सौ-सौ आँसू क्यों रोते हो,
बोलो मेंढक भाया,
चेहरा भी है उतरा-उतरा,
सूखी सारी काया।
खोयी है रंगत आँखों की,
बोली भी बेदम है,
टाँगों में भी पहले जैसा,
बचा नहीं दमखम है।
क्या बतलाऊँ चूहे राजा,
अपनी राम कहानी,
ताल - तलैया सूखे सारे,
मेघ पी गए पानी।
नष्ट हो रहे कीट - पतंगे,
भूख लगी है भारी,
सूख रही है बिन पानी के,
कोमल त्वचा हमारी।
अच्छा होता धीरज धरना,
चूहे ने समझाया,
हवा चल गयी ठंडी देखो,
बादल भी घिर आया।
टिप-टिप बून्दों ने आकर के,
सबका मन हर्षाया,
खुशी-खुशी मेंढक राजा भी,
टर्र - टर्र चिल्लाया।
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वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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