सरकंडे की बारीक सिरकियों से खिलौना बनाकर उसमें दो चार कंकड़ डालकर झुनझुना बनाने वाली बंजारन अपने सर पर एक बड़े से टोकरे में बहुत से झुनझुने रखकर शहर की गलियों में उन्हें बेचने के लिए आवाज़ लगाती,"खिलौन ले लो खिलौने"
उसकी आवाज़ सुनकर बच्चे, बूढ़े सभी घरों से बाहर आकर खिलौने देखते और उन्हें बनाने का तरीका पूछकर ही रह जाते।बंजारन के बार-बार कहने पर भी कोई उन खिलौनों को खरीदने का नाम न लेता।जब कि एक खिलौने की कीमत महज़ एक रुपया ही थी।
तभी एक सेठजी की पत्नी अपनी तीन साल की बच्ची को लेकर बाहर निकली और खिलौनों की टोकरी के पास जाकर एक खिलौना उठाकर उसे बजाकर देखते हुए उसकी कीमत पूछते हुए बोली "अरी ओ"यह एक खिलौना कितने का है।
बंजारन ने मुस्कुराते हुए कहा बहन एक रुपया मात्र,,इतना सुनकर सेठानी ने कहा इसमें ऐसा क्या है, सिर्फ सिरकियों को मोड़-मोड़कर ही तो बनाया है बजने के लिए दो-चार कंकड़ डाल दिए हैं।ऐसा तो कोई भी बना लेगा,,,मैं तो चार आने दूँगी बस
बंजारन हंसी और बोली सेठानी जी इतने में तो कोई मिट्टी का भी बनाकर नहीं देगा।अगर लेना है तो लो,,इससे कम में नहीं मिलेगा। सेठानी ने कहा जा हमें नहीं लेना,इतना कहकर वह घर के अंदर जाने लगी। तभी उसकी छोटी बच्ची जोर-जोर से रोकर खिलौना लेने की ज़िद करने लगी।ज्यादा रोने पर सेठानी ने बच्ची को डांटते हुए उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया।
बंजारन से बच्ची का रोना देखा नहीं गया और वह एक खलौने लेकर बच्ची के पास गई और खिलौना उसे देकर बोली लो बेटी यह तुम्हारा है। हम भी तो बच्चों वाले हैं।एक खिलौने की कीमत नहीं भी लेंगे तो हम गरीब नहीं हो जाएंगे।सेठानी कुछ कह पाती इससे पहले बंजारन बच्ची को आशीर्वाद देती हुई टोकरा सर पर रखकर राम-राम करती हुई आगे बढ़ गई।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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