ब्लॉग आर्काइव

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

गिलहरी



धरा पर कभी पेड़ पर ठहरी
दाना-तृन खाती हुई  गिलहरी
पिछले पैरों पर खड़ी हो जाती
दाना खाती हुए वो हमे लुभाती

पंछी चिडियों से वह पंगा लेती
दाना किसी को नहीं खाने देती
फुदक इधर से उधर वह जाती
कण-कण दाना चट कर जाती

                             शरद कुमार श्रीवास्तव


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