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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

प्रिन्सेज डाॅल का मैरी क्रिसमस

 


प्रिन्सेज डाॅल आज बहुत खुश है । उसके चाचा चाची, अपनी प्यारी बेटी मोनिका डॉल के साथ आये हैं । मोनिका, प्रिन्सेज के बराबर के उम्र की ही है । चाचा जी प्रिन्सेज डाॅल के लिए बहुत सारे गिफ्ट्स भी लाए हैं । इलेक्ट्रॉनिक खिलौने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेन के इंजन एक रोबोट।   प्रिन्सेज ने वैसा रोबोट पहले कभी नहीं देखा था । मास्क ऐसा कि पहनने के बाद एकदम रूप बदल जाए। चाकलेट कैन्डीज भी बहुत डेलिशस हैं ।  कल मैरी क्रिसमस  है न ।  आज तो सैंटा  क्लाॅज का भी इन्तजार है।
प्रिन्सेज को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि चाचाजी और चाचीजी फ्रांस मे रहने के बावजूद  भारत के खाने को बहुत चाव से खा रहे हैं । वे लोग पिछ्ले  वर्ष कई सालों के बाद भारत आए हैं उसके जन्म के बाद शायद पहली बार ही वे भारत आए थे । उसने तो पहले कभी नहीं देखा था इन लोगों को । मोनिका हिन्दी जानती है पर ठीक से अब भी बोल नहीं पाती है । प्रिन्सेज को कोई तकलीफ नहीं है वह तो अंग्रेजी जानती है उसके स्कूल में अंग्रेजी में ही पढाई लिखाई की जाती है । बच्चे भी आपस में अंग्रेजी में ही बातचीत करते हैं । फिर कोई बाहर से ही क्यों न आया हो प्रिन्सेज के स्कूल के बच्चों को कोई तकलीफ नहीं होती है । हाँ बोलने के तरीके अलग अलग हैं ।
मोनिका डॉल को भारत आने पर बहुत तकलीफ हो रही थी । यहाँ पर भी करोना का प्रकोप है। वह  यहाँ भी कहीं बाहर  नहीं जा सकती है।  इतने मे  प्रिन्सेज की बिल्ली 'पूसी' आकर मोनिका की गोद में बैठ गई । मोनिका को बहुत अच्छा लगा । मोनिका डॉल ने प्रिंसेस डॉल को बताया कि पेरिस में उसके पास भी एक मोटा बिल्ला था जिससे वह खेलती थी । पूसी को देखकर वह उदास हो गयी उसे भी अपने बिल्ले की याद आ गई थी। मोनिका डॉल ने प्रिंसेस डॉल से कहा तुम्हारी पूसी तो बहुत छोटी सी है मेरा बिल्ला राफी बहुत स्ट्रांग बिल्ट का है। प्रिन्सेज ने कहा कि लेकिन मेरी पूसी भी कमजोर नहीं है शेर से पंगा ले चुकी है और बदमाश जादूगर की नाक पर भी इसने झपट्टा मारा था । मेरी बहुत मदद करती है । मोनिका को वफादार पूसी पर बहुत प्यार आया । तब तक प्रिन्सेज  की मम्मी पूसी के लिए एक कटोरी में दूध रोटी ले आई और पूसी ने उसे चपर -चपर खा लिया ।
 प्रिन्सेज डाॅल बहुत खुश थीं ।   इस बार घर मे खूब चहल पहल थी । पापा एक्समस  ट्री लेकर  आये थे।  उसमे लाइट  लगाई  गई  ट्री को सजाया गया ।   कैम्प फायर हुआ सब लोग आग के सामने खूब  नाचे गाए ।   रात के बारह बजे प्रमुख केक काट कर  प्रभु ईसामसीह का जन्मदिन  मनाया और फिर  सब लोग  खाना खाकर  सो गए  ।  प्रिन्सेज  डाॅल   और  मोनिका जब सुबह  सोकर  उठे तब प्रिन्सेज  के सिरहाने पर एक यूनीकार्न ( साफ्ट ट्वाय) रखा हुआ  था  और मोनिका के सिरहाने पर एक राजस्थानी गुड़िया रखी थी ।  दोनो बच्चे बहुत  खुश हुए  और  उन्होंने  सैन्टा क्लाॅज  को बहुत  धन्यवाद  देकर मैरी क्रिसमस  मनाया।  दोनो परिवारों मे उपहारों का आदान-प्रदान  हुआ  ।   बच्चो  ने गाने गाए ।  पहेलियां चुटकुले सुनाए गए ।   ठंडक  बढ़ रही थी ।  चाचा, चाची और मोनिका डॉल को दूर जाना भी था इसलिए खाने मे देर  नहीं की गई  ।   खाने के बाद  वे सब लोग  अपने घरों को चले गए 



