ब्लॉग आर्काइव
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2021
(197)
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अक्टूबर
(14)
- बीते बचपन की यादें प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना
- मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : सुयश और दादाजी
- प्रसन्न्ता का समीकरण : बालकथा कृष्ण कुमार
- बेसन के लडडू! :बाल रचना/ वीरेन्द्र सिंह बृजवासी
- रिक्शा चालक" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचनना
- दीपावली
- शेरावाली माँ रचनाकार प्रिया देवांगन प्रियू
- "बेटियाँ" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"
- बकरी के बच्चे! : बाल रचना- वीरेन्द्र सिंह "ब्रज...
- रावण अभी मरा नहीं है : डा. पशुपति पाण्डेय की रचना
- नन्ही चुनमुन की लापरवाही : एक बालकथा रचनाकार शरद...
- गुड़िया की चॉकलेट! बाल रचना वीरेन्द्र सिंह बृजवासी...
- *तर्पण* प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
- *तीज*
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अक्टूबर
(14)
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021
बीते बचपन की यादें प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना
मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : सुयश और दादाजी
अपने यादों के संग्रह से हम लाये हैं हमारी भूतपूर्व लेखिका स्वर्गीया मंजू श्रीवास्तव जी अप्रतिम रचना सुयश और दादाजी
उसके मम्मी पापा ऑफिस जाते थे | सुयश अपने दादा दादी के पास रह जाता था |
५,वीं कक्षा का छात्र था | दादा जी से के पास ही अपना होम वर्क, पढ़ाई आदि करता था |
एक बार वह एक सवाल मे अटक गया | हल नहीं निकल पा रहा था | दादा जी से पूछा | उन्होंने अच्छी तरह समझा कर बता दिया | | थोड़ी देर बाद फिर वही सवाल पूछने आया सुयश | दादाजी ने फिर बता दिया| इस तरह ४ बार वही सवाल पूछा सुयश ने दादा जी से | पर दादा जी ने बिना गुस्सा किये फिर बता दिया |
इसी तरह दिन बीत रहे थे | सुयश अब कॉलेज का छात्र था | पढ़ने मे होशियार तो था ही | स्वभाव मे भी थोड़ा बदलाव आ गया था | गुस्सा बहुत करने लगा था |
बढ़ती उम्र के साथ दादाजी की याद दाश्त कमजोर होने लगी थी |
एक दिन की बात है दादा जी ने सुयश को बुलाकर कहा बेटा मेरा चश्मा कहां रखा है जरा देख कर दे दो | सुयश ने चशमा लाकर दे दिया |
दूसरे दिन दादाजी ने फिर पुकारा, सुयश चशमा कहां रख दिया, मिल नहीं रहा है | सुयश ने लाकर दे दिया| तीसरे दिन दादाजी ने फिर पुकारा सुयश को| सुयश ने गुस्से से कहा, क्या दादाजी आप अपना चशमा ठीक से क्यों नहीं रखते? बार बार तंग करते हैं |
सुयश की बात मां ने सुन ली | सुयश को बुलाकर कहा, बेटा तुमने दादाजी से ऐसे क्यों बात की? तुम्हे याद है ,जब तुम सवाल बारबार पूछते थे दादाजी बार बार बताते थे | कभी गुस्सा नहीं करते थे | अब उनकी उम्र हो गई है | भूल जाते हैं |
तुम्हारी बातों से उनके दिल को कितनी चोट पहुंची होगी?
मां ने कहा, बेटा दादाजी तुम्हें बहुत प्यार करते हैं | आगे से कभी उनका दिल न दुखाना |
बच्चों ,बुज़ुर्गों को बच्चों से सिर्फ प्यार चाहिये | उनका कभी अपमान नहीं करो | वो घर की रौनक हैं |
प्रसन्न्ता का समीकरण : बालकथा कृष्ण कुमार
दिवाली की साफ सफाई चल रही थी। नए सामान भी आ रहे थे।
एक दिन महिला ने सफाई के दौरान अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले।
पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे,पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि।
सब कुछ तो बदलना था और सब कुछ उसकी निगाह में बहुत पुराना और बेकार हो गया था।
🙄
सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और बाजार से नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए।
😉
बड़ा ही पॉश लग रहा था अब उसका किचन।
फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान कबाड़ वाले को दे दिया जाए तो समझो हो गया साफ सफाई का काम,
साथ ही सिरदर्द भी ख़तम।
😘
इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए पुराने बर्तनों पर गई और बोली-
🙄
बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या?
