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गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

अंजू निगम की बालकथा: मास्टर  जी




मास्टर  जी
गोपी अपने माँ-बापू और चार बहनो के साथ गाँव के एक छोटे से झोपड़े में रहता था| झोपड़ी की छत धान के सूखे पुए से बनी थी| जो बरसाती दिनो में एक भी सूखी जगह न बचा पाती|
    इस साल खुब बरसात हुई| गोपी के बापू की दिहाड़ी भी जाती रही| खाने के लाले पड़ गये|
    उन्हीं दिनो गोपी के ताऊजी गाँव आये थे| अपने भाई की हालत पर तरस खा वे गोपी और उसकी बहन को अपने साथ लिवा ले गये|गोपी के बापू को भी कुछ पैसे पकड़ा दिये|
  ताऊजी का गाँव बड़ा था|ताऊजी गाँव के पास बन रही सड़क का काम देखते थे| गोपी का काम ताऊजी का छोटा-मोटा काम करना और ताऊजी के लिये घर से दोपहर का खाना लाना होता था|
  एक दिन जब गोपी खाना लेने आयी तो पास के स्कुल से बच्चो के समवेत स्वर में गिनती दोहराई जा रही थी| गोपी के पैर स्कुल के गेट पर रुक गये|              मास्टरजी ने आज बाहर ही कक्षा लगा रखी थी| काले बोर्ड पर लिखी गुलाबी, नीली चॉक से लिखी गिनती गोपी को खुब भायी|
    अब तो गोपी रोज आकर स्कुल के गेट पर रुकने लगा| बोर्ड पर लिखे अक्षरो या गिनती को सीखने की कोशिश करता| पर उसे लिखता कहाँ? उसके पास न तो चॉक थी न स्लेट|
  उसे एक तरकीब सुझी| उसने अपनी उगंली से वहाँ पड़ी मिट्टी पर ही लिखना शुरु कर दिया| दूसरे दिन फिर देखता कि उसने सही लिखा या नहीं?
     हफ्ते भर ये चला| फिर मास्टरजी कक्षा अंदर लगाने लगे| गोपी उदास हो गया| मगर पढ़ने की उसकी इच्छा जब बहुत बढ़ गयी तब एक दिन वो सबकी नजरे बचा कक्षा से सट कर खड़ा हो गया| पर डर तो था न कि कोई उसे वहाँ खड़ा देख न ले| यहाँ जब वो मिट्टी में न लिख पाया तो उसने बच्चो के सुर में सुर मिलाना शुरु कर दिया|
   एक दिन मास्टरजी ने उसे पकड़ ही लिया|गोपीबहुत घबरा गया| पर मास्टरजी नेक इंसान थे| गोपी की पढ़ाई में लगन को उन्होने परख लिया था|मास्टरजी ने उसे कक्षा में आकर बैठने की भी इजाजत दे दी| नयी स्लेट और चॉक भी दी| गोपी बहुत खुश हुआ|
     ताऊजी से मिल कर मास्टरजी ने गोपी को पढ़ा लेने की बात कही| ये भी यकीन दिलाया कि इसमें न ताऊजी को कोई खर्चा करना पड़ेगा और न ही काम का कोई हर्जा होगा|
    ताऊजी भी ये सोच कर की गोपी के पढ़ लेने से उन्हें भी हिसाब-किताब रखने
में सुविधा होगी, मान गये|
मास्टरजी की वजह से एक बच्चे का जीवन संवर गया|

                                अंजू निगम

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