शरद कुमार श्रीवास्तव 

बाल गीत (जंगल) रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 


जंगल के हम रहने वाले।

कन्द मूल को खाते हैं।।

हट्टे कट्टे हम है यारों।

उठ कर दौड़ लगाते हैं।।



हाथी बंदर धूम मचाते।

उछल कूद सब करते हैं।।

बन्दर देख कर सभी बच्चे।

ताली खूब बजाते हैं।।



दूर सभी रहते महलों से।

कड़ी मेहनत करते है।।

कंद मूल अरु लकड़ी लाकर।

पेट सभी हम भरतें हैं।।


सादा जीवन उच्च विचारें।

हम जंगल वनवासी है।।

मिलजुल सब कर रहते साथी।

हम जंगल के दासी है।।




माटी पुत्री -प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997

क्रिसमस डे"


 





आओ बच्चों सारे मिलकर।
क्रिसमस डे मनाएंगे।।
खूब सारे खिलौने टॉफी।
मिलकर के हम खाएंगे।।

नये नये खिलौने देख कर।
बच्चे खुश हो जाते हैं।।
खेल खिलौना खेल खेल कर।
खुशियाँ मन मे लाते हैं।।

लाल लाल कुर्ता पैजामा।
टोपी लाल लगाते हैं।।
सफेद मूछ लगाकर के वह।
पास  सभी के जाते हैं।।

हरे भरे क्रिसमस ट्री देखकर।
सारे खुश हो जाते हैं।।
नये करतब दिखाते सारे।
बच्चे गाना गाते हैं।।

नये साल पर नया सन्देश।
सांता देकर जाते हैं।।
खूब बजाते ताली बच्चे।
मिलकर धूम मचाते है।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

माँ की सीख (लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह

 


कोरोना,कोरोना,कोरोना,,,लड़का अपनी माँ पर खीजता हुआ घर के बाहर चला गया।माँ मास्क हाथ में लिए देखती ही रह गई।

    यह लड़का मेरी बात नहीं सुनता।बारबार हाथ साबुन से धोने,कपड़े धोने और मास्क लगा कर रहने की बात क्या गलत है।     माँ अनेक शंकाओं में घिरी उसके शकुशल घर लौटने की राह देखती है।

    बेटा यह सोचकर घर से निकला कि अब मैं उस घर में नहीं जाऊंगा जहां सर समय पाबंदियों में जीना पड़े।कभी यहां कभी वहां सुबह से शाम तक घूमते हुए थक गया भूख अलग से सताने लगी।वह नज़दीक के गांव में रह रही अपनी बहन के यहाँ पहुंचा।किवाड़ खटखटाई खिड़की खोलकर बहन देखा मेरा भाई आया है,जैसे ही उसने दरवाज़ा खोलने को हाथ बढ़ाया उसके पति ने कहा अगर भाई ने मास्क पहन रखा हो तभी द्वार खोलना वरना उसे पहले मास्क लगाकर आने को कहो।

      बहन ने यही बात अपने भाई को बोल दी।इसके बाद वह कई जगह गया हर जगह उसे कोरोना से बचाव की चेतावनी सुननी पड़ती।

       इधर माँ एकटक उसकी राह देख देखकर पागल हुई जा रही थी।तभी अचानक दरवाजा बजा मां ने कौतूहलवश दरवाज़ा खोला,देखा कि उसका बेटा निढाल सा पड़ा हुआ है।माँ ने किसी तरह उसे चारपाई पर लिटाकर आराम दिलाया।

      फिर उसके मुंह हाथ धुलकर उसके कपड़े बदलवाए उसके बाद खाना खिलाकर पूछा, क्या में गलत थी जो तुझे इस भयानक बीमारी से बचने की सलाह देती रही।

       बेटा बेहद शर्मिंदा हुआ और मां के पैरों में गिर कर क्षमा मांगी और मां की हर सीख पर अमल करने  का आश्वासन देते हुए तुरत माँ से मास्क मांगकर लगा लिया।

    अब उसकी समझ में पूरी तरह आ चुका था कि हर बीमारी का इलाज जानकारी और बचाव में ही निहित है।इसलिए मास्क पहनिए,बार बार साबुन से हाथ धोइए,और उचित दूरी रखिए।

     


                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

घोड़ा गाड़ी(बाल रचना) : रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 





तुगड़म तुगड़म तुगड़म करती

आई          घोड़ा          गाड़ी

हैट  लगाकर  हांक   रहा   था

बंदर          उसे        अनाड़ी।


कभी  इधर  से  उधर  भगाता

बनता       बड़ा       खिलाड़ी

मार - मार   हंटर   घोड़ों   की

सारी         चाल       बिगाड़ी।


तेज   हवा   से   बातें   करती

दौड़       रही     थी      गाड़ी

तभी  अचानक  बीच  राह  में

पड़ी        कटीली        झाड़ी।  


निकल गया गाड़ी का  पहिया

बंदर         गिरा       पिछाड़ी

ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख  कर

नोच     रहा       था      दाढ़ी। 


कभी-कभी अधिक होशियारी

बने          मुसीबत       भारी

सोच  समझकर चलने  में  ही

निर्भय         रहें         सवारी।

 

हमको  भी  सबने  सिखलाया

धीमी         रखना        गाड़ी

तभी   कहेंगे    राजा      बेटा

वरना         कहें       कबाड़ी।

     