और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।
😉
महिला बोली-
अरी नहीं! ये सब तो कबाड़ वाले को देने हैं...
सब बेकार हैं मेरे लिए ।
😁
कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर चहक कर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं?(कहने के साथ साथ ही उसकी आंखों के सामने उसके घर में पड़ा हुआ उसका इकलौता टूटा पतीला नजर आ रहा था)
🙄
महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा अगर तेरे काम के हैं तो । मेरा उतना ही सिरदर्द कम होगा।
😘
कामवाली की आंखें फैल गईं- क्या! सब कुछ?
उसे तो जैसे आज अलीबाबा का खज़ाना ही मिल गया था।
😉
उसने अपना काम फटाफट खतम किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर के ओर निकली।
❤️
आज तो जैसे उसे चार पांव लग गए थे।
घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा, भगोना वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया
और
फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।
😘
आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना भी पॉश दिख रहा था।
😉
तभी उसकी नजर अपने पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई-
अब ये सामान किसी कबाड़ी को दे दिया कि समझो हो गया काम।
😉
तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था-
मां! पानी दे।
🙄
कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।
😘
जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली- फेंक दो कहीं भी।
😉
वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए? क्या मैं रख लूं मेरे पास?
😘
कामवाली बोली- रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ
😉
और फिर उसने जो-जो भी बेकार समझा, वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।
😘
वो भिखारी खुश हो गया।
अरे, पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।
❤️
आज उसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी ।
❤️❤️
हम सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।
😘 हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि
हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है।
😘 दीपावली की सफाई शुरू हो गई है, शुभकामनाएं हैं।
आपका घर नये क्रॉकरी ,कपड़े ,फ़र्नीचर से जगमग हो।
पुराने का क्या करना है, आप बहुत बेहतर जानते हैं।
*❤️ बस आपकी झोली हमेशा दुआओं से भरे, यही ईश्वर से प्रार्थना है*
कृष्ण कुमार वर्मा
रायपुर छत्तीसगढ
बेसन के लडडू! :बाल रचना/ वीरेन्द्र सिंह बृजवासी
, :
जो जीतेगा उसे मिलेंगे,
यह बेसन के लड्डू,
लाद पीठ पर जो साथीको,
खिलवाएगा चड्डू।
बढ़कर आगे गोलू ने तब,
अपना नाम लिखाया,
देख स्वयं मोटे साथी को,
उसका मन घबराया।
जैसे-तैसे लाद पीठ पर,
पहला कदम बढ़ाया,
सांस चढ़ गई,गोलूजी को,
खूब पसीना आया।
पैर हिल गए दर्द बढ़ गया,
पकड़ हो गई ढीली,
लगी प्यास गोलू को भारी,
सारी बोतल पी ली।
भद्द-भद्द गिरपड़े भूमिपर,
जैसे भिलिया कद्दू,
लार टपकटी रही देखकर,
मिला न खाने लड्डू।
एक-एक कर निकले सारे,
जैसे मरियल पद्दू,
ऐसे कैसे जीत सकोगे,
कहते प्यारे दद्दू।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ.प्र.
