हैं हमारी भूतपूर्व लेखिका स्वर्गीया मंजू श्रीवास्तव जी अप्रतिम रचना सुयश और दादाजी
सुयश अपने मम्मी, पापा, दादा,दादी के साथ रहता था | बहुत होशियार था | पढ़ने मे तेज और आज्ञाकारी था |
उसके मम्मी पापा ऑफिस जाते थे | सुयश अपने दादा दादी के पास रह जाता था |
५,वीं कक्षा का छात्र था | दादा जी से के पास ही अपना होम वर्क, पढ़ाई आदि करता था |
एक बार वह एक सवाल मे अटक गया | हल नहीं निकल पा रहा था | दादा जी से पूछा | उन्होंने अच्छी तरह समझा कर बता दिया | | थोड़ी देर बाद फिर वही सवाल पूछने आया सुयश | दादाजी ने फिर बता दिया| इस तरह ४ बार वही सवाल पूछा सुयश ने दादा जी से | पर दादा जी ने बिना गुस्सा किये फिर बता दिया |
इसी तरह दिन बीत रहे थे | सुयश अब कॉलेज का छात्र था | पढ़ने मे होशियार तो था ही | स्वभाव मे भी थोड़ा बदलाव आ गया था | गुस्सा बहुत करने लगा था |
बढ़ती उम्र के साथ दादाजी की याद दाश्त कमजोर होने लगी थी |
एक दिन की बात है दादा जी ने सुयश को बुलाकर कहा बेटा मेरा चश्मा कहां रखा है जरा देख कर दे दो | सुयश ने चशमा लाकर दे दिया |
दूसरे दिन दादाजी ने फिर पुकारा, सुयश चशमा कहां रख दिया, मिल नहीं रहा है | सुयश ने लाकर दे दिया| तीसरे दिन दादाजी ने फिर पुकारा सुयश को| सुयश ने गुस्से से कहा, क्या दादाजी आप अपना चशमा ठीक से क्यों नहीं रखते? बार बार तंग करते हैं |
सुयश की बात मां ने सुन ली | सुयश को बुलाकर कहा, बेटा तुमने दादाजी से ऐसे क्यों बात की? तुम्हे याद है ,जब तुम सवाल बारबार पूछते थे दादाजी बार बार बताते थे | कभी गुस्सा नहीं करते थे | अब उनकी उम्र हो गई है | भूल जाते हैं |
तुम्हारी बातों से उनके दिल को कितनी चोट पहुंची होगी?
उसके मम्मी पापा ऑफिस जाते थे | सुयश अपने दादा दादी के पास रह जाता था |
५,वीं कक्षा का छात्र था | दादा जी से के पास ही अपना होम वर्क, पढ़ाई आदि करता था |
एक बार वह एक सवाल मे अटक गया | हल नहीं निकल पा रहा था | दादा जी से पूछा | उन्होंने अच्छी तरह समझा कर बता दिया | | थोड़ी देर बाद फिर वही सवाल पूछने आया सुयश | दादाजी ने फिर बता दिया| इस तरह ४ बार वही सवाल पूछा सुयश ने दादा जी से | पर दादा जी ने बिना गुस्सा किये फिर बता दिया |
इसी तरह दिन बीत रहे थे | सुयश अब कॉलेज का छात्र था | पढ़ने मे होशियार तो था ही | स्वभाव मे भी थोड़ा बदलाव आ गया था | गुस्सा बहुत करने लगा था |
बढ़ती उम्र के साथ दादाजी की याद दाश्त कमजोर होने लगी थी |
एक दिन की बात है दादा जी ने सुयश को बुलाकर कहा बेटा मेरा चश्मा कहां रखा है जरा देख कर दे दो | सुयश ने चशमा लाकर दे दिया |
दूसरे दिन दादाजी ने फिर पुकारा, सुयश चशमा कहां रख दिया, मिल नहीं रहा है | सुयश ने लाकर दे दिया| तीसरे दिन दादाजी ने फिर पुकारा सुयश को| सुयश ने गुस्से से कहा, क्या दादाजी आप अपना चशमा ठीक से क्यों नहीं रखते? बार बार तंग करते हैं |
सुयश की बात मां ने सुन ली | सुयश को बुलाकर कहा, बेटा तुमने दादाजी से ऐसे क्यों बात की? तुम्हे याद है ,जब तुम सवाल बारबार पूछते थे दादाजी बार बार बताते थे | कभी गुस्सा नहीं करते थे | अब उनकी उम्र हो गई है | भूल जाते हैं |
तुम्हारी बातों से उनके दिल को कितनी चोट पहुंची होगी?
मां की बात सुनकर सुयश को अपनी गलती का एहसास हुआ और सुयश ने जाकर दादाजी से माफी मांगी |
मां ने कहा, बेटा दादाजी तुम्हें बहुत प्यार करते हैं | आगे से कभी उनका दिल न दुखाना |
बच्चों ,बुज़ुर्गों को बच्चों से सिर्फ प्यार चाहिये | उनका कभी अपमान नहीं करो | वो घर की रौनक हैं |
मां ने कहा, बेटा दादाजी तुम्हें बहुत प्यार करते हैं | आगे से कभी उनका दिल न दुखाना |
बच्चों ,बुज़ुर्गों को बच्चों से सिर्फ प्यार चाहिये | उनका कभी अपमान नहीं करो | वो घर की रौनक हैं |
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
बहुत सुंदर ! बधाई ! नयी पीढ़ी को यह बात समझनी चाहिए !
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