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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

शेर की ईमानदारी शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

 




आषाढ़ का महीना  था   पास के जंगल  मे सभी जानवर गर्मी से परेशान  होकर किसी तरह अपना जीवन  बिता  रहे थे।  भारी गर्मी मे वे जंगल  की कटीली झाड़ियो मे छुपे हुए थे ।   वे पानी पीने के लिये जंगल  के झरने के पास चले जाते थे ।  इसी झरने के पास जंगल  का राजा शेर भी शिकार की टोह मे बैठा रहता था जानवरों के चौक्कना  रहने से उनका शिकार  नहीं कर पाता था 

जंगल  के पशु  चालाक  थे ।  वे सब  शेर से नजर बचाकर झरने  से पानी पीकर  अपनी झाड़ियों मे दुबक जाते थे ।   भेड़िया, लोमड़ी  सियार आदि भी शिकार  नहीं कर  पाते थे ।


अचानक  एक दिन पास के एक गांव  से एक बैशाख नंदन (गधा) की  मधुर कंठी आवाज  सुनकर सियार फूला  न समाया।   उसे समझ मे आया कि बैशाख के घोर कोरोनाकाल  मे अपने घर  मे बन्द रहने के कारण  गधा उचित  समय पर अपनी खुशी व्यक्त  नहीं कर  पाया था अतः अब मुक्त हंसी से अपनी खुशी जाहिर  कर  रहा है ।  


सियार बहुत  दिन  से भूखा था इस लिये वह शेर के पास गया और  दूर से ही शेर  को शिकार  का लालच  देकर उसने शेर से अपने  हिस्से- बाट की बात कर लेना उचित  समझा ।   शेर ने कहा -ठीक है तुम  जानवर  लेकर आओ  मै शिकार  करूंगा  और  शिकार  के पेट के ऊपर  का हिस्सा मेरा रहेगा और  पेट के पीछे का हिस्सा तुम खा लेना ।  सियार  बोला ठीक है महाराज  मुझे मंजूर है।


सियार  जल्दी से गधे के पास  पहुँचा और  बोला बहुत  खुश  दिख रहे हो तुम्हारा भाग्य  बहुत  तेजी से तुम्हारे साथ  चल रहा है।  गधे ने पूछा  वह कैसे ?   सियार  बोला  जंगल  के राजा बूढे  हो चले है और  वह अपना राजपाट किसी को सौंप कर  विश्राम  करना चाहते हैं ।   महाराज  ने आपकी प्रभावशाली आवाज  सुनकर  मुझे आपके पास  भेजा है ।   अपनी तारीफ  सुनकर  गधा फूला नहीं समाया पर फिर उस ने कहा कि तुम मुझे मूर्ख  तो नहीं बना रहे हो ।  तब  सियार  बोला कोई  दूसरा जानवर  राजा के पास  जाकर  अपना राज्याभिषेक  न करा ले इसलिए  जल्दी करो।   गधा सियार  की बातों मे आ गया। 


सियार  गधे को साथ  लेकर  शेर  के पास  पहुंचा ।   जैसे ही दोनो शेर  के पास  पहुंचे शेर ने गधे को एक ही  झपट्टे मे  पकड़ना चाहा।   गधा झटपट  वहाँ से भाग निकला ।   हाथ से शिकार  जाता देख  सियार  उसके पास गया और बोला  कि तुम  भाग क्यो आए  ?  महाराज  आपको राजकाज  की गुप्त बातें  बतलाना चाहते थे और  सोने का हार तुम्हारे गले मे डालना चाहते थे ।  गधा  फिर  सियार  की बातों मे आ गया ।   इस  बार  शेर  ने एक ही वार मे उसका काम  तमाम  कर  दिया।


शेर जैसे ही गधे को खाने के लिए  बढ़ा  सियार  ने कहा महाराज  इतने दिनो के बाद  तो शिकार  मिला है इसलिए  पहले झरने के जल मे नहा लीजिये  फिर  भोजन  कीजिये ।  शेर को उसकी बात  अच्छी लगी और  वह  नहाने के लिए  चला  गया।  सियार  ने मौका पाकर गधे के सिर को अपने पैने नाखून  और दांतो  से फाड़ कर  खा गया ।   जब शेर  नहाकर  आया तब  उसने गरज कर सियार  से पूछा कि इस का दिमाग  कहाँ गया?   सियार  ने बड़ी चतुराई  से कहा महाराज  वह गधा था और  गधे के पास  दिमाग  होता तो वह क्या यहाँ आता।   शेर को बहुत  भूख लगी थी अतः उस  ने और बहस करना छोड कर शिकार  का बाकी ऊपरी भाग खा लिया और  ईमानदारी से  बचा हुआ  भाग  सियार  के लिए  छोड  कर  सैर पर  चला गया।





शरद कुमार श्रीवास्तव 

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