ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 25 जनवरी 2021

शुरुआत : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 




आज लालबत्ती क्रोसिंग पर हमेशा की तरह रुकना पडा़ । अभी 26 जनवरी के झंडा आरोहण समारोह के बाद लौट ही रहा था कि इस क्रासिंग पर लालबत्ती जली हुई थी इसलिए मुझे अपनी गाड़ी रोकनी पडी । मेरी गाड़ी की खिड़की के सामने एक दस- ग्यारह साल का बच्चा कई सारे झंडों के साथ खड़ा हो गया । इस तरह के बच्चे अक्सर ही इन चौराहों पर दिखाई देते हैं पर हमेशा कोई विशेष ध्यान नही जाता था । पता नही आज गणतंत्र दिवस के दिन मैं क्यों विचलित हो गया । मैं कार में अकेला ही था । खिड़की खोलकर मैंने उन झंडों के दाम पूछे और उसके सारे , लगभग, पंद्रह बीस झंडे, उससे ले लिए । उस बालक को कौतूहल हुआ । उसने पूछा कि आप इतने सारे झंडों का क्या करेंगे? मैंने उसके प्रश्न का जवाब न देकर उससे पूछा कि तुम्हारे सारे झंडे बिक चुके हैं अब तुम क्या करोगे । उसने कहा कि बस अपने घर जाऊँगा । मैंने उस बच्चे से पूछा कि वह कहां रहता है । इसपर उसने पुल के नीचे एक स्थान दिखाकर कहा कि यही पास मे ही रहता हूँ । मैने कहा मै भी तुम्हारे घर चलूँगा । यह कहकर मैंने अपनी गाड़ी को पुल के नीचे ही एक साइड में खड़ी की और गाड़ी से झंडे लेकर उस बच्चे के साथ उसके घर की तरफ़ गया । उसका घर टाट की पुरानी बोरियों पालिथिन इत्यादि से बना छोटा टेन्टनुमा घर था । उस बच्चे ने मुझे बताया कि यही उसका घर है । बहुत दिनों से मैं चाहता था कि मै समाज का इनाम लोगों के जीवन को पास से देखूं और कुछ करूँ । आज का समय ठीक था । इन बच्चों को आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन बच्चों को गणतंत्र दिवस के बारे में जानकारी दूंगा और झंडा और टाफी के लिए पैसे बाँटूंगा । अतः मैंने समय का सदुपयोग करने के बारे मे सोंचा । उस बच्चे के साथ चलते हुए मैंने उससे उसका नाम पूछा । उसने मुझे नाम अपना नाम गुड्डू बताया । गुड्डू के साथ मुझे वहाँ  आया देखकर वहां आसपास के कई बच्चे आ गए थे । । सभी बच्चों को मैंने एक अर्धचक्र में खड़ा किया । फिर मैंने उनसे पूछा कि आप जानते हैं कि आज 26 जनवरी है । सब बच्चे एक ही सुर में बोल उठे कि जी हाँ आज 26 जनवरी है । मैंने सब बच्चों को वे झंडे बांट दिया और फिर पूछा कि 26 जनवरी मे हम क्या करते हैं तथा यह क्यों मनाया जाता है । मेरे यह पूछने पर एक छोटी लड़की बोल पडी कि आज के दिन हम झंडा फहराते है । दिल्ली में राजपथ पर झंडा हमारे राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं, फिर वहाँ सेना की परेड होती है और अलग अलग राज्यों की  झांकियां निकलती हैं । यह सुनकर मुझे अचम्भा हुआ कि इतना सब इस बच्चे को कैसे मालूम हुआ । कपड़ों और  रहने के परिवेश से तो नहीं लगता है कि ये बच्चे स्कूल जाते होंगे । मैंने उससे पूछा कि आप को यह सब कैसे पता  चला । उसी समय वहीं खड़ी एक स्त्री ने बताया कि शाम को एक भैया अपनी मोटरसाइकिल से आते हैं वही इन बच्चों को बैठाकर पढाई कराते हैं । उन्होंने ने ही सब बताया है । मगर पूछा कि उनको आप लोग कुछ पैसे देते होगे ? यह सुनकर वह बोली कि नहीं बाबू वे बहुत भले आदमी है । उन्होंने ही सभी बच्चों को कापियां पेंसिल किताबें भी लाकर दिया है । अब मैं अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था कि इन बच्चों को महज एक झंडा पकड़ा कर और टाफी के लिए पैसे बाटकर मैं गौरांवित अनुभव कर रहा था कि मैं इन बच्चों की छोटी सी खुशी का हिस्सा बन रहा हूँ । लेकिन वह लड़का अपनी पढ़ाई से समय और पैसा निकाल कर इन बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए प्रयास रत है । यह एक छोटी सी शुरुआत ही सही पर बहुमूल्य प्रयास है और वह भी भी बिना किसी शोरशराबे के । निश्चय ही वह, इन गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल कराने के लिये सराहनीय योगदान देरहा है । उस स्त्री ने आगे बताया कि रविवार को उन बाबू के कुछ दोस्त लोग भी आते हैं जो इन्हें गाना बजाना भी सिखाते हैं । यह सुनकर मेरा सिर उन लोगों के लिए श्रद्धा से झुक गया कि हम सोचते ही रह गए और नई पीढ़ी के इन बच्चों ने इस नेक काम की शुरुआत भी कर दी है ।


 शरद कुमार श्रीवास्तव


चुटकुले संकलनकर्ता शरद कुमार श्रीवास्तव

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रामू — हेे भगवान मेरे देश की राजधानी लखनऊ कर दो.

मोहन — अरे अपने देश की राजधानी अच्छी खासी दिल्ली है उसे लखनऊ क्यो करना चाहते हो?
रामू — परीक्षा मे वहीं लिख आया हूँ.