                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी 

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

                   9719275453

                    

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गौ माता : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना




छन्न पकैया छन्न पकैया , सबको लगती प्यारी।
रहती है घर के आँगन में , होती सबसे न्यारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , गौ माता कहलाती।
साथ साथ दोनो ही रहकर , अपना मन बहलाती।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , हरे घास को खाती।
दूध दही वह सबको देती , खुशियाँ भी फैलाती।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , लाली भूरी होती।
दिन भर विचरण करती वन में , गौशाला में सोती।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , कभी साथ ना छूटे।
माँ की ममता होती प्यारी , प्यार सदा ही लूटे।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला- कबीरधाम
छत्तीसगढ़

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

"बगिया" दिवंगत महेन्द्र देवांगन की रचना

 






फूल खिले हैं सुंदर सुंदर, सबके मन को भाये।
मनभावन यह उपवन देखो, तितली दौड़ी आये।।

सुबह सुबह जब चली हवाएँ,  खुशबू से भर जाये।
रस लेने को पागल भौंरा, फूलों पर मँडराये।।

सुंदर सुंदर फूल देखकर,  प्रेमी जोड़े आते।
बैठ पास में बालों उनकी, फूल गुलाब लगाते।।

बातें करते मीठे मीठे, दोनों ही खो जाते।
पता नहीं कब समय गुजरते, साँझ ढले घर आते।।

सभी लगाओ पौधे प्यारे, सुंदर फूल खिलाओ।
महक उठे यह धरती सारी, खुशियाँ सभी मनाओ।।



रचनाकार 
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

बंदर की बारात,,,(बाल गीत) रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 






अचकन पहन बांधकर पगड़ी

बंदर          मामा         आए

बैठ  गए   घोड़ी  पर   जाकर

मुख    में      पान       दबाए।


सबने मिलकर  किया भांगड़ा

खूब         ढोल       बजवाए

नाच -  नाचकर  थके  बराती

बहुत        पसीने        आए।


लेकर  जब  बारात   अनोखी

बंदर           मामा         धाए

सूंघ - सूंघकर   सारी   झालर

तोड़    -   तोड़       बिखराए।


हाथी,  घोड़ा,  ऊंट   सभी  ने

बढ़कर       हाथ       मिलाए

सजा  सजाकर  तश्तरियों  में

स्वयं          नाश्ता        लाए।


हलवा    पूड़ी    दूध   जलेबी

मिलकर       सबने       पाए

दूल्हे  राजा   ने  बढ़चढ़  कर

भांग         पकौड़े       खाए।


देख  बंदरिया  को  बन्दर जी

मन     ही      मन      हर्षाए

माला   डलवाने   गर्दन   को

बार    --   बार       उचकाए।


बंदर   मामा  तनिक  देर भी

खड़े     नहीं      रह      पाए

जयमाला   की  पावन  रस्में

पूर्ण      नहीं      कर    पाए।


      



            वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                मुरादाबाद/उ,प्र,

                9719275453

                 12/12/2020

**नाना जी की मूँछ** रचना शादाब आलम

 बालगीत  रचनाकारों मे एक जाना पहिचान नाम श्री शादाब आलम का है  इनकी यह कविता,  इसी पत्रिका मे  अगस्त 2017 के अंक मे  प्रकाशित  हो चुकी थी,  वह पुनः प्रकाशित  की जा रही है ।





चौड़ी-चौड़ी, लम्बी-लम्बी,
नाना जी की मूँछ।

लटकी दिखती है यह अक्सर
नीचे की ही ओर
टस से मस न होतीं चाहे
खींचूँ जितनी ज़ोर।
ऐसा लगता जैसे मुँह पर
लगी हुई हो पूँछ।

नाना जी को अपनी मूँछों
पर है बड़ा गुमान
कहते मूँछे तो होती हैं
मर्दों की पहचान।
करे बुराई जो मूँछों की
जातें उससे जूझ।

जब मैं रूठूँ फिर वे हँसकर
मुझे बुलाते पास
और सुनाते मूँछों वाला
गीत बड़ा ही ख़ास।
मूँछों पर वे कहें पहेली
फ़ौरन लूँ मैं बूझ।




                    - शादाब आलम

हे राम "(लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




घना कोहरा, गज़ब की ठिठुरन कितने भी गर्म कपड़े पहन ने पर भी ठंड अपना असर कम करने को राजी नहीं।

   ऐसे में मामूली फटे-टूटे कंबल में लिपटी एक वृद्धा हाथ पैरों को सिकोड़े रात काटने को मजबूर सूर्य की पहली किरण से जीवन लौटाने की आस में निरजीव सी पड़ी है।

           सब उसके पास से होकर गुजरते रहे परंतु किसी ने यह नहीं सोचा कि उसके पास जाकर उसका हाल-चाल पूछें,उसके खाने-पीने की व्यवस्था करें।या और कुछ नहीं तो एक प्याला गर्म चाय ही पिलवा दें।या उसे सड़क से उठाकर कहीं किसी छत के नींचे ही लिटा दें।

