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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

ब्रजेंद्र नाथ मिश्र की रचना : ओस की बूँदें

ओस की  बूँदें 
 

ओस की बूँदें मोती - सी लगें, 
दूबों पर टिकती हुयी सोती - सी लगें ।    उन्हें उँगलियों से छूना चाहूँ,
 मुठियों में बंद करना चाहूँ।     
रात सितारे आते अम्बर से, 
उन्हें धरा पर बिखरा जाते,
 झोंके पवन के आते, सहलाते,
 पसारते, छितरा   जाते।
  
नहलाई हुयी उन बूंदों में,
छल - छल करती आती भोर,
 पत्तों पर गिरती, चमकाती,
 जीवन - रस से करती सराबोर।  

  
फूलों पर बूंदे ठहरी हुई, छूती, चूमती,
नाचती हैं, टिकती, टप - टप गिरती हुई,
 पराग चुरा ले जाती हैं। 
 आओ उंगली के पोरों में,
 कर लूँ कैद, ले  भागूं, उनके बदले थोड़ी - सी, मोती गगन से मैं मांगू।

     
 ब्रजेंद्र नाथ मिश्र जमशेदपुर

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