अध्यापक नये छात्र से-तुम लगातार मुस्कुरा क्यों रहे हो ?
नया छात्र- जी मेरा नाम खुशी राम है।

रानी — राजन तुम काले से गोरे कैसे हो गए
राजन — मै पहले कोयला बेचता था अब चावल बेचता हूँ।

अध्यापक- देशाटन से लाभ पर निबन्ध लिखो।
शिखर ने लिखा- पढाई लिखाई और स्कूल से छुट्टी मिल जाती है

अध्यापक — मै तुम्हें नालायक से लायक कैसे बनाऊँ।
सोहन- बस आप ना कहना बन्द करके सिर्फ लायक कहा क़रें

संकलन :  शरद कुमार श्रीवास्तव 

"तिरंगा" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना

 






पूरे भारत देश में, उड़े तिरंगा आज।
रंग बिरंगे आसमा, हमको तुम पर नाज।।
हमको तुम पर नाज, गीत खुशियों के गाते।
धरा हमारी शान, साथ झंडा फहराते।।
झूमे नाचे लोग, खुशी बिन रहे अधूरे।।
आता है जब पर्व, होत है सपने पूरे।।

लिए तिरंगा हाथ में, फहराते सब साथ।
भारत माँ के सामने, सभी झुकाते माथ।।
सभी झुकाते माथ, नमन वीरो को करते।
हुए देश बलिदान, वीर दुश्मन से लड़ते।।
देश हुआ आजाद, फूल की बहती गंगा।
भारत बने महान, फहरता आज तिरंगा।।



रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

हकदार कौन- : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की लघुकथा

 




यह मेरी है,यह तो मेरी है ।मैने इसे पहले पकड़ा,दूसरा बोला तू नहीं पहले मैंने पकड़ा।बात तू तू-मैं मैं तक आ पहुची,परंतु निर्णय कुछ नहीं,,उनकी इस लड़ाई को देखते हुए कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन बच्चों को समझाने का प्रयास करने लगे।परंतु बच्चे अपनी जिद से टस से मस होने को तैयार नहीं थे।

     तभी एक भद्र पुरुष वहाँ आए और दोनों बच्चों से बोले कि तुम कैसे करके इस पतंग पर अपना-अपना हक जता रहे हो।तब एक लड़के ने कहा मैंने इसे पहले पकड़ा,दूसरे ने कहा मैंने इसके मांझे को इसके जमीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया था,इसलिए इसपर पहला हक तो मेरा ही है।

        भद्र पुरुष ने कहा इसका सही निर्णय चलो उस पतंग उड़ाने वाले व्यक्ति से कराते हैं।वे उन्हें उस पतंग उड़ाने वाले सज्जन के पास ले जाकर बोले भैया यह पतंग तुमने काटी है।हाँ,हाँ इसे तो मैंने ही काटा है।बहुत देर से इसका मालिक मेरी पतंग से उलझकर उसे काटने की स्पर्धा में आगे निकलना चाह रहा था।

           कभी दांए से तो कभी बांए से,कभी ऊपर से तो कभी नींचे से ढील देकर मुझे नौसिखिया समझ कर पतंग काटने का लगातार प्रयास कर रहा था।परंतु मैंने एक ही झटके में ही उसकी पतंग काटकर उसे प्रतियोगिता से बाहर कर दिया।

      तब भद्र पुरुष ने बच्चों से कहा बताओ इससे आपने क्या सीखा।बच्चे खामोश,, समझ नहीं पा रहे थे क्या उत्तर दें।तब उन्होंने

बच्चों से कहा जीतता वही है जो अपने प्रतिद्वंद्वी को अपने अथक प्रयास एवं ज्ञान से हराकर विजय प्राप्त करता है।अर्थात आप दोनों बिना कोई प्रयास करे, अनाधिकृत रूप से इस पर अपना-अपना कब्जा करना चाह रहे हो, जो सैद्धान्तिक रूप से सही नहीं है।अतः इसका सही हकदार केवल और केवल इसे काट कर प्रतियोगिता जीतने वाला प्रतियोगी ही है।

        योग्य सज्जन का निर्णय बच्चों को बहुत पसंद आया।तथा उन्होंने यह जाना कि मेहनत करके प्राप्त होने वाली वस्तु ही सच्चा सुख देने वाली होती है।

   उन्होंने सज्जन व्यक्ति के चरण स्पर्श करके अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा माँगी।




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                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ, प्र,

                    9719275453

                     

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लघु कथा (काश,,,,,,): वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 





  

पिता ने बेटे से कहा बेटा केवल मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने, उन्हें फूल चढ़ाने, या व्रत रहने तथा परीक्षा देने जाने से पहले दही शक्कर खाने से ही कोई परीक्षा पास नहीं कर सकता।उसके लिए कड़ी मेहनत करना,लक्ष्य निर्धारित करना,समय का सदुपयोग करना,हर विषय की समुचित जानकारी रखने के साथ-साथ,पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ परीक्षा देना ही तुम्हारे जीवन को सफल बनाने में सहायक हो सकता है।केवल भगवान भरोसे रहना ही ठीक नहीं है बेटा।

      बेटा सारी बातों को बड़े ही बेमन से सुनकर बालों को झटकते हुए बाहर जाते हुए बोला पिता जी आप अपना ज्ञान अपने पास ही रखें।मुझे तो जो सही लगता है मैं तो वही करूंगा।आप तो नास्तिक हैं मैं तो नहीं,,,

     कुछ समय बाद परीक्षाएं प्रारम्भ हो गईं।लड़का रोजाना ढोंग दिखावे की प्रक्रिया पूरी करके परीक्षा देता।प्रश्न पत्र देखकर पहले तो उसको आँखों से लगाता,फिर दिल के पास ले  जाकर ईश्वर से सही होने की प्रार्थना करता।अर्थात काफी समय तो ऐसे ही खराब कर देता।बाकी समय में इधर उधर ताक- झांक करता।क्या लिखता क्या नहीं ईस्वर ही जाने।

     परीक्षा समाप्ति  के कुछ दिन बाद हाई स्कूल का रिजल्ट घोषित हुआ।काफी नज़र दौड़ाने पर भी रोल नंबर नहीं मिलने पर सिर्फ उदासी ही हाथ लगने पर उसे पिता जी की बात याद आने लगी।

उधर पिता जी भी पीछे खड़े होकर उसकी उदासी पर चिंतित लग रहे थे।फिर भी बेटे को समझते हुए यही कहा चलो जो हुआ सो हुआ।आगे मेहनत करके ही परीक्षा देना।

       लड़का साल की बर्बादी को याद करते हुए पछताते हुए बोला काश,,,,,




          

                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

                     20/01/2021

"सपने" रचना स्व महेन्द्र सिंह देवांगन की जिसे प्रेषित किया प्रिय देवांगन प्रियू ने




मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में ।
बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।

तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है।
डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।।

पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में ।
बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।।

पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है।
चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।।

उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में ।
बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।।

कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं ।
हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।।

छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में ।
बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।।

मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में ।
बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।।




रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया 
छत्तीसगढ़

उड़ी पतंगें वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी का बालगीत

 