  उस वृद्धा के बच्चे तो दुर्भाग्यशाली हैं ही।वह लोग भी कम दुर्भाग्यशाली नहीं हैं जो यह सब देख कर भी अनजान बने रहते हैं।

        हम यह सोच ही रहे थे तभी कुछ लोग आए और एक सादे कागज़ पर उसका अंगूठा लगाने का प्रयास करने लगे।हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि इस बुढ़िया की दो सौ बीघा जमीन है।यह उसे अपनी लड़की के नाम करने पर उतारू है।हम ऐसा होने नहीं देंगे।

    हम तो चाहते हैं कि यह मरने से पहले जमीन हमारे नाम कर दे।अगर राजी से नहीं तो ऐसे ही सही।वो अंगूठा निशानी ले कर चले गए। हम देखते ही रह गए।सिर्फ मुंह से यही निकला, 

                "हे राम"

          


           ह     वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

                   9719275453

                   09/12/2020

"किसान" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना

 




खेतों में फसलें लहराते।
अन्न किसान उगाते हैं।।
कड़ी धूप में दिनभर रहते ।
तब वह भोजन खाते हैं।।

बंजर धरती सोना उगले।
कड़ी मेहनत करते हैं।।
गर्मी ठंडी बरसातों में।
नही किसी से डरते हैं।।

फसल जीवन भर वे उगाते।
तभी बैठ के खाते हैं।।
बूँद पसीना रोज बहाते।
तब वह घर पर आते हैं।।


अब क्या होगा सोंच रहे हैं।
अन्न कहाँ से लायेंगे।।
घर में भूखे बच्चें सोते।
भोजन कैसे खायेंगे।।

कुछ तो दया दिखाओ भगवन।
बच्चें भी अब रोते हैं।।
अन्न नही है खाने को अब।
भूखे रहकर सोते हैं।।




 
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

चीटियां और साँप (पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित)

 



 
एक घने जंगल में एक विशाल सांप रहता था। वह मेढक, छिपकली, छोटे खरगोश, चूहा आदि छोटे जीवों और उनके अंडों को खाया करता था ।  इस तरह  वह छोटे जानवरों अपना दबदबा भी बनाए रखता था । जब चाहा, जिसे डरा दिया , जब चाहा जिसे भगा दिया, करता था।
एक बार, जंगल में घूमते-घूमते, एक बड़े पेड़ के नीचे, चीटियों की एक बड़ी बाम्बी, दिखाई पड़ी । इस बाम्बी में ढ़ेर सारी चीटियां रहती थी । साँप ने सोचा कि यह जगह तो बहुत बढ़िया है । अगर मै इस जगह को हथिया लूँ तो बहुत मजा आ जाए । शिकार के लिये, इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं है । पेड़ के नीचे चूहों आदि के बिल और पेड़ के ऊपर पक्षियों के घोंसले मिल जाएंगे । तब जब चाहो, जैसी चाहो, दावत उडाओ ।
 
अब उसने मन बनाया और प्रायः हर हफ्ते, चीटियों की बाम्बी के पास जाकर एक चेतावनी दे आता था कि बाम्बी खाली करो, मैं रहने आने वाला हूँ । उसकी धमकी सुनकर भी चीटियां कुछ नही कहती थी और अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती थी । बस, अपना काम करती रहती थीं । यह सब एक छोटी गिलहरी देखा करती थी । उस गिलहरी ने चीटियों से कहा कि साँप आप लोगों को हर हफ्ते डरा जाता है और आप लोग उसे कभी कुछ क्यों नहीं कहतीं है । चीटियों ने कहा कि बस तुम देखती रहो । एक दिन साँप चीटियों की बाम्बी मे प्रवेश कर गया वह बहुत गुस्से में था । उसने कहा यह घर खाली करो । बस फिर क्या था बहुत सारी चीटियों ने साँप के ऊपर हमला कर दिया । वे सब उसके शरीर से चिपक गई और उस को काटने लग गई । उन्होंने साँप को बुरी तरह जख्मी कर दिया और साँप जख्मों में तड़प कर मर गया।
आपने देखा बच्चों , साँप को झूठा अहंकार नही करना चाहिए था । उसे दुश्मन के बल को पहचानना चाहिए था । वहीं चीटियां बहुत छोटी होती हुई भी अपने धैर्य और अपनी एकता के कारण इतने बड़े साँप को मार गिराई । एकता में बल है ।






शरद कुमार श्रीवास्तव 

रविवार, 6 दिसंबर 2020

कुछ चित्र भी

 


बिलासपुर  से श्री जाविद अली की सुपुत्री कुमारी ऐन कक्षा  नवम की  छात्रा  ने अपनी कुछ  मनमोहक  चित्रकला के नमूने भेजे ।  इनके दादा दिवंगत  हिदायत  अली साहब भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ।  पिता हिन्दी विभाग की सेवा कर रहे हैं तो माता उर्दू मे डाक्टरेट के बाद लडकियो के विद्यालय मे सेवारत हैं।  







