ब्लॉग आर्काइव

मंगलवार, 5 जनवरी 2021

"जाने कहाँ गये वो दिन" (लावणी छंद)

 






जाने कहाँ गये वो दिन भी , 
कभी हँसकर निकल जाते।
छोटी छोटी बातों में भी ,
खुशियाँ ही खुशियाँ आते।।

माँ के हाथों चूल्हे की रोटी , 
धीमी घी की सुगंध आती।
दौड़कर सभी आते बच्चें।
सबको भूखन लग जाती।।

जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
चूल्हे में दूध पकाती ।
मलाई देख हम सारे के,
मुँह से लार टिपक जाती।।

जाने कहाँ गये वो दिन भी ,
लकड़ी की आँचे आती।
बातें करते साथ बैठ कर ,
सारी ठंडी भग जाती।।

बहुत याद आती उस पल की ,
नही मिलता देखने को ।
खो गये अब आँच लकड़ी के , 
मिले न हाथ सेंकने को।।





रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें