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गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

महेन्द्र देवांगन माटी  की रचना : दोहे







दोहा


तन मन दोनों चंगा हो, रोग न ब्यापे कोय ।

सरल सहज हो काम भी, मिले सफलता तोय ।।


काम करो सब प्रेम से, कटू न मन में आय ।

होत तुरंत ही काज सब, मन में खुशियाँ छाय ।।


शीतल मंद समीर चले, तन को देत कंपाय ।

पूष महिना जाड़ा की , बाहर धूप सुहाय ।।


कोयल कूकत बाग में, सबके मन को भाय ।

कलियन देखी फूल को, तितली भी मुसकाय ।।


                        महेन्द्र देवांगन माटी 

                         पंडरिया छत्तीसगढ़ 

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