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रविवार, 6 जून 2021

वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की लघु कथा- सच्चा ज्ञान

 


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नदी के किनारे एक साधू महात्मा तपस्यारत  थे।  तभी   उन्हें   यह आभास  हुआ  कि  कोई   उनको नाम  लेकर  पुकार  रहा  है। परंतु उन्होंने  बिना  नेत्र  खोले  तपस्या जारी रखी।

           कुछ समय के पश्चात पुनः वही   आवाज़  उनके   कानों   में पड़ी, तो उन्होंने अपने  नेत्र  खोले और देखा कि  एक   जीर्ण - क्षीर्ण दरिद्र    व्यक्ति     उनके    सम्मुख खड़ा-खड़ा   मुस्कुरा  रहा  है।यह

देख कर साधू महात्मा ने क्रोध  में

भरकर उस दरिद्र व्यक्ति  से  कहा 

तेरा  इतना  साहस,  कि   तू  मेरा नाम लेकर पुकारे और मेरे तपको

भंग करने का घोर  अपराध  करे।

      जब कि मैं  तुझे  जानता भी नहीं।

यह सुनकर उस दरिद्र  व्यक्ति  ने

बड़ी विनम्रता से  कहा महात्मन आप मेरा  परिचय  प्राप्त  करके 

भी क्या  करेंगें।मैं तो ऐसे ही घूम

घूमकर  यह  जानने  का  प्रयास 

करता रहता हूँ कि  इस धरा पर असली साधू कौन है।

        असली साधू,,,यह सुनकर 

साधू  महात्मा  चौंके  और  बोले 

यह जानकारी लेने वाला तू कौन

है।तू क्या कोई भगवान है।  चल-

चल अपना काम देख आया बड़ा।

    तब दरिद्र व्यक्ति ने स्पष्ट  कहा 

 कि मैं देवलोक से आया हूँ बाकी 

तुम अपने तपोबल से मुझे जानने

का  प्रयत्न  कर  सकते  हो।परंतु तुम  मेरी   परीक्षा  में   पूरी  तरह

असफल रहे हो।उसका कारण भी तुम्हें बता देता हूँ।

    हे वत्स असली साधु वही होता

है,जो  बहुत विनम्र, संतोषी, शांत

स्वभाव,परोपकारी एवं काम,क्रोध

लोभ,मोह से कोसों दूर  हो। परंतु

मुझे  तुम में  ऐसा  कुछ भी  नहीं दिखा।

          तुम  अपनी  योगमाया  से मुझे पहचानने में भी असफल रहे

हो।अतः मैं अब जाता हूँ।उपरोक्त

गुणों पर ध्यान दोगे तभी तुम्हारा कल्याण होगा।

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              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   

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