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बुधवार, 26 दिसंबर 2018

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : तब कविता बन जाती है




तब कविता बन जाती है 
हवा की सर सर  , मेंढक की टर टर 
बादलों की गड़ गड़  , झिंगुर की झर झर की
 आवाज जब कानों में गुंजती है
तब कविता बन जाती है ।

सांप की सरसराहट  , बिजली की चमचमाहट 
ठंड में कपकपाहट , नदी की कल कल की आवाज आती है
तब कविता बन जाती है 

पायल की छम छम , चूड़ी की खन खन 
झरनो की झर झर , पत्तों की खड़ खड़ 
की आवाज आती है 
तब कविता बन जाती है ।

          प्रिया देवांगन "प्रियू"
          पंडरिया 
          जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

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