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रविवार, 16 अप्रैल 2017

शादाब आलम की रचना : जादूगर जी




जादूगर जी



जादूगर जी जादूगर जी
बस्ता मेरा भारी है
इसे लादकर मुझको, चलने
में होती दुश्वारी है।

मंतर ऐसा मुझे बता दो
पढ़ते ही उड़ जाऊं मैं
पलक झपकते ही बस खुद को
विद्यालय में पाऊं मैं।




                      शादाब आलम

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