आसमान में उड़ी  पतंगें,

लगती       तारों       सी,

रंग बिरंगे  गुलदस्तों  की,

सजी      कतारों      सी।

       ----------------

आपस  में स्पर्धा  रखती,

ऊपर        जाने       की, 

ऊंची गर्दन करके नभ में,

धाक       जमाने      की,

फर्राटे के साथ निकलती,

ध्वनि      हुंकारों      सी।


निष्ठाओं के साथ कसी हैं,

गांठें        धागों         की,

विश्वासों के साथ  बंधी  है,

डोर        इरादों         की,

हाथों की  उंगली  पर नाचे,

नए        इशारों         सी।


इसे   पतंगी  रूप  मिला है,

खप्पच       तानों          से,

नाप  तोल कर बांधी जाती,

डोर।         कमानों       से,

मानव के मन पर छा जाती,

सतत        विचारों      सी।


डरती नहीं कभी जो अपने,

प्रतिद्वंद्वी         से        भी,

लातीखुशियां छीनसमयकी,

पाबंदी           से         भी,

अक्सरछतपरआकरगिरती,

वह        उपहारों         सी।


कभीजोश में होश न खोना,

सबको                 चेताती,

सावधान  रहने  वालों   को,

खुशियां         दे       जाती,

दूर गगन  में  दिखती   जैसे,

धूमिल        तारों          सी।

आसमान में उड़ी----------





        


                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

                     19/01/2021

शनिवार, 16 जनवरी 2021

मेरा खरगोश(बाल गीत) वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 




है  मेरा  खरगोश   निराला,

आधा  भूरा  आधा  काला,

गोल गोल चमकीलीआंखें,

लंबे - लंबे   कानों   वाला।

है मेरा खरगोश-----------


रेशम  जैसे  बालों   वाला,

सरपट दौड़  लगाने वाला,

स्वयं  सुरंगें बना  बनाकर,

अपनी जान बचाने वाला।

है मेरा खरगोश-----------


सबका  मन हर्षाने  वाला,

सीधा सच्चा भोला-भाला,

हमको ऐसा  लगता  जैसे,

ओढ़ा हो  रेशमी  दुशाला।

है मेरा खरगोश----------


अपने  पंजों  की तेजी से,

बिल्ली को धमकानेवाला,

कुत्ते पर  भी  मार झपट्टा,

नानी  याद  दिलाने वाला।

है मेरा खरगोश----------


लंबे  पतले  दो   दांतों  से,

कुतर कुतरकर खानेवाला,

गोभी, पालक के पत्तों को,

पलभर में निपटाने  वाला।

है मेरा खरगोश-----------


हम  गोदी  में  इसे  उठाएं,

प्यार करें जी भर  दुलराएँ,

हमभी इससे कभी न रूठें,

यह भी नहीं  रूठने  वाला।

है मेरा खरगोश-----------

     


            वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

               मुरादाबाद/उ, प्र,

               9719275453

               12/01/2021


रोटी की कीमत (सरसी छंद) प्रिया देवांगन प्रियू द्वारा प्रस्तुत महेन्द्र सिंह देवांगन की रचना

 



रोजी रोटी पाने खातिर, भटके सारे लोग ।
कोई बंदा भूखा सोता, कोई छप्पन भोग।।

दिन रात मेहनत करते हैं, पाते हैं तब चैन ।
सर्दी गर्मी बरसातों में, करे गुजारा रैन।।

शीश महल में रहने वाले, वो क्या जाने मोल।
भूख प्यास भी क्या होती है, करते बातें तोल।।

रोटी की कीमत तुम जानों, कभी न इसको फेंक।
भूखे को तुम रोज खिलाओ, अपने हाथों सेंक।।

रचनाकार 
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

भरो छलांगें(बाल गीत) वीरेन्द्र सिंह व्रजवासी

 





 

ऊंची-ऊंची भरो  छलांगें,

आगे   बढ़ते   जाना   है,

जीवन में आने वाली हर

बाधा   तुम्हें   हटाना   है।


तुम भविष्यके निर्माताहो,

दुनियाँ को  दिखलाना  है

ऊंच-नीच की दीवारों को,

तुमको  तोड़   गिराना  है।


तुम प्यारे बच्चे  हो लेकिन,

इतना   तो   समझाना   है,

अपनी ताकत  के  बलबूते,

जग  में  नाम  कमाना   है।


नहींअसंभव कुछजीवन में,

इस  पर  ध्यान  लगाना  है,

मंज़िल राह  निहारे  उनकी,

जिनको   आगे   जाना   है।


बच्चे  मन  के  सच्चे  होते,

जाने  सकल   ज़माना   है,

ईश्वर  के दर्शन से  बढ़कर,

इनको   गले    लगाना   है।


स्वयं ज्ञानका दीपक लेकर,

घर-घर  अलख  जगाना है,

बच्चो तुमको मात-पिता के,

सम्मुख  सीस  झुकाना   है।

       



                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

                     

"उपवन" (कुण्डलियाँ)

 






माली उपवन देखता, रोज लगाते फूल।
खाद दवाई डालते, नही बैठता धूल।।
नही बैठता धूल, सदा वे पानी डालें।
सुंदर सुंदर फूल, बाग में अपने पाले।।
महक उठा संसार, सजे फूलों से थाली।
रखते सुंदर साफ, रोज उपवन को माली।।

अर्पित करते फूल जी, सभी सजाते द्वार।
उपवन चुनते पुष्प है, और बनाते हार।।
और बनाते हार, राम जी खुश हो जाते।
मंदिर जाते लोग, चरण में माथ झुकाते।।
खुश हो जाते देख, करे वह पुष्प समर्पित।
लेते आशीर्वाद, राम को करते अर्पित।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

दादी की गोदी !(लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 


       


जाड़े में बच्चा रोज़ शाम से ही अपनी दादी को आंगन में रखी परात में लकड़ियां जलाकर उनकी गोदी में बैठकर कहानियां सुनने की ज़िद करता।दादी भी उसकी जिज्ञासा को समझते हुए उसे रोज़ नई -नई कहानियां सुनाती, सो जाने पर बच्चे को अंदर ले जाकर पलंग पर सुलातीऔर गर्म कपड़ा उढ़ाकर प्यार से उसका माथा चूम लेती।