नन्ही चुनमुन और यूनीकार्न :शरद कुमार श्रीवास्तव


 




रात हो गई  थी नन्ही चुनमुन  अपने खिलौनो के साथ  बिस्तर  मे सोने का प्रयास  कर  रही थी वह सोच  रही थी उसका यूनीकार्न  अगर घोड़ा होता तो वह उसकी पीठ पर सवार होकर सपनो के देश  की सैर कर  आती ।  अचानक यूनीकार्न  सजा सजाया घोड़ा बनकर तैयार  हो गया और चुनमुन से बोला चलिए  बेबी आप को सैर कराता हूँ।   नन्ही चुनमुन  तुरन्त  उसकी पीठ पर जा बैठी ।  वह घोड़ा  हवा से बाते करता हुआ कभी बादलो  के ऊपर तो कभी नीचे उडने लगा ।   चुनमुन  को बहुत मजा आ रहा था  ।  अब वे चाकलेट के बगीचे मे थे  ।  यह बगीचा  असल मे एक जादूगर  का था ।   चुनमुन  ने  चाकलेट  के पेड से एक चाकलेट  तोड़नी चाही तब वहाँ चौकीदार  ने पकड़  लिया ।  नन्ही चुनमुन  क्या करती और  घोड़ा  भी क्या  करता चाकलेट  तो बेबी ने तोड़ी थी तो पकड़ी भी वही जायेगी ।

यूनीकार्न  चुपचाप  वहाँ से गायब हो गया वह चुनमुन की मम्मी को फोन भी नहीं कर पा  रहा था।   चुनमुन  मम्मी जी से पूछकर नहीं आई  थी । इसलिए  उसे इसके लिए  भी डाँट  पड़ती ।  चुनमुन  अब अकेली पड़ गई  थी यह देखकर वह  रोने  लग गई  कि अचानक  उसकी आँखें खुल गई  ।  आँखों के खुलते ही उसने यूनीकार्न  को ढूंढना चाहा लेकिन  यूनीकार्न तो  वहाँ नही था ।  चुनमुन  को सब बातें किसी पहेली से कम नहीं  लग रही थी ।  कि वह चाकलेट  के पेड़ के चौकीदार  से कैसे बचकर आई कैसे ।   यूनीकार्न पर  भी बहुत  क्रोध  आ रहा था जो उसे अकेला छोड़कर  भाग गया था।   तभी उसकी नजर बिस्तर  से नीचे पड़ी जहाँ यूनीकार्न  महोदय  धराशाई  पड़े थे ।




शरद कुमार श्रीवास्तव 

जाड़े की धूप



 





सुन मुन्नू सुन गुन्नू ओ बेबी पीहू रानी

आया है जाड़ा, जाड़े की धूप सुहानी

आओ बैठे धूप में कहती बूढ़ी नानी

बच्चे बात न सुनते खेलते हैं पानी


पहनो मोजे पावों में कहती है नानी

टोपा नहीं पहनते करते ये मनमानी

दौड़ें बच्चे पकड न पाये देखो नानी

नाक सुड़ सुड़ फिर भी खेलते पानी


नानी की बात न माने करते मनमानी

जाड़ा नहीं सताए जितनी करे शैतानी

सर सर हवा चले बहे नाक से पानी

बच्चों से जाड़ा हारा सुनिए जी नानी


बच्चों से न बोले जाड़ा बात ये बतानी

युवा का मीत शीत बात सबने है मानी

जाड़ा बूढ़ा नहीं छोड़ता मत कर हैरानी

ओढ़ रजाई बूढ़ा काँपे होगई बात पुरानी




शरद कुमार श्रीवास्तव

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

कोरोना" (चौपाई)

 





आया भारत में कोरोना।
हो गया मनुष्यों का रोना।।
साबुन से हाथों को धोना।
साफ सफाई करके सोना।।

मुख में दिनभर मास्क लगावे।
तभी घरों से बाहर जावे।।
नही किसी से डरना यारों।
साथ साथ तुम रहना प्यारों।।

नही किसी से हाथ मिलाओ।
दो गज की दूरी अपनाओ।।
साफ सफाई करते रहना।
सर्दी खाँसी तुम ना सहना।।

काम काज सब बंद करावे।
कोरोना को सभी हरावे।।
धरती पर कोरोना आया।
पूरी दुनिया में है छाया।।

चीन देश लाई बीमारी।
पहले उसकी आई बारी।।
कोरोना को मार भगाओ।
मिलकर के तुम इसे हराओ।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला -कबीरधाम
छत्तीसगढ़



व्यर्थ न तोड़ो फूल!(बाल रचना) रचना वीरेन्द्रसिंहबृजवासी-

 


