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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

शामू 6 एक धारावाहिक कहानी

 




अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था उन्हें बहुत जतन के साथ रखने पर भी कुछ नोट कीड़े खा गये थे । उन नोटों को शामू ने इशरत मियाँ की मदद से बदलवा दिये थे और बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता था।
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बैंक के खाते में शामू प्रति माह अपनी तनख्वाह से कुछ रुपये और दादी के दिये रुपये  बचा कर  नियमित रूप से जमा करने लगा । दादी को भी खुशी हुई कि उसके पैसे बैंक मे जमा हो रहे हैँ । अब रुपये चोरी चले जाने या कीड़े /चूहों के द्वारा कुतरे जाने का डर नहीं है ।   बिहारी अभी पहले की तरह रुपये अपनी माँ को दे जाता था और अपनी माँ से उन रुपयों के बारे मे कभी नहीं पूछता था ।
शामू इशरत मियाँ के गैरेज में मेहनत से काम करता था । धीरे धीरे वह कार रिपेयरिंग के   कार्य  से पूरी तरह  से परिचित  हो  गया था ।     कार आते ही उसकी आवाज से ही समझ जाता था कि गाडी  का कौन सा हिस्सा  खराब हो  गया  है ।  इंजन  के  काम  में  काफी माहिर  हो गया था  ।   कार के  इंजन  का  पिस्टन  हो या रिंग  का बदला जाना या  इंजन  का  बदला जाना, सब काम  करने को वह बहुत  अच्छे  से  सीख  गया  था  ।  इसकी  वजह थी  कि  इशरत  मियाँ  शामू  को  हमेशा  अपने  साथ  लगाए रखते थे।   इशरत मियाँ  के  प्यार  और अपनी लगन  की वजह  से  वह  मोटर मैकेनिक  का काम  अच्छी  तरह  से  सीख  गया था।
नुसरत  से  शामू अपने काम भर की पढ़ाई  लिखाई  भी  सीख  गया  था ।    कुछ  समय  बाद , नुसरत  का एडमीशन  उनके प्रिय  विषय  कम्प्यूटर  साइंस   के  लिए जबलपुर  के   इंजीनियरिंग कालेज  मे  हो गया  था ।  कालेज  मे तीन साल कैसे निकल गये पता नहीं  चला और कैम्पस   सेलेक्शन  में   नुसरत  सिद्दीकी  को  बैंगलोर  की कम्पनी   ने  अच्छी  शुरुआत  पर बुला लिया  ।   अब नुसरत  को आसानी  से  छुट्टी  न  मिल  पाने  के  कारण  इशरत  मियाँ  को  तकलीफ  होती  थी  ।   उनके  या बेगम  की बीमारी  दवादारू  आदि  सब कामो  मे शामू  ही सुझाई  देते  थे ।  गैरेज हो या घर हर स्थान  पर शामू  अपनी  जिम्मेदारी  निभाता था ।   इशरत भाई  का हर काम शामू के बगैर पूरा  नहीं  होता  था
नुसरत  ने बंगलोर  पहुँचाने  के बाद  अपने  माता  पिता  को  बंगलोर घूमने  के  लिए  बुलाया  ।  वहाँ  एक  माह  बिता कर वह लोग  अपने  घर  वापस  लौट  आये ।   शामू  के ऊपर  गैरेज  का  पूरा भार था ।  जब इशरत  मियाँ  लौट  कर आये गैरेज  ठीक  ठाक  मिला  । प्रत्येक   दिन  का हिसाब किताब  लिखा हुआ   मिला । यह सब देखकर  इशरत  मियाँ  खुश हो  गए  ।    अब  गैरेज  के  सब काम  शामू  करता था  ।  शामू को अब अधिक  जिम्मेदारी के   काम  मिलने लगे  थे  ।  बैंक  मे रुपये  जमा  करना  या निकाल  कर लाना सारे काम  शामू  करता  था  इशरत  भाई  जब विशेष  जरूरत के समय ही  काम अपने  हाथ मे लेते थे ।    नुसरत   भाई  की  माँ  शामू  पर बहुत  भरोसा  करती थी  इशरत  मियाँ  को डायबिटीज  है इसलिए  शामू  को  उन्होंने  हिदायत  दे  रखी  थी  कि  इशरत  मियाँ  को  बाहर  की चीजें  नही  खानी है ।   बारह बजे  की  चाय  शामू   गैरेज  के  किसी  लड़के  को  घर  भेजा कर मंगवा  लेता था  ।   नुसरत  भाई  की माँ एक चाय  शामू  के लिये   भी भेजती थी।

आगे अंक 7 मे

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