अंगूर मीठे हैं
एक लोमड़ी थी, जो शहर में अकेले रहती थी। एक दिन उसे अपने परिवार की बहुत याद आयी। उसने सोचा कि बहुत दिनों से उनसे नही मिली है, जाकर मिलना चाहिए। लोमड़ी तुरंत जंगल की ओर चल पड़ी। जंगल के रास्ते में उसे अंगूर से लदा पेड़ दिखायी दिया। अंगूर के पेड़ को देखते ही उसे वो कहावत याद आ गई जो लोमडि़यों के मुर्खता पर बनी थी कि ‘‘अंगूर खट्टे हैं’’। इसी कहावत को लेकर लोमडि़यों की हमेशा खिल्ली उडाई जाती है। तभी से आज तक कोई लोमड़ी यह जान नही सकी कि अंगूर का असली स्वाद कैसा होता है।
उसने सोचा कि ‘ये अच्छा मौका है, मैं अंगूर खा कर उसका स्वाद पता करूँ और हमेशा के लिए इस कहावत का अंत कर दूँ साथ ही लोमड़ी जाति पर लगे इस कलंक को हटा दूँ।’ लेकिन अंगूर तो पेड़ में ऊंचाई पर लगे थे, उसे तोड़ा कैसे जाये? यह बात लोमड़ी के समझ में नही आ रही थी। उसको याद आया कि उसके पूर्वजों ने पेड़ की ऊॅची टहनी पर लगे अंगूर को उछल कर तोड़ने की कई बार कोशिश की थी, अंगूर तो टूटे नही बल्कि उनके दांत जरुर टूट गये। लोमड़ी ने सोचा ‘यह तरीका तो खतरनाक है, इससे तो अपने आप को ही चोट लगती है। मुझे कुछ नया सोचना होगा।’
तभी वहाँ एक गिलहरी आयी, उसे देखते ही लोमड़ी ने सोचा मुझे इसकी मदद लेनी चाहिए, लोमड़ी ने कहा ‘गिलहरी बहन मेरी मदद करो, और मुझे अंगूर तोड़ कर दे दो ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगीं।‘ गिलहरी ने कहा ‘‘लोमड़ी दीदी मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती क्योंकि मेरे बच्चे बहुत देर से भूखे है, मुझे उन्हें खाना खिलाना है.’’ यह कह कर वह तेजी से पेड़ पर बने अपने घर में घूसने लगी। लोमड़ी ने कहा ‘अच्छा बहन तुम तो इस पेड़ में रहती हो तो तुम्हे तो पता होगा कि अंगूर का स्वाद कैसा होता है, मुझे कम से कम उसका स्वाद तो बताती जाओ.’ गिलहरी ने कहा ‘दीदी इसके स्वाद को बताया नही जा सकता, जो खाता है उसे ही पता चलता है।‘ और वह घर के अंदर चली गई।
तभी पेड़ पर एक चिडि़या आ बैठी, लोमड़ी ने प्रेम से कहा ‘चिडि़या बहन अपने नुकीले चोच से अंगूर की एक डाली तोड़ कर मुझे दे दो, ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगीं’। चिडि़या ने कहा ‘मैं छोटी सी जान, मुझसे नही होगा ये कठिन काम।’ और यह कह वह फुर्र हो गई।
लोमड़ी सोचती रही कि क्या किया जाये तभी उसे एक बिल्ली पेड़ की तरफ आती दिखायी दी, जैसे ही बिल्ली पेड़ के थोड़े पास आयी वहाँ लोमड़ी को खड़े देख वह बहुत घबरा गई और सर पर पैर रख कर भागी, लोमड़ी ने उसे भागते देखा तो अपनी आवाज को नरम करते हुए कहा ‘बिल्ली रानी भागो मत, मैं तुम्हें नही खाऊॅगी, मेरी थोड़ी सी मदद कर दो, तुम तो पेड़ में चढ़ सकती हो, मुझे अंगूर तोड़ के दे दो, ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगी’। बिल्ली ने सोचा ‘लोमड़ी है बहुत चालाक, कर रही मीठी मीठी बात, फंसना नहीं मुझे उसके जाल में’, उसने कहा ‘लोमड़ी बहन मेरे पैर में चोट लगी है, मैं पेड़ पर नही चढ़ पाऊॅगी। हाथी दादा इसी तरफ आ रहे हैं आप उनसे मदद मांगे।’ और वह तेजी से भाग गई.
थोडी देर में ही हाथी पेड़ के पास पँहुचा। लोमड़ी ने कहा ‘हाथी दादा आप अपनी सूड से पेड़ की टहनी हिला दो, ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगी’। हाथी दादा बोले ‘मुझे लगी है बहुत प्यास, मैं जा रहा हूँ झील के पास, तुम्हारी मदद के लिए समय नही है मेरे पास।’ यह कह कर हाथी दादा धम धम करते हुऐ वहाँ से चले गये।
लोमड़ी ने सोचा कोई किसी की मदद नहीं करता मुझे अपनी मदद खुद करनी होगी, पर कैसे करे? बहुत देर तक लोमड़ी खडे़ खडे़ अंगूर तोड़ने के उपाय सोचती रही, तभी उसे याद आया कि शहर में उसने एक बार देखा था कि एक बच्चे को ऊॅची दिवार पर चढ़ना था, तो उसने कई सारे पत्थर एक के ऊपर एक रखे और फिर वह पत्थरों के ऊपर चढ़ कर दिवार पर चढ़ गया।
लोमड़ी दीदी का दिमाग चल गया, उसने तुरंत आसपास से बहुत सारे पत्थर इक्टठे किये और उसे एक के ऊपर एक रखा, फिर उन पत्थरों पर चढ़ गयी और टहनी के करीब पहुँच गयी. उसने अपने पंजे को जोर से टहनी पर मारा जिससे बहुत सारे अंगूर नीचे गिर गये। लोमड़ी ने गिरे अंगूर में से एक अंगूर खाया और जोर जोर से चिल्लाने लगी ‘हमारे ऊपर लगा कलंक मिट गया, अंगूर खट्टे नहीं मीठे हैं और हमारी इतनी पीढ़ीयां यही सोचती रही कि अंगूर खट्टे हैं। मैं अपने लोगों को ये मीठे अंगूर खिलाऊॅगी।’ और उसने गिरे हुए सारे अंगूर को एक पोटली में बांधा और अपने घर की ओर बढ़ चली, रास्ते में जो भी मिलता वो उसे एक ही बात कहती ‘हमारे ऊपर लगा कलंक मिट गया, अंगूर खट्टे नहीं मीठे हैं।’
उपासना बेहार
ई मेल –upasana2006@gmail.com
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