तब कविता बन जाती है
हवा की सर सर , मेंढक की टर टर
बादलों की गड़ गड़ , झिंगुर की झर झर की
आवाज जब कानों में गुंजती है
तब कविता बन जाती है ।
सांप की सरसराहट , बिजली की चमचमाहट
ठंड में कपकपाहट , नदी की कल कल की आवाज आती है
तब कविता बन जाती है
पायल की छम छम , चूड़ी की खन खन
झरनो की झर झर , पत्तों की खड़ खड़
की आवाज आती है
तब कविता बन जाती है ।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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