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जो जीतेगा उसे मिलेंगे,
यह बेसन के लड्डू,
लाद पीठ पर जो साथीको,
खिलवाएगा चड्डू।
बढ़कर आगे गोलू ने तब,
अपना नाम लिखाया,
देख स्वयं मोटे साथी को,
उसका मन घबराया।
जैसे-तैसे लाद पीठ पर,
पहला कदम बढ़ाया,
सांस चढ़ गई,गोलूजी को,
खूब पसीना आया।
पैर हिल गए दर्द बढ़ गया,
पकड़ हो गई ढीली,
लगी प्यास गोलू को भारी,
सारी बोतल पी ली।
भद्द-भद्द गिरपड़े भूमिपर,
जैसे भिलिया कद्दू,
लार टपकटी रही देखकर,
मिला न खाने लड्डू।
एक-एक कर निकले सारे,
जैसे मरियल पद्दू,
ऐसे कैसे जीत सकोगे,
कहते प्यारे दद्दू।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ.प्र.
9719275453
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