9719275453
रिक्शा चालक" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचनना
करे मेहनत रोज, पसीना माथ बहाते।
एक एक पैसा जोड़, घरों में रोटी लाते।।
तपती गर्मी धूप, सड़क पर चलते जाते।
दिखे सवारी राह, उसे मंजिल पहुँचाते।।
देखे सपने रोज, टूट जाते हैं सारे।
पाई-पाई जोड़, सभी के बने सहारे।।
किस्मत अपनी देख, हाथ को अपने मलते।
उड़ते आँखे नींद, सबेरे रिक्शा चलते।।
करें मेहनत काम, नहीं होता है छोटा।
करते हैं जो शर्म, उसी का किस्मत खोटा।।
रिक्शा वाला देख, लोग जो मुख को मोड़े।
आये विपत्ति पास, हाथ को अपना जोड़े।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
दीपावली
दीपमालाएं हमारे घरों को रौशन करें
लक्ष्मी की कृपा बरसे हर्षित मन करें
हो प्रसन्न, सब ओर खुशियाँ व्याप्त हो
हर दिशाओं से धनधान्य की प्राप्ति हो
जहाँ नजर तेरी पड़े हो वहाँ रंगीनियाँ
कहीं से कभी झांके नहीं गम गीनियाँ
झाँक लेना अट्टालिका से नीचे अहो
पास मंे तेरे कोई भी भूखा सोया न हो
उसे होली, दीवाली से लेना है क्या भला
दीवाली मनी है गर दो वक्त चूल्हा जला
रौशन भी हो रौशनी, ऐसा उजाला करें
सम्पन्न होएं राष्ट्र स्वदेशी का प्रण घरे
मिलेगा रोजगार कोई भूखा होगा नहीं
ऐसा स्वदेशी, नव-राष्ट्र निर्मित हम करें
विदेशी झालरें हम प्रथम तिरस्कृत करें
माटी के बने दीप से घर को रोशन करें।
शरद कुमार श्रीवास्तव
शनिवार, 16 अक्टूबर 2021
शेरावाली माँ रचनाकार प्रिया देवांगन प्रियू
शेरावाली माता आयी।
घर-घर में खुशियाँ बिखरायी।।
माँ अम्बे का रूप भयंकर।
राक्षस दानव काँपे थर थर।।
एक हाथ में खप्पर पकड़े।
पापी राक्षस को वो जकड़े।।
देख क्रोध में सिंह दहाड़े।
महिषासुर के मुख को फाड़े।।
अत्याचार मिटाने वाली।
आयी है माँ दुर्गा काली।।
काली रूप देख सब भागे।
नव दिन तक सब सेवक जागे।।
लाली-लाली चुनर चढ़ाओ।
शेरावाली सभी जगाओ।।
करो आरती धूप जलाओ।
मनवांछित फल तुम भी पाओ।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
"बेटियाँ" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"
बेटी से परिवार, नाम कुल रौशन करती।
देना बेटी मान, जगत की पीड़ा हरती।।
माँ पापा की जान, सदा वो प्यार लुटाती।
घर आँगन को रोज, फूल सी वह महकाती।।
लेती घर में जन्म, गूँजती है किलकारी।
नन्ही होती जान, सभी को लगती प्यारी।।
लेते पापा गोद, आँख उनके भर आते।
हँस-हँस कर वे रोज, प्यार अपना बिखराते।।
करो नहीं तुम भेद, एक तुम इसको जानो।
होती दुर्गा रूप, सदा तुम इसको मानो।।
बेटी से संसार, उजाला घर को करती।
बन लक्ष्मी की रूप, सदा अपना घर भरती।।
नहीं समझना बोझ, जगत में इसको लाओ।
बेटी बेटा एक, खुशी घर में बिखराओ।।
पढ़ लिख कर वो आज, हमेशा आगे बढ़ती।
करती है हर काम, राह वो अपना गढ़ती।।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
बकरी के बच्चे! : बाल रचना- वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी की रचना
एक दिवस बकरी के बच्चे,
घूम रहे थे सभी इकट्ठे,
एक सियार उधर से गुजरा,
देख रह गए हक्के-बक्के।
बोले,अब हम घर चलते हैं,
माता से जाकर मिलते हैं,
उस सियार ने देखा हमको,
जिसे न हम अच्छे लगते हैं।
झट बच्चों ने दौड़ लगाई,
जल्दी से किवाड़ खुलवाई,
हांफ रहे थे सारे बच्चे,
देख उन्हें बकरी घबराई।
बोली बच्चो मत घबराओ,
सच्ची-सच्ची बात बताओ,
बोले बच्चे मम्मी अब तुम,
उस सियारको मार भगाओ।
अंदर रहो कहीं मत जाओ,
घर में रहकर खेलो-खाओ,
जब भी दुष्ट इधर आ जाए,
सारे मिलकर शोर मचाओ।
जब मैं, हूँ तो क्यों डरते हो,
अपना दिल छोटा करते हो,
मेरे सींघों की ताकत पर,
नहीं भरोसा तुम करते हो।
दांत तोड़ दूँगी मैं उसका,
पेट फाड़ दूँगी मैं उसका,
सच कहती हूँ यहीं मारकर,
जिस्म गाढ़ दूँगी मैं उसका।
खुशी-खुशी नाचे सब बच्चे,
तन के कोमल मन के सच्चे,
मां से बढ़कर कौन धरा पर,
डरते उससे अच्छे-अच्छे।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ.प्र.
