ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 जुलाई 2020







सुबह सुबह हर रोज के,  आता है अखबार ।
चुस्की लेते चाय की, पढ़ते बाबा द्वार ।।

ताजा ताजा रोज के,  खबरों का भंडार ।
बच्चे बूढ़े प्रेम से,  पढ़ते हैं अखबार ।।

सभी खबर छपते यहाँ,  अलग अलग हैं पृष्ठ ।
शब्दों का भंडार हैं,  कहीं सरल तो क्लिस्ट ।।

फैल रहा है विश्व में,  कोरोना का रोग ।
बता रहे अखबार में,  कैसे जीयें लोग ।।

कोई देखे चित्र को, कोई देखे खेल ।
कोई देखे भाव को, कोई देखे रेल ।।


महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया छत्तीसगढ़

mahendradewanganmati@gmail.com

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