जान बूझकर तुम बगियासे

व्यर्थ     न    तोड़ो     फूल

अद्भुत ईश्वर की  माया को

कभी     न     जाना   भूल।

         -------------------

रंग-बिरंगे  फूल   हर  घड़ी

देते          हमें        सुगंध

वातावरण  सुहाना   करके

दूर           करें         दुर्गंध

फूल तोड़ने  से  बगिया  में

रह          जाएंगे       शूल।


टहनी पर फूलोंका खिलना

सबको        भाता         है

असमय ही मिट्टीमें मिलना

दुख        पहुंचाता        है

मौसम का  आभास कराते

तरह- तरह      के     फूल।


फूलों सी कोमलता रखना

लगता       अच्छा        है

शब्द-शब्द पंखुरियों  जैसा

लगता        सच्चा        है

फूलों सा व्यवहार सभी के

होता        है       अनुकूल।


सुंदर  फूलों  की  घाटी  सा 

चमके       अपना       देश

तन-मन  सुंदर करने  वाला

हो         नूतन       परिवेश

पाखण्डों की बढ़ोत्तरी  को 

कभी      न    देना     तूल।


आओ हम मिलकरके ऐसा

कदम         उठाते         हैं

फूल सुरक्षित करके बगिया

को         चमकाते         हैं

फूलदार पौधों की  मिलकर

चलो        बनाएं        गूल

      



             वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उप्र,

    मोबा-    9719275453

   दिनांक-   01/12/2020

लघु कथा/ लालच बुरी बला

 






      



तांगे वाला अपने तांगे में सवारी दर सवारी बैठाले जा रहा था।यहां तक कि अपने बैठने की जगह भी सवारियों से भर ली।दुबले-पतले घोड़े के लिए भी इतनी सवारियां लेकर चल पाना उसके बूते से बाहर था।परंतु बेचारा क्या करे ।मुंह में कंटीली लगाम ऊपर से मालिक का तड़ातड़ पड़ता हंटर उसको चलने के लिए विवश कर रहा था।

      जैसे-तैसे घोड़े ने ताकत बटोरकर चलना प्रारम्भ किया तो उसके पैर कांपने लगे परंतु सर नीचे करके और कुछ कदम ही चल पाया होगा कि सवारियों के अथाह बोझ से तांगा इतना नींचे झुक गया कि बेचारा घोड़ा भी ऊपर टंग गया।इधर ज्यादा झुकने के कारण तांगे में बैठी सवारियां भी धड़ाधड़ जमीन पर गिरने लगीं।कई सवारियों को गंभीर चोटें भी आ गईं।

      सवारियों के गिरते ही घोड़ा भी जोर से नींचे गिरा और गर्दन टूटने के कारण भगवान को प्यारा हो गया।यह देख कर तांगे वाला दहाड़ें मार कर रोने लगा।उसका रोना सुनकर बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए और तांगे वाले को ताने मरते हुए बोले,क्या भैया एक बार में ही मालदार होना चाह रहा था।जिन सवारियों के चोट लगी उनका क्या कसूर था अब भुगत,,,,

     घोड़ा कोई हवा खाकर थोड़े ही चलेगा उसे भी तो अच्छा दाना-पानी चाहिए,ज्यादती की भी एक सीमा होती है।तभी कुछ पुलिस वाले आए और घायलों को अस्पताल भिजवाने के पश्चात तांगेवाले को अपने साथ थाने ले गए।

      तभी तो बुद्धिमान लोगों ने कहा है "लालच बुरी बला"

            


             वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

      मो0-    9719275453

      दि0-     02/12/2020

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

बाल गीत-- -- वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की रचना

 





परेशानियां  सब  पर  आतीं

साथ समय के फुर हो जातीं

बच्चो बिल्कुल मत घबराना

यह भी सीख बड़ी दे  जातीं।


मन  में भय मत  आने  देना

सच का  साथ सदा  ही देना

झूठी  बातें   ही  जीवन  को

अक्सर दिशाहीन कर जातीं।


जो मुश्किल  से घबरा जाता

उसके हाथ नहीं  कुछ आता

सिर्फ हौसले की कड़ियाँ  ही

मानव  को  मजबूत  बनातीं।


जहां  चाह  है  राह   वहीं  है

इसमें  कुछ   संदेह   नहीं  है

अंतर्मन  की  पावन   किरणें

जीवनको जगमग कर जातीं।


आओ मिलकर कदम बढ़ाएं

हर  बाधा   को   दूर    हटाएं

केवल दृढ़ता के  सम्मुख  ही

बाधाएं  सब  सीस  झुकातीं।


प्यार  करें, करना  सिखलाऐं

 साथ-साथ रहकर  दिखलाएं

नाना -  नानी,    दादी -  दादी

सीख अनोखी  हमें  सिखातीं।

      

           


  

वीरेन्द्र  सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

       मो0-   9719275453

       दि0-    10/11/2020

गुड़िया की जिद,,वीरेन्द्र सिंह की रचना

 