9719275453
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रावण अभी मरा नहीं है : डा. पशुपति पाण्डेय की रचना
कल शुक्रवार (15/10/2021) की शाम डूबते सूरज की रोशनी के बीच रावण जल गया। एक नहीं तमाम शहरों, कस्बों और गांवों में जला। कुछ ने इसे असत्य पर सत्य की जीत कहा तो किसी ने इसे अधर्म पर धर्म की विजय माना। हर बार की तरह कोई इसे अनीति पर नीति का वर्चस्व कह रहा था तो कोई इसे बुराई का अंत कह रहा था। हर जगह मेले में मची रेलम पेल। रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतलों से आती पटाखों के धमाके की तेज आवाज और रोशनी। इन सबके बीच यह सब सच लगने लगा। अचानक से सीना तान कर चलते लोगों को देख लगा जैसे वाकई रामराज्य आ गया। मेले में बिकते शोर शराबा फैलाने वाले सस्ते से खिलौने, चाट पकौड़ी और मूंगफली के ठेलों को देख लगा चलो आखिर इनके भी दिन बहुर गये। वरना ब्रांडेड टॉयज और चाइनीज डिशेज के बीच कौन पूछता है इन चवन्नी छाप भोंपूओं और गोलगप्पों को।
सड़क पर रेंगती भीड़ इस बात का अहसास तो करा रही थी कि तंग जगहों पर चलना अपने आप में प्रॉब्लम है। लेकिन जब बेलौस बतियाते चल रही लड़कियों को देख कोई अनायास ही धकियाने पर उतर आये या फब्ती कसे तो इस बात को समझने में भी देर नहीं लगती कि अभी हम जिस रावण की देह जला कर आये हैं उसकी रूह अभी जिंदा है। राह गुजर रही महिलाओं को एक्स रे के इरादे से घूरती निगाहें इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि आसुरी प्रवृत्ति की आत्मा अब भी कायम है।
ये तो एक ऐसे मनोवृत्ति की चर्चा है जिसे साइकोलॉजी ने जेहनी तौर पर बीमारी करार दिया है लेकिन आप उसे क्या कहेंगे जिसे दूसरों को संताप देकर संतोष हासिल होता हो? विज्ञान इसे किस नजरिये से देखता है यह दीगर है लेकिन आसपास बिखरे सैडिस्ट लोगों के हुजूम ने हर दूसरे को जेहन से लेकर जिस्मानी तौर पर बीमार बना कर रख दिया है।
इसमें कोई शक नहीं कि ये प्रवृत्ति रावणी है लेकिन सभ्य कहे जाने वाले आज के समाज में तमाम ऐसे लोग हैं जिनकी वृत्ति भी रावणी है। अरहर की दाल को महंगी के दलदल में पहुंचाने वाले जमाखोर आज के रावण हैं। सूखी रोटी और प्याज से पेट भरने वालों के निवाले में सेंध लगाने वाले दशानन हैं। गरीबों के राशन में घटतौली करने वाले, सूद पर पैसा देकर एक इन्सानी जिंदगी को हमेशा के लिए कर्ज की गठरी बना देने वाले, बच्चों और महिलाओं का शोषण करने वाले आज के
लंकाधिपति हैं। अपने आसपास बिखरी तमाम तरह की विसंगतियों पर अगर आप गौर फरमाएं तो उसमें आपको रावण का अक्स दिखायी देगा। सरकारी से लेकर प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों के पीछे जीभ लपलपाते घूमते दलालों के मकड़जाल इस बात की तस्दीक करते हैं कि इन्सानों की दुनिया पर शैतान का ही राज है।
