ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 6 जुलाई 2022

हाथी और दरजी

 




पहाडों पर एक गाँव मे एक दर्जी रहता था। गाँव के लोग उसे कपड़े सिलने को देते थे ।  वह उनको सिलकर अपना और अपने परिवार का लालन पालन करता था । उसी गाँव मे एक हाथी भी रहता था ।  हाथी दर्जी की दुकान के सामने खड़ा हो जाता  और दर्जी को काम करते हुए देखता था । हाथी के दुकान के सामने खड़े होने से दर्जी की दुकान की रौनक बढ़ जाती थी। कुछ  दिनो के बाद दरजी और हाथी की  दोस्ती हो गयी ।  हाथी दर्जी के बच्चे को अपनी पीठ पर बैठाकर कभी कभी  गाँव की सैर करा लाता था।   इसके बदले मे दर्जी हाथी केले खिला देता था।   दर्जी के बच्चे को दर्जी का उस हाथी को खिलाना पिलाना पसंद नहीं था ।

एक बार दर्जी को दुकान का सामान लाने शहर जाना पड़ा।   हाथी रोज की तरह जब दर्जी की दुकान पर आया और उसने देखा कि दुकान बन्द है ।  उसे लगा कि दर्जी अभी सो रहा है जबकि दिन सिर के ऊपर तक निकल आया है ।   हाथी ने सोंचा कि अगर दर्जी सो रहा हो तो उसे जगा दें।  हाथी ने  चिंघाड़ कर दर्जी को  आवाज लगाई ताकि दर्जी सुने तो दुकान खोल कर अपने रोजी रोटी पर ध्यान दे । लेकिन  दर्जी तो शहर जा चुका था । उसके लड़के ने हाथी की चिंघाड़ का कुछ ध्यान नही दिया और न कुछ बोला ।   हाथी ने दुबारा चिंघाड़ा लेकिन दर्जी के घर से कोई आवाज नहीं आई ।   हाथी ने उत्सुकता वश घर के दरवाजे की ऊपर की दराज से अपनी सूंड़ डाली तब दर्जी के लड़के ने हाथी की सूंड़ मे सुई चुभा दिया।  सुई चुभते ही हाथी बहुत गुस्से मे आ गया और वह 
हाथी गुस्से से तालाब पर चला गया  ।   वह अपनी सूंड़ मे ढेर सारा कीचड़ और पानी भर कर ले आया और सारा कीचड़ तथा पानी दर्जी की दुकान मे उलट दिया ।   दर्जी की दुकान मे रखे नये नये सब कपड़े बरबाद हो गये।   दर्जी ने जब लौट कर देखा तो उसे बहुत दुख हुआ . वह केले लेकर हाथी को मनाने निकला लेकिन हाथी तब तक वह गाँव छोड़कर कहीं जा चुका था.



शरद कुमार श्रीवास्तव 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें