यह मेरी है,यह तो मेरी है ।मैने इसे पहले पकड़ा,दूसरा बोला तू नहीं पहले मैंने पकड़ा।बात तू तू-मैं मैं तक आ पहुची,परंतु निर्णय कुछ नहीं,,उनकी इस लड़ाई को देखते हुए कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन बच्चों को समझाने का प्रयास करने लगे।परंतु बच्चे अपनी जिद से टस से मस होने को तैयार नहीं थे।
तभी एक भद्र पुरुष वहाँ आए और दोनों बच्चों से बोले कि तुम कैसे करके इस पतंग पर अपना-अपना हक जता रहे हो।तब एक लड़के ने कहा मैंने इसे पहले पकड़ा,दूसरे ने कहा मैंने इसके मांझे को इसके जमीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया था,इसलिए इसपर पहला हक तो मेरा ही है।
भद्र पुरुष ने कहा इसका सही निर्णय चलो उस पतंग उड़ाने वाले व्यक्ति से कराते हैं।वे उन्हें उस पतंग उड़ाने वाले सज्जन के पास ले जाकर बोले भैया यह पतंग तुमने काटी है।हाँ,हाँ इसे तो मैंने ही काटा है।बहुत देर से इसका मालिक मेरी पतंग से उलझकर उसे काटने की स्पर्धा में आगे निकलना चाह रहा था।
कभी दांए से तो कभी बांए से,कभी ऊपर से तो कभी नींचे से ढील देकर मुझे नौसिखिया समझ कर पतंग काटने का लगातार प्रयास कर रहा था।परंतु मैंने एक ही झटके में ही उसकी पतंग काटकर उसे प्रतियोगिता से बाहर कर दिया।
तब भद्र पुरुष ने बच्चों से कहा बताओ इससे आपने क्या सीखा।बच्चे खामोश,, समझ नहीं पा रहे थे क्या उत्तर दें।तब उन्होंने
बच्चों से कहा जीतता वही है जो अपने प्रतिद्वंद्वी को अपने अथक प्रयास एवं ज्ञान से हराकर विजय प्राप्त करता है।अर्थात आप दोनों बिना कोई प्रयास करे, अनाधिकृत रूप से इस पर अपना-अपना कब्जा करना चाह रहे हो, जो सैद्धान्तिक रूप से सही नहीं है।अतः इसका सही हकदार केवल और केवल इसे काट कर प्रतियोगिता जीतने वाला प्रतियोगी ही है।
योग्य सज्जन का निर्णय बच्चों को बहुत पसंद आया।तथा उन्होंने यह जाना कि मेहनत करके प्राप्त होने वाली वस्तु ही सच्चा सुख देने वाली होती है।
उन्होंने सज्जन व्यक्ति के चरण स्पर्श करके अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा माँगी।
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वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ, प्र,
9719275453
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