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बुधवार, 26 अप्रैल 2017

अर्पिता अवस्थी की रचना :4: लोमड़ी की चतुराई


 

एक जंगल मे गोपू नामक शेर रहता था.
बहुत दिन बीते राज करते करते और बाकी जानवरो को डराते डराते पर अब जब वो बूढ़ा होगया तो कोई उसकी नही सुनता था यहां तक कि छोटे- छोटे खरगोश और चूहे भी नही,  एक दिन गोपू ने सारे जानवरो को सबक सिखाने के लिये  एक तरकीब सोची  उसने दावत का लालच देकर जंगल के सारे लोगो को बुलाया. अच्छा -अच्छा खाने के लालच मे सब उसकी सभा मे पहुंच गये लेकिन लोमड़ी जानती थी जब राजा के पास खाने के लिये नही है तो दावत क्या देगा? जरुर कुछ दाल मे काला है,  लोमड़ी सही थी  दरसअल शेर ने दूसरे जंगल के शेरो को न्यौता दिया था, वहां आये कुछ जानवरो का गोपू ने साथियो की मदद से भक्षण कर लिया.  फिर भी लोमड़ी शेरो की दावत मे पहंच गई और मुस्कुरा कर शेर के सामने आई और बोली "श्रीमान आप  जल्दी से मुझे खा लीजिये" उसकी बात सुन कर गोपू और बाकी शेर चकित रह गये फिर गोपू ने पूछा "सभी भय से कांपते हुऐ प्रार्थना कर रहे है कि मुझे मत खाओ और तू  ऐसा कह रही है, माजरा क्या?" लोमड़ी ने बड़ी विनम्रता से कहा  "श्रीमान दरसअल बहुत से शिकारी बन्दूक लेकर यहीं आरहे है हम सबको पकड़ कर सरकस मे नाच नचाने के लिये, सरकस मे गुलाम बन कर तमाशा करने से अच्छा है कि मै जंगल के र‍ाजा का भोजन बन जाऊ." शिकारियो का नाम सुनते ही सभी शेर अपने - अपने जंगल की तरफ भाग गये. 
बेचारे गोपू का मुंह देखने लायक था जब
लोमड़ी हंस पड़ी क्योकि वहां कोई शिकारी नही आया, जान बचती देख कर सभी जानवर लोमड़ी की बुध्दिमत्ता से  प्रसन्न हुऐ और उसे जंगल की रानी बना दिया 

                     अर्पिता  अवस्थी
                     बर्रा  कानपुर 
                     raressrare@gmail.com

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