     दोनों एक दूजे के बिना खोए खोए से रहते।एक दिन बैठे-बैठे दादी को अचानक तेज चक्कर आया और दादी धड़ाम से जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई।सारे घर वाले दौड़े-दौड़े आए और उन्हें  उठाकर पास के नर्सिंग होम में ले जाकर दिखाया।सारे आवश्यक परीक्षण करने के बाद डॉक्टर्स ने हल्के हार्ट अटैक की पुष्टि की और आवश्यक दवाएं देकर पूर्ण विश्राम की सलाह के साथ घर भेज दिया।शाम हुई तो बच्चे को दादी अम्मा की याद आई,परन्तु दादी के गहरी नींद में सोने का कारण उसकी समझ में न आया।उसने अपने मम्मी-पापा से पूछा तो पता चला कि अब कुछ समय तक दादी तुम्हें कहानी नहीं सुना पाएंगी।जब ठीक हो जाएंगी तब ही तुम कहानी सुन सकोगे।

      बच्चा बहुत उदास हो गया और रोनी सूरत लेकर दादी के पास पहुंचकर दादी से बोला अम्मा जल्दी ठीक हो जाओ ना,,,मुझे बिना कहानी सुने नींद नहीं आती।दादी ने भी उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा बेटा मुझे ही कौन सी तुझे देखे बिना नींद आती है।आ तू उदास मत हो मैं तो तुझे देखकर ही ठीक हो जाती हूँ।डॉक्टर तो कहते ही रहते हैं।सबका मालिक तो भगवान है।पर मेरा भगवान तो तू है।

       बच्चा खुश होकर दादी की गोदी में बैठ जाता है और कहानी सुनते सुनते सो जाता है।

           ------💐------

             वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ,प्,

                 9719275453

                  

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

शामू (एक लम्बी धारावाहिक कहानी) शरद कुमार श्रीवास्तव







शामू का पिता इस शहरके पास के कस्बे में एक रेलवे ओवरब्रिज के नीचे एक कपड़ा फैलाए बैठा रहता था।   आने जाने वाले उसके बिछाए कपडे पर कुछ न कुछ पैसे डाल देते थे।   वह किसी से कुछ मांगता नहीं था।  यह उसे मालूम था कि मांगने से कुछ नहीं मिलता  है। धरम करम करने वाले अपने आप से अपना परलोक सुधारने के लिए कुछ न कुछ डाल जाते थे।   शामू को वह  इस शहर में अपनी दादी के साथ स्कूल के पास एक मड़ैया मे  रखता था।  वहाँ पर और भी मड़इयाँ  थी जहाँ और लोग बरसो से रहते थे।   शामू स्कूल के बच्चों को देखता तो उसका बहुत मन करता था की वह भी स्कूल में जा कर पढ़े, पर उसके बस में कहाँ था यह सब।
दस साल का शामू, अपने टोले में रहने वाले कुछ बच्चों के साथ कूड़े में से प्लास्टिक बटोरने का काम करता था।  सबेरे सबेरे यह काम और लड़कों के साथ मिल कर  करता था।   फिर पुरानी प्लास्टिक की थैलियाँ पुराना टूटा प्लास्टिक बटोर कर अपनी बस्ती के अंदर के  एक और लड़के को देता था।  वह लड़का चंदू उसका क्या करता  है उसे नहीं मालूम पर यह मालूम है कि  वह शामू को कभी डबलरोटी कभी समोसा आदि खाने को दे देता है।   चंदू भी वह कचड़ा प्लास्टिक किसी न किसी को  बेचता जरूर होगा।
शामू का पिता बिहारी हमेशा इतवार को शामू के  पास  आता था।   जब उस कस्बे के आफिस बंद होते थे  लोगों की आमद रफ्त भी कम होती थी।   भीख मांगना तो इस शहर में भी हो सकता था। लेकिन उसके एक  दोस्त ने उसे ज्यादा आमदनी वाली वह जगह सुझाई थी तब से वह हमेशा वहीँ बैठता था।  इतवार को उसका आना होता था  तब वह घर का खाने का  दाल चावल  आटा कुछ सब्जी , नमक तेल  इत्यादि खरीद रख कर सोमवार को सबेरे सबेरे चला जाता था ।  शामू दादी के साथ बरसों   से रह रहा था । पिता  के  साथ  वह महीने  के एक सप्ताह को,  दो दिन, बिताता था । तब उसका  पिता अपने बदन पर उसको चलवाता  था ।  बिहारी एक दिन  शामू से बोला, बेटा तू स्कूल  के  एकदम  पास मे रहता है, कुछ पढ़लिख जाता तो कितना  अच्छा होता । इस पर शामू बोला, चल तू स्कूल  चल, वहाँ  मास्टर को बोल दे । मेरा भी मन पढने के लिए कर रहा है ।
बिहारी शामू से बोला ! चल तू अभी चल, मै चलकर मास्टर साहब से, तेरे पढ़ने की  बात करता हूँ।  शामू उठ खड़ा  हुआ  और उसने अपने हाथ — मुँह  पर पानी की  छीटें मारी फिर अपनी फटी और काली पडी कमीज की बाहों  मे मुँह  पोंछकर  अपने पिता से बोला चलो !  आज से समोसा कचौड़ी  बन्द  पढ़ाई  शुरू  ।  वह अवसर  नहीं  खोना  चाहता था  ।  पिता ने अभी हाँ की है ।  कल वह पलट जाये तो फिर वह  पढ़ने के लिए कब जा पायेगा पता नही । बिहारी  भी एक  झोंके मे उठा और शामू का  हाथ पकड़कर शामू को स्कूल लेकर गया ।

आगे  अगले  अंक में 


                                शरद कुमार श्रीवास्तव 

मास्क लगाना सीखो(बाल गीत) : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 





    बच्चो मास्क लगाना सीखो,

    विपदा  दूर  भगाना  सीखो,

    तंदरुस्त  रहकर दुनियाँ  में,

    खुलकरके मुस्काना सीखो।


    काल बने  इस कोरोना  को,

    लड़कर  स्वयं हराना सीखो,

    नियतसमय सबके हाथोंको,

    साबुन  से  धुलवाना  सीखो।


    बासी  खाना  छोड़   सर्वदा,

    ताज़ा  खाना, खाना  सीखो,

    बाहर  से  आने   पर  बच्चो,

    मलमल जिस्म नहानासीखो।


    खेल -खेल  में दो  गज  दूरी,

    सबके  साथ  बनाना  सीखो,

    लापरवाही    बुरी   बात   है,

    केवल यह समझाना  सीखो।


    नहीं   दवाई,    नहीं  ढिलाई,

    यही   मंत्र   दोहराना  सीखो,

    बिना  बात  ही   कोरोना  से,

    बिल्कुल मत घबराना सीखो।


    रोग मुक्ति  के  लिए बने इस,

    टीके  को  अपनाना   सीखो,

    विश्व   मुक्त  हो  कोरोना  से,

    गीत हृदय  से  गाना  सीखो।

           ----💐---💐----




                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

                     09/01/2021

मानवता का कल्याण करो : श्रीमति मिथिलेश शर्मा

 




पथ तो अनेक मिल जायेंगे

कुछ लक्ष्य नया निर्माण करो,

जो बीत गया सो व्यर्थ गया 

बस आगत का सम्मान करो.

