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गुरुवार, 25 जून 2020

अभिलाषा ( ताटंक छन्द : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना







मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।
 झुकने दूंगा नहीं  तिरंगा ,  मेरे मन की आशा है ।।1।

नित नित वंदन करुँ मै माता,  तुम तो पालन हारी हो ।
कभी कष्ट ना होने देती , सबके मंगलकारी हो ।।2।।

जाति धर्म सब अलग अलग पर , एक यहाँ की भाषा है ।
मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।3।।

शस्य श्यामला धरा यहाँ की , सुंदर पर्वत घाटी है ।
माथे अपने तिलक लगाऊँ,  चंदन जैसे माटी है ।।4।।

कभी खेलते युद्ध यहाँ पर , कभी खेलते पासा हैं ।
मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।5।।



महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़

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