दोहा
तन मन दोनों चंगा हो, रोग न ब्यापे कोय ।
सरल सहज हो काम भी, मिले सफलता तोय ।।
काम करो सब प्रेम से, कटू न मन में आय ।
होत तुरंत ही काज सब, मन में खुशियाँ छाय ।।
शीतल मंद समीर चले, तन को देत कंपाय ।
पूष महिना जाड़ा की , बाहर धूप सुहाय ।।
कोयल कूकत बाग में, सबके मन को भाय ।
कलियन देखी फूल को, तितली भी मुसकाय ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
रचना प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्रीवास्तव जी
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