                                               

जो हैं भूले भटके-पिछड़े 

उनको जागृति का सम्बल दो, 

ये हीन शक्ति का द्योतक हैं 

इनको केवल अवलंबन दो.

इतिहास स्वयं बन जायेगा 

कुछ त्याग और बलिदान करो, 

पथ तो अनेक मिल जायेंगे 

कुछ लक्ष्य नया निर्माण करो.


सुख को ही मत समेट लो तुम 

दुखों को भी स्वीकार करो, 

जो हैं शोषित, शापित, ताड़ित

उनको भी अंगीकार करो.

अज्ञान मिटाकर धरती के 

कण-कण से नव उत्थान करो, 

मानव हो बस मानव रह कर 

मानवता का कल्याण करो.


रचना-

श्रीमति मिथिलेश शर्मा

एम.ए., साहित्यरत्न. 

भूतपूर्व अध्यापिका, लखनऊ.  

  

  

मंगलवार, 5 जनवरी 2021

एक हिरन, कछुआ, कौवा और चूहे की कथा : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव


 








बच्चों , कबूतरों का समुह जब एकजुट होकर बहेलिये के जाल को साथ ले कर, कबूतरों के मुखिया राजा के मित्र चूहे, के पास पहुँचा तो चूहे ने अपने पैने दांतो से जाल काट दिया । इससे कबूतरों को एक बड़ी विपत्ति से छुटकारा मिल गया और सभी कबूतर चूहे को धन्यवाद देकर उड़ गये. यह कहानी आप सभी लोग जानते होगे और यह भी जानते होंगे कि एकता मे कितनी ताकत होती है।    अच्छा मित्र उसे कहते हैं जो मुसीबत के समय भी सहायता करे ।  अब आगे की कहानी जो नारायण पंडित ने हितोपदेश मे कही थी वह हम संक्षेप मे आपको सुनाते हैं।

जिस समय मूषक राज चूहा जाल काट रहा था उसी समय उस पेड़ पर बैठा एक कौवा बड़े धैर्य के साथ वह सब देख रहा था।  वह चूहे की मित्रनिष्ठा देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। उसने निशच्य किया कि मूषक राज को मित्र बनाना चाहिये क्योंकि वह मित्रता के योग्य है।  उस कौवे ने उस चूहे से मित्रता करने का निवेदन किया ।   इस पर चूहे ने कहा हमारी तुम्हारी दोस्ती कैसी?   मैै ठहरा खाद्य  और तुम ठहरे हमारे भक्षक ! अतः यदि मै तुमसे मित्रता कैसे कर सकता हूँ ।  मौका पाकर तुम मुझे मार कर खा जाओगे।   इस बात पर कौवे ने पुनः आग्रह किया और विश्वास दिलाया कि वह सच्चे दिल से उससे मित्रता करना चाहता है,  तब चूहा अपनी सुरक्षा पर नजर रखने की सोंच कर कौवे के मित्रता के प्रस्ताव को मान गया और वे दोनो मित्र बन गये।   कुछ दिनो के बाद एक दिन कौवा चूहे से बोला कि इस स्थान पर खाने की चीजों की कमी आ गई है हम लोगों को यहाँ से दूर कहीं चले जाना चाहिये।   पेड़ की ऊँची डाल पर बैठे कौवे ने दूंर तक नजर दौड़ाई तो उसे चारो तरफ अकाल पड़ने जैसा नजारा देखने को मिला ।   अतः दोनो बात करते दूर तक एक तलाब के पास तक निकल आये . उस तालाब के पास कछुऐ का घर था .

कछुआ कौवे का मित्र था इस प्रकार तीनो कौवा, कछुआ और चूहा आपस मे मित्र हो गये थे।   एक दिन, एक हिरन , दौड़ता हुआ उस जंगल मे आया।  उसको डरा हुआ देख कर इन तीनो मित्रों ने उसके मन से डर निकाल कर उसे निडर रहने का सुझाव दिया ।  उस हिरण ने बताया कि उसने शिकारियों को बातचीत करते सुना है कि इस देश के राजा अपने राज्य के बड़े मत्रिंयों के साथ इधर के क्षेत्र के दौरे पर आने वाले है ।  उनके खाने के लिये बढ़िया मांस के लिये शिकारी इस जंगल मे आयेगे इसी बात को सोच कर हिरन को भय लग रहा है. तीनो मित्रो ने उससे कहा कि तुम भी हमारे मित्र हो हम सब मिल कर समय आने पर कुछ व्यवस्था कर लेंगे. लेकन कछुआ डर गया वह बोला कि वन मे रहना खतरे से भरा है अतः मैं दूसरे वन मे चला जाता हूँ और उसके मित्रों ने सोचा वह अकेला रास्ते मे किसी मुसीबत मे न पढ़ जाये वे भी उसके पीछे चल दिये. दूसरे जंगल के तालाब तक वह कछुआ पहुँचा ही था कि एक शिकारी ने उसे पकड़ लिया. कछुआ के मित्र लोगो ने जब कछुए को फँसा हुआ देखा तब उसके शिकारी के जाल से बाहर निकाले की योजना बनाने लगे.

कौवे ने चूहे से कहा कि हम तीनो मेआप सबसे बुद्धिमान हैं आपही इसका कोई उपाय निकालिये. चूहे ने कछ देर सोचा फिर बोला ठीक है मैं जैसा कहता हूँ वैसा हम सब करें तब हम अपने मित्र को अवश्य छुड़ा लेगें. चूहे ने हिरन से कहा कि शिकारी से दूर परन्तु उसे दिखाई पड़ जाये इतनी दूर वह मृतक की तरह लेट जाने का ड्रामा करे कौवे भाई तुम उसकी आँख के पास बैठ जाओ . यह देखकर शिकारी जैसे ही मृग के माँस के लालच मे उसकी तरफ जायेगा मै कछुए के जालको काट दूंगा. उसका कहना माँन कर हिरन दूर झाड़ियों के पास एक मरे हुए हिरन की तरह लेट गया कौवा उसके आँख के पास बैठा तब शिकारी भी धोका खा कर हिरन की तरफ जाने लगा. तभीचूहे ने कछुए का जाल काट दिआ और कछुए ने तालाब मे छलांग लगा दी. छपाक की आवाज सुनकर कछुएको फिर पकड़॒ने के लिये जब शिकारी कछुए की तरफ बड़ा तब हिरन और कौआ भाग गये .