रावण और उसकी प्रवृत्ति की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। ये वो रक्तबीज हैं जो हर कतरे के साथ एक लम्बे सिलसिले को पैदा कर जाते हैं। शायद ये वक्त इन रक्तबीजों के वजूद के नहीं, उसके पैदा होने की वजहों के पड़ताल का है। फौरी तौर पर देखें तो बंद मुट्ठी की अंगुलियां खुद अपनी ओर ही मुड़ती दिखती हैं। ये एक ऐसा आधा सच है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता। अगर हमारी पेरेंटिंग अच्छी होती तो ईव टीजिंग से लेकर रोड साइड पर होने वाले हिट एंड रन के केसेज इतनी तादाद में न दिखते। हम ’संतोषं परमं सुखम’ की सोच रखते तो मुनाफा कमाने की दौड़ में जमाखोरी जैसा अपराध नहीं करते। सूदखोरी जैसा पाशविक पेशा न अपनाते। बच्चों का शोषण करने के बजाय उन्हें स्कूल का रास्ता दिखाते। लेकिन कड़वा सच ये है कि हम ऐसा कुछ करते ही नहीं।
हमारे अंदर ऐसी सोच भी नहीं आती कि आसपास बिखरी चीजों को समेट कर उसे एक आकार प्रकार दें। हम निगेटिविटी के एक ऐसे डेलिमा में जी रहे हैं जहां से सिर्फ भयावह अंधेरा ही दिखता है। सकारात्मकता का स्रोत जब सूख जाए तो उससे कुछ उम्मीद करना भी बेमानी सा लगता है। लेकिन ये है गलत। इस माइंड सेट को बदलना होगा। यह समझना होगा कि हर साल दशहरे पर पुतला दहन से ही रावण नहीं मरेगा। उसके वंश के सर्वनाश के लिए हमें उस सोच को जलाना होगा जो आसुरी ताकतों का जनक है। आखिर में अचानक से जेहन में आयीं दो लाइनें आपसे शेयर करना चाहूंगा...
नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही...
इस उम्मीद के साथ कि एक न एक दिन रावण जरूर मरेगा।
डा. पशुपति पाण्डेय
लखनऊ
नन्ही चुनमुन की लापरवाही : एक बालकथा रचनाकार शरद कुमार श्रीवास्तव
मम्मी ने देखा कि चुनमुन स्कूल से आकर , उससे बगैर मिले या प्यार किये ही, कुछ खोजने में लग गई थी । मम्मी को आश्चर्य हुआ कि ऐसा तो कभी नहीं होता है । चुनमुन स्कूल से घर आकर सबसे पहले वह अपनी मां से अवश्य मिलती है । मम्मी कौतुहल-वश चुनमुन के कमरे में गई। मम्मी को वहाँ देखकर चुनमुन तुरन्त बोलने लगी कि मम्मी मेरा ब्लू रंग का क्रेयान कहीं नहीं मिल रहा है । आज टीचर जी ने सबके सामने मुझे बहुत डाँटा था । वो कह रहीं थीं कि तुम अपना सब सामान फेंकती रहती हो । मम्मी कल ही तो मैंने उससे पेंटिंग की थी और पेटिंग के बाद वह कहाँ चला गया पता नहीं चल रहा है। इसी लिए मै अपने कमरे में तलाश कर रही हूँ । यह सुनकर मम्मी बोली कि कितनी बार तुम्हें समझाया है कि अपना सब सामान संभाल कर रखो और इस्तेमाल करने के बाद उसे फिर अपनी जगह पर रख दो लेकिन तुम सुनती कहाँ हो। तुम्हारी मैम ने ठीक ही तुम्हें डाँटा है । यह सुनकर चुनमुन बोली मम्मी अब मै समझ गई हूँ । मै अब अपना सब सामान ठीक जगह रखूंगी और इस्तेमाल करने के बाद फिर उसे फिर सही जगह पर रखूँगी । मैं आपसे प्रामिस करती हूँ । नन्ही चुनमुन की यह बात सुनकर मम्मी मुस्करायी । वह बोली, यह लो तुम्हारा ब्लू क्रेयान ! अब सब सामान ठीक से रखना । सबेरे तुम्हारे स्कूल जाने के बाद काम वाली आन्टी ने कूड़े वाली बाल्टी में से निकाल कर यह ब्लू क्रेयान मुझे दिया था। चुनमुन खुश हो गई और मम्मी के गले से लग गई ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021
