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मंगलवार, 26 जुलाई 2022

सौ-सौ आँसू! वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की बालरचना



सौ-सौ आँसू क्यों रोते हो,

बोलो      मेंढक      भाया,

चेहरा भी  है  उतरा-उतरा,

सूखी       सारी      काया।


खोयी  है रंगत  आँखों की,

बोली     भी     बेदम     है,

टाँगों  में  भी  पहले  जैसा,

बचा    नहीं   दमखम   है।


क्या  बतलाऊँ   चूहे  राजा,

अपनी      राम      कहानी,

ताल - तलैया   सूखे   सारे,

मेघ    पी      गए      पानी।


नष्ट   हो   रहे  कीट - पतंगे,

भूख     लगी     है     भारी,

सूख  रही  है  बिन पानी के,

कोमल     त्वचा     हमारी।


अच्छा  होता  धीरज  धरना,

चूहे           ने      समझाया,

हवा  चल  गयी  ठंडी  देखो,

बादल    भी    घिर    आया।


टिप-टिप बून्दों ने आकर के,

सबका       मन       हर्षाया,

खुशी-खुशी मेंढक राजा भी,

टर्र    -    टर्र        चिल्लाया।




     -------😊-😊-------

         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

                   ----😊----

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