बच्चों , देखा सच्चा मित्र वही जो विपत्ति मे काम आये और एकता मे बहुत ताकत होती है वहीं बहेलिये ने भी शिक्षा पाई कि .

आधा छोड़ पूरे पर धावे तो आधी रहे न पूरी पावे।।



शरद कुमार  श्रीवास्तव

चुनमुन की माँग :शरद कुमार श्रीवास्तव

 


मम्मी तुम मेरे लिये बस एक नई फ्राक लादो

कापी किताब और मुझे एक बैग दिलवादो

इस साल क्लास रूम मे फिर मुझे पढ़वादो

करोना से बोर हुई हूँ इसे ड॔डा मार भगादो


भैय्या संग बैठ ठाठ से बस में पढने जाऊंगी

घर मे अब नहीं खेलनास्कूल में पढने जाऊंगी

पिंकी रिंकू शौर्य सभी का एडमिशन करवादो

करोना से बोर हुए सब इसे डंडा मार भगा दो


खिलौनों संग खेल के हम तो बोर हुए जाते हैं

टेलिविज़न भी मम्मी न जरा देख हम पाते हैं

घर से बाहर फिर से माॅल मे शापिंग करवादो

कोरोना से बोर हुए सब इसे डंडा मार भगादो


किताबों को देखे हुए एक जमाना बीता गया

ऑनलाइन पढते हुए एक जमाना बीत गया

कुछ ऐसा कर दो मम्मी स्कूल मुझे दिखलादो

कोरोना से बोर हुए इसे धक्का मार भगा दो





शरद कुमार श्रीवास्तव

खिलौने वाली बंजारन(लघु कथा) : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 


सरकंडे की बारीक सिरकियों से खिलौना बनाकर उसमें दो चार कंकड़ डालकर झुनझुना बनाने वाली बंजारन अपने सर पर एक बड़े से टोकरे में बहुत से झुनझुने रखकर शहर की गलियों में उन्हें बेचने के लिए आवाज़ लगाती,"खिलौन ले लो खिलौने" 

     उसकी आवाज़ सुनकर बच्चे, बूढ़े सभी घरों से बाहर आकर खिलौने देखते और उन्हें बनाने का तरीका पूछकर ही रह जाते।बंजारन के बार-बार कहने पर भी कोई उन खिलौनों को खरीदने का नाम न लेता।जब कि एक खिलौने की कीमत महज़ एक रुपया ही थी।

     तभी एक सेठजी की पत्नी अपनी तीन साल की बच्ची को लेकर बाहर निकली और खिलौनों की टोकरी के पास जाकर एक खिलौना उठाकर उसे बजाकर देखते हुए उसकी कीमत पूछते हुए बोली "अरी ओ"यह एक खिलौना कितने का है।

       बंजारन ने मुस्कुराते हुए कहा बहन एक रुपया मात्र,,इतना सुनकर सेठानी ने कहा इसमें ऐसा क्या है, सिर्फ सिरकियों को मोड़-मोड़कर ही तो बनाया है बजने के लिए दो-चार कंकड़ डाल दिए हैं।ऐसा तो कोई भी बना लेगा,,,मैं तो चार आने दूँगी बस

      बंजारन हंसी और बोली सेठानी जी इतने में तो कोई मिट्टी का भी बनाकर नहीं देगा।अगर लेना है तो लो,,इससे कम में नहीं मिलेगा। सेठानी ने कहा जा हमें नहीं लेना,इतना कहकर वह घर के अंदर जाने लगी। तभी उसकी छोटी बच्ची जोर-जोर से रोकर खिलौना लेने की ज़िद करने लगी।ज्यादा रोने पर सेठानी ने बच्ची को डांटते हुए उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया।

       बंजारन से बच्ची का रोना देखा नहीं गया और वह एक खलौने लेकर बच्ची के पास गई और खिलौना उसे देकर बोली लो बेटी यह तुम्हारा है। हम भी तो बच्चों वाले हैं।एक खिलौने की कीमत नहीं भी लेंगे तो हम गरीब नहीं हो जाएंगे।सेठानी कुछ कह पाती इससे पहले बंजारन बच्ची को आशीर्वाद देती हुई टोकरा सर पर रखकर राम-राम करती हुई आगे बढ़ गई।

        


              वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                 9719275453

                  

"जाने कहाँ गये वो दिन" (लावणी छंद)

 






जाने कहाँ गये वो दिन भी , 
कभी हँसकर निकल जाते।
छोटी छोटी बातों में भी ,
खुशियाँ ही खुशियाँ आते।।

माँ के हाथों चूल्हे की रोटी , 
धीमी घी की सुगंध आती।
दौड़कर सभी आते बच्चें।
सबको भूखन लग जाती।।

जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
चूल्हे में दूध पकाती ।
मलाई देख हम सारे के,
मुँह से लार टिपक जाती।।

जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
लकड़ी की आँचे आती।
बातें करते साथ बैठ कर ,
सारी ठंडी भग जाती।।

बहुत याद आती उस पल की ,
नही मिलता देखने को ।
खो गये अब आँच लकड़ी के , 
मिले न हाथ सेंकने को।।





रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

कौन बड़ा है वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बाल रचना

 


ज़िद पर मेरा  मित्र अड़ा है,

ईश्वर  या अल्लाह  बड़ा  है,

अम्मा तुम इतना बतला दो,

सबसे आगे  कौन खड़ा  है।


अम्मा   बोली   बेटा    तूने,

क्योंकर ऐसा प्रश्न किया है?

