बिजलीचमकी बादल गरजे
हुई रोशनी अम्बर में
धीरे-धीरे बरखा रानी
पहुंची सबके घर-घर में।
बून्द-बून्द के बने बताशे
बच्चे दौड़ पकड़ने जाते
लाख जतन करते बेचारे
फिर भी हाथ नहीं वो आते।
भर जाता आंगन में पानी
जी भर करते सब मनमानी
छोटी बहना शोर मचाती
नहलाती जब गुड़िया रानी।
बादल यूं ही जल बरसाना
हमको ज्यादा मत तरसाना
आग नहीं बरसाना भैया
सूरज को बतलाते आना।
अन्वी,अस्मि,अश्वथ आओ
माही, रुद्र, प्रशु को लाओ
टर्र-टर्र, पीहू, झींगुर की
बोली के संग नाचो गाओ।
गयी दुपहरी संध्या आई
शीतल हवा साथ ले आई
बारिश की नन्हीं बून्दों ने
खुशियों की उम्मीद जगाई।
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वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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