गुड़िया के कानों को यूंही

नाम       मुम्बई     भाया,

मुम्बई जाना  है  रो रोकर,

पापा       को    बतलाया।


लोट-पोट हो गई  धरा पर,

सबने       ही    समझाया,

लेकिन जिदके आगे कोई,

सफल   नहीं   हो   पाया।


दादी  अम्मा ने समझाया,

दादू         ने     बहलाया,

चौकलेट, टॉफी,रसगुल्ला,

लाकर      उसे   दिखाया।


पापाजी  बाजा  ले   आए,

भैया       लड्डू      लाया,

चुपजा कहकरके मम्मी ने,

थोड़ा       सा    धमकाया।


चाचाजी ने तब गुड़िया को,

बाइस्कोप            दिखाया,

जुहू,  पारले,  चौपाटी  सब,

गुड़िया      को    समझाया।


घुमा- घुमाकर बाइस्कोप में,

मुम्बई     शहर      दिखाया,

शांत  हुई   गुड़िया  रानी  ने,

हंसकर      के     दिखलाया।

           

           


               वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,  

     मो0----    9719275453 

     






दाने-दाने को,,, (बालगीत) वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




     

दाने-दाने को मीलों की सैर किया करते,

कभी  सुरक्षित  घर  लौटेंगे सोच-सोच डरते।

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कदम-कदम पर जाल बिछाए बैठा है कोई,

यही सोचकर आज हमारी भूख- प्यास खोई,

पर बच्चों की खातिर अनगिन शंकाओं में भी,

महनत से हम कभी न कोई समझौता करते।

दाने-दाने को----------------


बारी- बारी से हम दाना चुगने को जाते,

कैसा भी मौसम हो खाना लेकर ही आते,

खुद से पहले हम बच्चों की भूख मिटाने को,

बड़े जतन से उनके मुख में हम खाना धरते।

दाने-दाने को-------------------


सिर्फ आज की चिंता रहती कल किसने देखा,

कठिन परिश्रम से बन जाती बिगड़ी हर रेखा।

डरते रहने से सपनों के महल नहीं बनते,

बिना उड़े कैसे मंज़िल का अंदाज़ा करते।

दाने-दाने को---------------------


आसमान छूने की ख़ातिर उड़ना ही होगा,

छोड़ झूठ का दामन सच से जुड़ना ही होगा,

जो होगा देखा जाएगा हिम्मत मत हारो,

डरने वाले इस दुनियां में जीते जी मरते।

दाने-दाने को---------------------


श्रद्धा,फ्योना,अन्वी,ओजस,शेरी बतलाओ,

अडिग साहसी चिड़िया जैसा बनकर दिखलाओ,

छोटाऔर बड़ा मत सोचो धरती पर ज्ञानी,

किसी रूप में भी आ करके ज्ञान दान करते।

दाने-दाने को-------------------

        



                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

       मो0-     9719275453

       दि0-      23/11/2020










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पछतावा : प्रिया देवांगन प्रियू की बालकथा



 






एक समय की बात है , एक  गाँव में एक बहुत ही बुद्धिमान राजा रहता था। उसकी प्रशंसा गांव के हर छोटे - बड़े आदमी करते थे।राजा को अपना राजा होने का कभी घमण्ड नही हुआ ।  वह गरीबो को दान में कुछ न कुछ जरूरत की चीज देते रहते थे तथा बच्चो से भी राजा बहुत अच्छे से व्यवहार करते थे।  बच्चे भी राजा से खुश रहते थे। राजा की कोई संतान नही थी राजा को इसी बात का दुख होता था कि मेरे जाने के बाद मेरा राज्य कौन सम्भालेगा ।
बहुत दिनों बाद राजा का एक बेटा हुआ। राजा बहुत प्रसन्न हुये । राजा ने अपने बेटे का नाम वीर प्रताप रखा।   अपने पूरे गाँव और गाँव के आस पास के लोगो को भोजन खिलाया । अब राजा का बेटा बड़ा हो गया लेकिन राजा का बेटा राजा के बिल्कुल विपरीत था । राजा वीर प्रताप को खूब पढ़ाना- लखाना चाहता था।लेकिन वीर प्रताप का पढ़ने का बिल्कुल भी मन न करता था ।उसको बुरी लत लग चुकी थी ,उसको घमण्ड था कि मेरे पिता जी के बाद मै राजा बनूँगा।राजा ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि वह पढ़ लिख के आगे बढ़े और बुरी आदतें छोड़ दे लेकिन वीर नही माना ।  एक बार अचानक वीर गिर पड़ा । आँखों के आगे अंधेरा छा गया ।राजा तुरन्त हॉस्पिटल ले के गए । डॉक्टर के इलाज के द्वारा पता चला कि वीर को कैंसर है ।राजा बहुत दुखी हुये।वीर को जब पता चला कि अब ज्यादा दिन नही बचा है उसके बाद वीर बहुत रोने लगा ।और पछताने लगा कि मैं यदि समय के रहते पिता जी का बात मान लेता तो ऐसा नही होता।




रचनाकार 
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


दीप जगते हैं ,जगमगाते है :अंजू जैन गुप्ता

 







अँधियारा दूर कर रोशनी की 

किरणें चहुँ ओर फैलाते है। 

           यह मंगल दीप दिवाली है 

          खुशियों से भरी थाली है ।

          ये न सिर्फ तेरी है न मेरी है 

         ये तो हम सब की मिली-जुली   

         रंगोली है। 

हिंदू खुश हैं कि इस दिन 

राम जी अयोध्या लौट आये ,

सिक्ख भी खुश हैं कयोंकि 

इस दिन गोल्डन टेम्पल की

नींव रखी थी (तभी फिर मुसलिम और Christian भी कहे हम सब है भाई-भाई)