ईश्वर  का  बटवारा   करने,

का किसने प्रपंच  किया है।


अलग-अलग नामोंसे ईश्वर,

सकल जगतमें पूजा जाता,

वह तो हम सबके भीतर है,

लेकिन नज़र नहीं है आता।


हमनेअपनी स्वार्थ सिद्धि में,

उसका नामकरण करडाला,

भेदभाव के बिना जगत को,

देता  जो   भरपूर   उजाला।


कोई  छोटा   नहीं   बड़ा  है,

सिर्फ राह में अहम अड़ा  है,

हमने  ही  उसको  छोड़ा  है,

वह तो सबके साथ खड़ा है।


शंकाओं  को  दूर  भागकर,

परममित्रको यह समझाओ,

मंत्र करो  तुम  याद  हमारा,

कलमा याद  हमें  करवाओ।


कहो सखा  से  जाकर  बेटा,

जिदपरवहकिसलिएअड़ा है,

ईश्वर  सबके   लिए   एकसा,

कभी न छोटा  और  बड़ा  है।

  


                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453


              वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   04/01/2021

नया साल(2021) रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 


गए साल का  पीछा  छोडें

नए  साल  में   गमन  करें

अच्छी बातोंको अपनाकर

झुककर सबको नमन करें।

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आशावादी जीवन  जी  लें

मानवता का अमृत  पी लें

वैर भाव की फटी चदरिया

प्रेम  पगे  धागों  से  सीं  लें

दिलकी हरसूनी बगियाको

आओ मिलकर चमन करें।

गए साल का-------------


सतत प्रेमका दीपक लेकर

सब  अंधियारे  दूर  भगाएं

सदा मौज मस्ती में रहकर

खुशियोंकी गागर छलकाएं

मंगल हो नववर्ष सभी  को

दिल  से  ऐसे   जतन  करें।

गए साल का--------------


धरती  बने  स्वर्ग  से  सुंदर

केवल   यही   कामना   हो

सबके दिलमें ईश बसें  यह

मंगलमयी    भावना      हो

नए साल में  पावन  मन से

महक  लुटाता  हवन   करें।

गए साल का--------------


सुख समृद्धि रहे जीवन  में

जन -जीवन  का  मान  रहे

सकल विश्व मेंभारत माँकी

अजब  अनोखी  शान  रहे

वैमनस्यता  का  धरती   से

हमसब मिलकर पतन करें।

गए साल का-------------

 


     


                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

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    सभी को नया साल बहुत बहुत मंगलमय हो।



                

"पानी का खेल " बालकथा : अंजू जैन गुप्ता

 






बरखा नगर का राजा अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था। वह उन्हें अपनी संतान की भाँति मानता था और वहाँ के सभी जानवर भी आपस में मिल जुल कर रहते थे। 

वह छोटा सा नगर था और वहाँ की जनसंख्या भी ज्यादा नहीं थी, इसलिए उन्हें जल,आवास व भोजन जैसी सभी सुविधाएँ आसानी से प्राप्त   हो जाती थी। राजा भी खुश था क्योंकि उसकी प्रजा भी हँसी खुशी से अपना जीवन बिता रही थी। 

परन्तु कुछ समय बाद ही इस नगर की हरियाली  व खुशहाली को देखकर आस-पास के नगरों से भी लोगों ने यहाँ आकर रहना आरंभ कर दिया। 

एक दिन अचानक ही राजा को सुबह-सुबह  बाहर से शोर सुनाई  देता है। वह तुरंत ही अपने सैनिकों के साथ बाहर जाकर देखते हैं; पर ये क्या! बाहर तो नगर के निवासियों और बन्दर की टोली ने हुडदगं मचाया हुआ था। हर ओर से हमें पानी चाहिए, हमें पानी चाहिए का शोर सुनाई दे रहा था। तब राजा उन सबको शांत करते हुए कहते है कि , अरें भई ! समस्या क्या है पहले यह तो बताइए तब भीड़ से चंकु बंदर बाहर आता है और कहता है, "महाराज- महाराज आज जैसे ही मैं नहाने गया, ये देखिए सारा पानी ही समाप्त हो गया और साबुन मेरे शरीर पर ही लगा रहा गया।" साबुन लगा देखकर महाराज अपने सैनिकों को आवाज़ लगाते हैं और कहते है, सैनिकों इधर आओ ,इस चंकु बंदर को तुरंत ही अन्दर ले जाकर पानी से नहला दो।

तभी भीड़ से दो बच्चे निकल कर आते है और कहते है, महाराज- महाराज हमारी धरती पर तो बहुत सारा पानी है  इस पर तो 71%पानी है जिसके कारण इसे BLUE PLANETभी कहते है पर फिर भी हम सबको भरपूर मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है ऐसा क्यों महाराज?

महाराज उन्हे समझाते हुए कहते हैं, हाँ -हाँ बच्चो तुम सही कह रहे हो,पर क्या तुम्हें पता है कि 71% का97%पानी हमारे महासागरों (oceans) में है और वह सारा पानी खारा है अर्थात नमक का है जिसके कारण वह हमारे लिए अनुपयोगी है और सिर्फ़ 3% पानी ही ताजा है किन्तु उसका 2/3भाग  हमारे glaciers में बर्फ के रूप में जमा हुआ है और इस प्रकार सिर्फ़ 1%पानी ही उपयोग  के लायक है।

  तभी चंकु बंदर नहा कर बाहर आ जाता है और कहता है महाराज महाराज 71%,97% बला- बला क्या बला है?मुझे तो कुछ समझ नहीं आया। ये सब क्या हिसाब -किताब की बातें हैं? जब धरती पर इतना सारा पानी है तो हम सब को भरपूर कयों  नही मिल पाता ?

महाराज कहते है, चंकु बंदर इधर आओ मैं तुम्हें आसान तरीके से समझाता हूँ ।यह कहते ही महाराज अपने सैनिकों को आवाज़ लगाते हैं और कहते है कि जाओ जाकर 71जूस की बोतलें ले आओ और ये सभी चंकु बंदर को  दे दो वह 71जूस की बोतलें पाकर  फूला न समाता(अर्थात बहुत खुश होता है)और कहता है वाह-वाह! इतना सारा जूस मैं तो सारा पीकर मोटा हो जाऊँगा, पर ये क्या जैसे ही उसने पहली बोतल खोली उसमें तो नमक वाला जूस था। ऐसे एक-एक करके 68 बोतलों में नमक वाला जूस था। अब बची सिर्फ 3 बोतलें और उनमें से 2बोतलों में बर्फ जमी हुई थी अब सिर्फ़ 1ही बोतल में  मीठा जूस था। 

  वह महाराज के पास जाता है और कहता है महाराज महाराज देखिए न सैनिकों ने यह कैसा जूस दिया है केवल एक ही बोतल में मीठा जूस है जो पीने लायक है, बाकी सब तो बेकार है किसी काम के ही नहीं है। 

चंकु बंदर की बातें सुनते ही महाराज ज़ोर से हँस देते है, और हँसते- हँसते कहते है कि देखा चंकु इसी प्रकार हमारी धरती पर भी सिर्फ़ 1%ही जल है जो उपयोग के लायक है इसलिए हमें जल का सोच - समझ कर उपयोग करना चाहिए जितना हो सके उसकी बचत करनी चाहिए। 

