कक्षा अध्यापक ने आवाज़ लगाकर कहा अरे मोहन तुमने हाई स्कूल की वार्षिक परीक्षा फीस 11/-रु0 अभी तक जमा नहीं की, क्या तुम्हें परीक्षा नहीं देनी।सोच लो कल तक का समय ही शेष है।
मोहन उदास मन से खड़ा होकर अध्यापक महोदय की तरफ देखकर कुछ कहने से पहले ही आंखों में आंसू भर लाया और रुंधे गले से बोलते-बोलते यकायक फफक कर रो दिया।. अध्यापक अपनी कुर्सी से उठे और मोहन के पास जाकर उसे चुप करते हुए उससे वास्तविकता जानने का प्रयास करने लगे।उन्होंने कहा कि तुम अपनी विवशता खुलकर बताओ हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा।
मोहन ने कहा सर मैं परीक्षा किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहता हूँ परंतु घर के हालात ऐसे नहीं हैं।मैं अपनी विधवा माँ के साथ रहता हूँ।हमारी देख-रेख करने वाला भी कोई नहीं है।मेरी माँ ही छोटे-मोटे काम करके मुझे पढ़ाने की चाहत में लगी रहती है।
अब काफी समय से उसकी तबियत भी बहुत खराब चल रही है।घर में जो कुछ पैसे- धेले थे वह भी माँ के इलाज में उठ गए लेकिन हालत सुधरने की जगह और बिगड़ती जा रही है।मुझे हर समय उनकी है चिंता रहती है।ऐसे में मैं यह फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि मैं परीक्षा दूँ या छोड़ दूं
परीक्षा तो फिर भी दे दूँगा परंतु माँ तो दोबारा नहीं मिल सकती।यह कहकर वह मौन होकर वहीं बैठ गया।
अध्यापक महोदय का दिल भर आया उन्होंने कहा कि मेरी कक्षा के तुम सबसे होनहार विद्यार्थी हो मुझे यह भी भरोसा है कि तुम इस विद्यालय का नाम रौशन करोगे।
परेशानियां तो आती जाती रहती हैं परंतु परीक्षा छोड़ने का तुम्हारा निर्णय तो तुम्हारी माँ की बीमारी को और बढ़ा देगा।इसलिये हिम्मत से काम लो ईस्वर सब अच्छा करेंगे।
गुरुजी ने अपनी जेब से कुछ रुपए निकाल कर मोहन के हाथ पर रखते हुए कहा लो बेटे इनसे तुम अपनी माँ का सही इलाज कराओ।उनके खाने पीने का उचित प्रबंध करो।फीस की चिंता मुझपर छोड़ दो।
मोहन किंकर्तव्यविमूढ़ होकर कभी स्वयं को तो कभी पूज्य गुरुवर को देखता और यह सोचता कि भगवान कहीं और नहीं बसता मेरे सहृदय गुरु के रूप में इस संसार मे विद्यमान रहकर असहाय लोगों की सहायता करके अपने होने को प्रमाणित करता है।
मोहन ने गुरु जी की आज्ञा को सर्वोपरि रखते हुए माँ का इलाज कराया और पूरे मनोयोग से परीक्षा देकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा अपनी माँ और पूज्य गुरुवर के चरण स्पर्श करके उनका परम आशीर्वाद भी प्राप्त किया।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
सुंदरतम बालकहानी..
जवाब देंहटाएंसुंदरतम बालकहानी..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई
हटाएंअति उत्तम कहानी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बेटा
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