सुबह सुबह हर रोज के, आता है अखबार ।
चुस्की लेते चाय की, पढ़ते बाबा द्वार ।।
ताजा ताजा रोज के, खबरों का भंडार ।
बच्चे बूढ़े प्रेम से, पढ़ते हैं अखबार ।।
सभी खबर छपते यहाँ, अलग अलग हैं पृष्ठ ।
शब्दों का भंडार हैं, कहीं सरल तो क्लिस्ट ।।
फैल रहा है विश्व में, कोरोना का रोग ।
बता रहे अखबार में, कैसे जीयें लोग ।।
कोई देखे चित्र को, कोई देखे खेल ।
कोई देखे भाव को, कोई देखे रेल ।।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया छत्तीसगढ़
mahendradewanganmati@gmail.com
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