,चलो मित्रों  संग मिल जुल

ये पर्व मनाए।

अँधियारे भरी रात को दोनों से 

रोशन कर जाए।

दीप जगते हैं जगमगाते है 

अँधियारा दूर कर रोशनी की 

किरणें चहुँ ओर फैलाते है। 

सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के 

कोने कोने में हम इस पर्व को मनाते है।

सिंगापुर, मलेशिया, मारीशस, फिजी,

 श्री लंका और नेपाल भी इस पर्व को 

तहे दिल से मनाते है;और इस दिन को 

नैशनल होलीडे declare कर अपनापन दर्शाते है। 

        दीप जगते हैं जगमगाते है         अँधियारा दूर कर रोशनी की किरणें 

चहुँ ओर फैलाते है। 

तो आओ मिल जुल दीप जलाए

सुख और समृद्धि की बहारे फैला इस 

जग से दूर कर अँधियारा चहुँ ओर 

प्यार,विशवास व अपनेपन का एहसास जगाए।





(अंजू जैन गुप्ता)


टिंकपिका की सैर

 







नन्ही  चुनमुन  ' प्रिन्सेज डॉल '  फेरी टेल्स, की  पुस्तक  में  से "टिंकपिका का जादूगर "  वाली   कहानी  अपनी  दादी  से सुन चुकी  थी  ।  उसने सोचा  कि  कितना भयानक  होगा  टिंकपिका ।   उसे सोफे पर  बैठे  बैठे  ही दीवार  पर  एक मकड़ी  दिखाई  दी  ।  वह  पहले  घबरा  गई  लेकिन  उसने  फिर  सोचा कि वह  क्यों  घबरा रही है  ।  वह  तो अपने  स्कूल  का  सारा काम  जो घर मे करने के  लिए  दिया जाता  है  वह खुद अपने  आप  कर लेती है   बस  कभी कभी  अपने  पापा से  मदद  लेती है  ।   यह कोई भी  बुरी बात  नहीं  है  ।   तभी   उसे लगा कि दीवार की मकड़ी  बस उसे ही लगातार देखे जा रही है ।   उसने  अपनी  निगाह  मकड़ी  की  तरफ  से  फेर ली और  अपने मोबाइल  पर  गेम  खेलने मे बिजी  हो गई  । 

 उस समय गेम खेलते  हुए    न जाने  क्या  हुआ  कि  वह  मोबाइल की स्क्रीन  पर वह  एक अजनबी  जगह  पहुँच गई  जहाँ एक पुराना किला था  ।  उसके  दरवाजे  पर  भयानक  दिखने वाले  पहरेदार  खड़े  थे  जिनकी  बड़ी  बड़ी  मूछें थी ।  बडे-बडे  बाहर की  ओर  निकले दाँत  थे ।    इस किले में  घुसते  ही  एक बड़ा  सा  कमरा  था ।  उस कमरे मे काली  पोशाक  में  ऊँची  लम्बी  जादूगर  वाली कैप पहने  एक जादूगर  बैठा था  और उसके  सामने  मक्खी,  मकड़ी,  काकरोच, चींटे सहित कई  अन्य  कीड़े मकोड़े खडे होकर  अपनी  बातें   सुना रहे  थे ।     ज्यादातर  कीड़े उन बच्चों  की   खबर  लाए थे जो अलग अलग  वजह  से  कमजोर  हो रहे थे  ।     जादूगर  उनसे  कहा रहा  था  कि  ठीक  है वे उन बच्चों  को  उलझाए  रखें  ताकि  वे थोड़ा  और  कमजोर  हो  जाएँ तो जादूगर  खुद   जाकर  आसानी  से  उन्हें  टिंकपिका ले आए  और  रोबोट  बना  कर  उनसे  काम  कराए  ।    नन्ही  चुनमुन  ने इन कीडों  को यह कहते आगे सुना  कि  ज्यादातर  बच्चे  होमवर्क  तो कर लेते  हैं  परन्तु  मोबाइल  से चिपके  रहते  हैं  ।   वे  बाहर  खेल कूद  नहीं  कर सकते  हैं ।   इसलिये   ताकत मे कमजोर  हो  रहे हैं , हमारी  उनपर नजर  है ।   नन्ही  चुनमुन ने मोबाइल  फोन  पर  से नजर  हटाई  तो ऊपर मकड़ी   अपनी  आँखें  मटका  कर उसे  घूरते  नजर आई मानो वह कहते रही हो कि यही था  टिंकपिका का जादूगर  जो टिंकपिका  मे अपने किले मे बैठा था ।  अब तक  चुनमुन सचेत हो गई थी  और  वह मोबाइल  फोन  को छोड़कर अपनी   साइकिल  चलाने  लगी। 
  


शरद  कुमार  श्रीवास्तव