"जल अनमोल है। "






अंजू जैन गुप्ता

यशस्विनी भारतीय की कहानी : वक्त है रुक जाओ

 



                 

 

 

 Plant more trees, don't kill animals, save the earth।


एक गरीब आदमी था ।उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो लड़कियां थी । उस आदमी का नाम भक्त था। भक्त पेड़ों को काटता था ,बेचता था और जानवरों को मारकर उनकी खाल बेच देता था जिससे वह पैसे कमाता था। वह पूजा में बहुत विश्वास रखता था ।वह रोज मंदिर जाता था और पूजा करता था । वह अपने बच्चों से भी कहता कि मैं इतनी पूजा करता हूं , जरूर भगवान मुझसे खुश होकर हमारे घर जरूर आएंगे । लेकिन हां ,याद रखना बच्चों , भगवान कभी भी अपने असली रूप में नहीं आते । वह हमेशा किसी का रूप लेकर आते हैं । रोज की तरह भक्त पेड़ों को काटने जाता है ।वहीं पर बैठ जाता है ।पेड़ को काटने लगता है। जब वह काट रहा होता है तो एकदम से नीचे गिर जाता है ।सब गांव वाले चिल्ला रहे होते हैं ,बचाओ बचाओ भूकंप आ गया है। वह डर जाता है और जल्दी से अपने घर जाता है । घर जाकर देखता है कि उसका पूरा घर गिरा पड़ा है । वह अपनी बीवी और बच्चों को ढूंढने लगता है । देखता है कि उसकी बीवी और बच्चे दबे पड़े हैं । वह गांव वालों की मदद से उनको बाहर निकालता है और देखता है कि तीनों मर गए हैं। सबसे पहले वह उन को जलाता है । और बहुत रोता है लेकिन गुस्से में भी बहुत होता है । वह मंदिर जाता है गुस्से में और बोलता है , हे भगवान तुझे तो मैंने दिन-रात पूजा। सब कुछ छोड़कर तुझे माना। अपने बच्चों के साथ वक्त बिताने की जगह हवन आदि कराया ।क्यों भगवान क्यों और तूने एक पल में मेरा सब कुछ ले लिया मेरा परिवार ।क्यों भगवान क्यों ।क्या इतनी पूजा का कोई महत्व नहीं है ।बोल कुछ तो बोल। वह रोता रोता वापस अपने उस टूटे हुए घर में चला गया । वह देखता है कि एक बिल्ली उसके आसपास घूम रही है ।भक्त ने उसको बहुत बार हटाया लेकिन वह हटी नहीं । गुस्से में आकर भक्त ने एक तीर छोड़ दिया उस पर। वह बिल्ली मर गई। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि वह बिल्ली गायब हो गई ।उसने देखा कि हवा बहुत तेज चलने लगी । सामने देखा तो भगवान था। जैसे ही उसने भगवान को देखा तो उनके पैरों में गिर पड़ा और कहने लगा वही बात जो उसने मंदिर में बोली । भगवान उसकी बात चुपचाप सुनता रहा । उसकी बात भी खत्म हो गई लेकिन वह शांत रहे । कुछ बोले ही नहीं । भक्त ने बोला ,बोलिए कुछ तो बोलिए भगवान ।भगवान थोड़ी देर के बाद बोले , हां ,पृथ्वी के लोग सही कहते हैं कि सब इंसान मतलबी होते हैं। तुम मेरी पूजा अपने फायदे के लिए करते हो जिस दिन तुम मुझे अपने फायदे के लिए नहीं ,अपनी श्रद्धा से करोगे, उस दिन मैं तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी करूंगा ।भक्त ने बोला तो आप बताइए कि मुझे क्या करना चाहिए । यह बात सुनकर भगवान एक मुस्कुराहट के साथ बोले, अगर तुम अपनी श्रद्धा से मुझे मानते हो तो तुम्हें पूजा करने की जरूरत नहीं और वैसे भी मुझे पता है कि तुम मुझसे कुछ सवाल पूछना चाहते हो तो पूछो मेरे बच्चे । भक्त बोला भगवान आपने मेरा परिवार क्यों छीन लिया मुझसे । भगवान बोले, और जो तुमने कितने परिवार छीने हैं , जब तुम पेड़ काटते हो तो जो चिड़िया उड़ सकती हैं , वह तो उड़ जाती है लेकिन जो अभी तक उड़ना नहीं सीख पाईं वह सब मर जाती है । तुम कितने जानवरों को मार देते हो । उनकी जिंदगी छीन लेते हो । तब क्या उनका परिवार नहीं छिनता उनसे । भूकंप मैंने इसलिए लाया क्योंकि मुझे तुम्हें सबक सिखाना था, कि जैसे तुम पेड़ों को काटते हो और उसमें चिड़िया दबकर मर जाती है और पेड़ ही नहीं रहेंगे तो पंछी कहां रहेंगे ।उनके परिवार को तो तुम उजाड़ देते हो।तो तुम ही बताओ कि ऐसा क्या गलत हुआ तुम्हारे साथ। जो एहसास पेड़ों को,चिड़ियों को और बिल्लियों को होता है ,वह एहसास ही मैं तुम्हे कराना चाहता था ।दया आई तुम पर इसलिए सोचा ,एक बिल्ली बनकर तुम्हारे घर अाऊं और तुम्हारी इच्छाएं पूरी करूं लेकिन तुमने तो मुझे ही मार डाला , तो तुम ही बताओ ऐसा क्या गलत हुआ है तुम्हारे साथ जिसकी पूजा करनी चाहिए ,उसको तो तुम मार डालते हो और एक मूर्ति की पूजा करते हो । यह प्रकृति ही तुम्हारा जीवन है ।और हां, जाते-जाते तुम्हें बता दूं कि जब तक यह प्रकृति शांत है तुम्हारे जुल्म के बावजूद तुम इंसान जिंदा हो क्योंकि जब भी मुझे गुस्सा आता है तुम जैसे मूर्ख पर तो वही हमें आकर कहती है कि इंसान सुधर जाएंगे ।आप चिंता मत करो । वरना अगर किसी दिन उस प्रकृति को गुस्सा आ गया तो तुम्हारा नामोनिशान नहीं बचेगा। यह कहते ही भगवान गायब हो जाते हैं ।उस दिन से भक्त पेड़ों को और जानवरों को मारना बंद कर देता है और एक नौकरी करता है और एक मूर्ति की नहीं बल्कि प्रकृति की पूजा करता है ।




यशस्विनी भारतीय, 

कक्षा-7