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गुरुवार, 6 जनवरी 2022

शामू 9

 


अभी तक :- 

शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।   उसका भिखारी  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिलने के कारण  वह साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा इत्यादि  कूड़े से बीनता है जिसको खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पहुँचता है गैरेज मे पहले उसे एक  चोर समझा जाता है परन्तु  उस बच्चे की दलील  और  अपनी आवश्यकता देखते हुए गैरेज  के मालिक इशरत मियाँ  उसे अपने गैराज मे काम पर रख लेते हैं

 इशरत उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश हो जाते हैं और शामू की पढ़ाई की इच्छा देखकर इशरत का  बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था ।  शामू बहुत  शीघ्र  जरूरत  भर की पढ़ाई लिखाई  सीख लेता है ।
नुसरत भी इंजीनियरिंग करने के बाद बंगलुरु में नौकरी करने चला गया और वह कुछ दिनों के बाद अपने माता-पिता को बंगलुरु घुमाने ले गया ।  उस समय गैरेज का प्रबंधन शामू के पास था। इशरत मियाँ जब बंगलोर  से वापस आये तो शामू के गैरेज प्रबंधन से बहुत खुश थे ।  कुछ दिनो बाद एक  बीमारी से इशरत भाई काफी कमजोर हो गये थे  शामू  हमेशा उनकी सेवा मे तत्पर रहता था.
इशरत मियाँ ठीक हो जाने के बाद भी गैरेज नहीं जाते थे. शामू अकेले ही गैरेज देखता था और रुपये पैसे लाकर देता था .  इशरत मियाँ को बंगलोर  जाकर रहना  अपरिहार्य  लग रहा था अतः वे गैरेज का सारा सामान और टूल्स शामू को बहुत कम दाम मे बेच कर अपन बेटे के पास सपरिवार बंगलोर चले गये. शामू ने अपने घर पास एक किराए की दुकान मे अपना गैरेज खोल लिया . उसके अच्छे हुनर और अच्छे व्यवहार की वजह से उसका गैरेज चल निकला और अब वह अपने गैरेज का मालिक है.

शामू का गैरेज  छोटा था लेकिन  उसकी लगन अच्छे काम  मिलनसारिता और अच्छे व्यवहार  के कारण  आसपास  के गैरेजों मे लोकप्रिय  हो गया था। वे ग्राहक  जो पहले इशरत  मियाँ  के गैराज  से जुड़े  थे  वे  आ  रहे थे  औरों को भी अपने साथ  ला रहे थे।   गैरेज  दिनोंदिन  तरक्की कर  रहा था ।

शामू के पिता बिहारी शारीरिक  रूप  से काफी कमजोर  हो चले था ।   दूसरी जगह रहने से उसके खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी  ।  शामू अब सक्षम  हो चला था अत: वह जाकर अपने पिता को लेकर घर  आ गया।   बिहारी निराशा और कमजोरी से अधिक  परेशान  था ।  अपनी याददाश्त  पर भी उसका कम बस था ।   दादी काफी बूढ़ी होने के बाद  भी अपने काम  स्वयं कर लेती थी और अपनी बीमार  बेटे को भी सहारा देती थी ।    शामू गैरेज जाने से पहले खाना बनाकर  जाता था  ।   

शामू की झोपड़ी के पास के झोपडी मे  रहने वाली  मोहनी शामू के घर से अपरिचित नहीं थी।   बचपन  से ही मोहनी  शामू के साथ  खेलती थी और दादी के पास आती जाती रहती थी ।    एक दिन मोहनी ने देखा कि शामू की दादी बिस्तर  से नीचे लुढ़क कर  गिर पड़ी हैं और  बिहारी काका उन्हे उठाने की असफल कोशिश  कर रहे है तब मोहनी ने शामू की झोपडी  मे जाकर  दादी को उठाकर वापस बिस्तर  पर लिटाया ।  दादी और बिहारी मोहनी से खुश  हुए ।  मोहनी  शामू के गैरेज जाने के बाद  प्रायः शामू के पिता और  दादी को देखने आ जाती तथा घर को व्यवस्थित  कर आती थी।   मोहनी की माँ को यह  मालूम  था  और उसे खराब भी  नही लगता था उसे अपनी बेटी के लिए  एक  अच्छे वर की तलाश  थी वह शामू से अच्छा वर वह कहाँ से लाती ।   वह चाहती थी कि मोहनी धीरे इसी घर का हिस्सा बन  जाये । 

शामू जब गैराज  से लौट कर  आता तो घर व्यवस्थित  देखकर  उसे खुशी होती थी।  दादी से उसने पूछा तो पता चला कि मोहनी  उसके पिता और  दादी का ख्याल  रखती है ।   एक दिन  मोहनी को शामू कः पिता बिहारी ने बताया कि जहाँ रहता था वहाँ एक दुकानदार  के पास  वह अलग से कुछ पैसे जमा कर  देता था  शामू को उसके बारे मे कुछ  नहीं बता पाया है।  इतना बताने के बाद  वह बेहोश  हो गया।

आगे अगले अंक मे

शरद कुमार श्रीवास्तव 




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