जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
कभी हँसकर निकल जाते।
छोटी छोटी बातों में भी ,
खुशियाँ ही खुशियाँ आते।।
माँ के हाथों चूल्हे की रोटी ,
धीमी घी की सुगंध आती।
दौड़कर सभी आते बच्चें।
सबको भूखन लग जाती।।
जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
चूल्हे में दूध पकाती ।
मलाई देख हम सारे के,
मुँह से लार टिपक जाती।।
जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
लकड़ी की आँचे आती।
बातें करते साथ बैठ कर ,
सारी ठंडी भग जाती।।
बहुत याद आती उस पल की ,
नही मिलता देखने को ।
खो गये अब आँच लकड़ी के ,
मिले न हाथ सेंकने को।।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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