गुड़िया की चॉकलेट! बाल रचना वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की रचना
दो - दो चॉकलेट देने की,
चाचा जी ने बात कही,
सुनकर गुड़िया ने निपटाया,
झटपट अपना दूध सभी।
आकर चाचा जी से बोली
अब तो चॉकलेट दें दें,
अगर आपके पास नहीं तो,
गुड्डन को लेने भेजें,।
चाचाजी ने तब गुड़िया से,
होमवर्क की बात कही,
तभी मिलेगी चॉकलेट जब,
हल कर लोगी प्रश्न सभी।
सारा होम वर्क गुड़िया ने,
पल में पूरा कर डाला,
चॉकलेट पाने बस्ते का,
झट से बंद किया ताला।
चॉकलेट देकर गुड़िया को,
चाचा जी फिर बोले,
उंगली थाम चलो विद्यालय,
पैदल हौले हौले।
छुट्टी होने पर चाचा जी,
मुझको लेने आना,
चॉकलेट का दूजा पैकेट,
लाकर मुझे खिलाना।
चॉकलेट अब तभी मिलेगी,
जब पढ़ कर आओगी,
मास्क हटा दोनों हाथों को,
धोकर दिखलाओगी।
ड्रेस बदलकर के गुड़िया ने,
मुँह से मास्क हटाया,
चाचा जी ने चॉकलेट तब,
लाकर उसे खिलाया।
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वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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बुधवार, 6 अक्टूबर 2021
*तर्पण* प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
तर्पण करते है सभी, लेकर जौ तिल हाथ।
करते हैं सब प्रार्थना, जाते मानव साथ।।
करे स्नान जल्दी सभी, देते हाथो नीर।
मीठा मेवा को बना, भोग लगाते खीर।।
अर्पण करते नीर है, करते हैं जब याद।
मनोकामना पूर्ण से, पाते आशीर्वाद।।
आते पूर्वज साल में, ले कागा का रूप।
होता मन में हैं खुशी, लगता रूप अनूप।।
बच्चो को होती खुशी, दादा आये आज।
परिवारों के साथ में, करते जल्दी काज।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
*तीज*
राह देखती भैया जी का, साथ मायके जाती है।।
खुश हो कर सब माता बहनें, मिलजुल तीज मनाती है।।
पति की उम्र बढ़ाने को सब, निर्जल व्रत को करती है।
शिव गौरी की पूजा करती, मन में श्रद्धा भरती है।।
नये-नये पकवान बनाती, साथ बैठ कर खाती हैं।
खूब दिनों में मिलते बहनें, खुशहाली बिखराती हैं।।
हँसी ठिठोली करते रहते, बचपन यादें आती हैं।
बिछुड़ गये जो सखी सहेली, मिलने उनसे जाती हैं।।
घूम-घूम कर सभी नारियाँ, बाजारों में जाती हैं।
रंग बिरंगे साड़ी लेकर, अपने घर पर आती हैं।।
सालों का ये तीज तिहारी, मन में खुशियाँ लाती है।
खुशी-खुशी से सभी बेटियाँ, मन ही मन इठलाती है।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़