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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

अर्चना सिंह का बालगीत : चतुर बानर

चतुर वानर 


चतुर वानर की सुनो कहानी,

वन में मित्रों संग,

करता था मनमानी।

बंदरिया संग घूमा करता,

कच्चे-पक्के फल खाता था।

पेड़-पेड़ पर धूम मचाता,

प्यास लगती तो नदी तक जाता।

पानी में अपना मुख देख वो,

गर्व से खुश हो गुलट्टिया खाता।


तभी मगरमच्छ आया निकट,

देख उसे घबड़ाया वानर।

मगर ने कहा,‘‘न डरो तुम मुझसे

आओ तुमको सैर कराऊॅं,

इस तट से उस तट ले जाऊॅं।

कोई मोल न लूॅंगा तुमसे,

तुम तो हो प्रिय मेरे साॅंचे।’’

वानर को यह कुछ-कुछ मन भाया,

पर बंदरिया ने भर मन समझाया।

सैर करने का मन बनाकर,

झट जा बैठा, मगर के पीठ पर

लगा घूमने सरिता के मध्य पर।

तभी मगर मंद-मंद मुसकाया,

कलेजे को खाने की इच्छा जताया,

‘कल से वो भूखी है भाई

जिससे मैंने ब्याह रचायी

उसकी इच्छा करनी है पूरी

तुम्हारा कलेजा लेना है जरुरी।’

सुन वानर को आया चक्कर,

घनचक्कर से कैसे निकले बचकर ?

अचंभित होकर वो लगा बोलने,

ओह! प्रिय मित्र पहले कहते भाई।

मैं तो कलेजा रख आया वट पर,

चलो वापस फिर उस तट पर।

मैं तुम्हें कलेजा भेंट करुॅंगा,

न कुछ सोचा, न कुछ विचारा

मगर ने झट दिशा ही बदला।

ले आया वानर को तट पर,

और कहा,‘ मित्र करना जरा झटपट।’

वानर को सूझी चतुराई,

झट जा बैठा वट के ऊपर।

दाॅंत दिखाकर मगर को रिझाया,

और कहा,‘अब जाओ भाई

तुम मेरे होते कौन हो ?

तेरा-मेरा क्या रिश्ता भाई ?

वानर ने अपनी जान बचाई,

मगर की न चली कोई चतुराई।   



  

                      ... अर्चना सिंह जया

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